संघ की सक्रियता से पूर्वोत्तर में कम हुईं धर्मांतरण की घटनाएं: रूपाली हजारिका
संघ की सक्रियता से पूर्वोत्तर में कम हुईं धर्मांतरण की घटनाएं: रूपाली हजारिका

संघ की सक्रियता से पूर्वोत्तर में कम हुईं धर्मांतरण की घटनाएं: रूपाली हजारिका

संघ की सक्रियता से पूर्वोत्तर में कम हुईं धर्मांतरण की घटनाएं: रूपाली हजारिका नई दिल्ली, 24 फरवरी (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और वनवासी कल्याण आश्रम के तत्वावधान में असम समेत देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में वनवासियों और आदिवासियों के बीच संस्कार व शिक्षा के विस्तार से धर्मांतरण और गौ हत्या की घटनाओं में कमी आयी है। वनबंधुओं के उत्थान को समर्पित 'वनवासी रक्षा परिवार फाउंडेशन' के तत्वावधान में नई दिल्ली में रविवार को आयोजित एक दिवसीय वनवासी रक्षा कुंभ में कथावाचक रूपाली हजारिका भी शामिल हुईं। इस दौरान ''हिन्दुस्थान समाचार' ने उनसे बातचीत की। उन्होंने बताया कि संगठन का कार्य वर्ष 1955 से शुरू हुआ और संस्कार शिक्षा का कार्य वर्ष 1998 से चल रहा है। वर्तमान में पूर्वोत्तर के 20 अंचलों में संस्कार शिक्षा के कार्य संचालित किए जा रहे हैं। इस कार्य में करीब 200 कार्यकर्ता दिन-रात सक्रिय हैं। कार्यकर्ता अलग-अलग टोली बनाकर गांव-गांव में कथा एवं प्रवचन के माध्यम से लोगों को जागरूक एवं संस्कारित कर रहे हैं। इस कार्य में वर्ष 1998 से सक्रिय भूमिका निभाने वाली कथावाचक रूपाली हजारिका का कहना है कि पूर्वोत्तर में संस्कार व शिक्षा के विस्तार से धर्मांतरण और गौ हत्या में कमी आयी है। हजारिका पूर्वोत्तर के जेलों में कथा एवं प्रवचन भी करती हैं। इससे कैदियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव देखने को मिला है। जेल से छूटने के बाद कुछ कैदियों का जीवन भक्तिमय हो गया है। बकौल हजारिका कार्य विस्तार को देखते हुए असम के डिब्रूगढ़ में वर्ष 2017 में कथा प्रशिक्षण केंद्र की शुरुआत हुई है। स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण केंद्र खुलने से कथा एवं प्रवचनकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण प्राप्त करना सुविधाजनक हो गया है। उन्होंने बताया कि पहले सत्र 2017-18 में कुल 22, दूसरे सत्र 2018-19 में 21 और तीसरे सत्र 2019-20 में कुल 26 शिक्षार्थियों को संस्कार शिक्षा के कार्य के लिए प्रशिक्षित किया जा चुका है। इस तरह पूर्वोत्तर में संस्कार शिक्षा के कार्य विस्तार से गांव-गांव में हम पहुंच पाए हैं तथा सत्संग कथा आदि के माध्यम से संस्कारित समाज निर्माण करने के लिए प्रयासरत हैं। गांवों के अलावा हमने जेलों में कथा करने के प्रयास किए। इसमें हमें सफलता भी मिली। असम में कुल 16 जेलों में श्रीमद्भागवत कथा हुई, जिसमें 11 जिला जेल और पांच केंद्रीय जेल शामिल हैं। इसकी शुरुआत शिवसागर जेल से हुई। दो से छह नवम्बर 2016 तक शिवसागर जेल में कथा हुई थी। करीब छह हजार से ज्यादा कैदियों ने कथा श्रवण किया। कथा के शुरू-शुरू में सभी कैदी कथा स्थल पर नहीं पहुंचते थे। पहले दिन की कथा में तो कम ही कैदी आते, पर धीरे-धीरे जेल के करीब 80 फीसदी कैदी कथा में पहुंचने लगे। कैदियों के बीच अच्छे-अच्छे घरों के पुरुष और महिलाएं भी कथा सुनने पहुंचे। इसके बाद जाति, धर्म, वर्ण को न देखते हुए सारे कैदी बड़े ही निष्पाप मन से श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने लगे। कथा के दौरान उनकी आंखों से भक्तिमय प्रेम की अश्रुधारा बह रही थी। कैदियों का कहना था कि अगर पहले उन्हें ऐसा ज्ञान, भक्तिमय परिवेश मिला होता तो आज सारे लोग जेल में कैदी का जीवन नहीं बिताते। कुछ कैदी जेल से छूटने के बाद भगवत जीवन बिताने का प्रयास करते हुए दिखाई दिए। एक दिन मेरे सामने एक रिक्शा चलाने वाला आया और प्रेमपूर्वक रिक्शा में बैठा और कहने लगा कि व्यासजी मैं आपके कारण जल्द ही मैं जेल से छूट गया। जेल में मैंने आपकी कथा सुनी थी। तब से मैं आपके बताए राह पर चलने की कोशिश कर रहा हूं। उन्होंने बताया कि अब हर जेल के अधिकारियों की इच्छा है कि जेलों में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया जाए। गुवाहाटी की जेल में एक कथा में आये असम के राज्यपाल प्रो. जगदीश मुखी ने यह घोषणा भी की थी कि राज्य की सभी जेलों में कथा का आयोजन किया जाए। हिन्दुस्थान समाचार/पी.के./सुनीत-hindusthansamachar.in

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