शिक्षा मंत्री का चिंतन शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में हो सकता है मिल का पत्थरः चांदनीवाला
शिक्षा मंत्री का चिंतन शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में हो सकता है मिल का पत्थरः चांदनीवाला

शिक्षा मंत्री का चिंतन शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में हो सकता है मिल का पत्थरः चांदनीवाला

रतलाम, 22 जून(हि.स.)। पाठ्यक्रमों की अधिकता वैसे ही हमारी शिक्षण व्यवस्था को बोझिल बना रही है और भावी पीढ़ी को बस्ते के बोझ के तले कोहलू के बेल की तरह जीवन जीने के लिए विवश कर रही है, ऐसे में यदि शिक्षा मंत्री का चिंतन देश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में मिल का पत्थर साबित हो सकता है। यह बात शिक्षाविद् मुरलीधर चांदनीवाला ने शिक्षक सांस्कृतिक संगठन द्वारा सोमवार को आयोजित एक परिचर्चा में कही। उन्होंने कहा कि आपदा के इस दौर में सबसे अधिक प्रभाव उन स्कूली बच्चों पर पड़ा है, जिनका खेलना-कूदना छूट गया, दादा-दादी और नाना-नानी के घर जाना छूट गया, कुछ नया सिखने की इच्छा मन में ही रह गई। अब आते साल की चिंता से ही यह बच्चे आशंकित और भयभीत दिखाई दे रहे हैं। आजकल स्कूली पाठ्यक्रम इतने विस्तार में होते है कि यदि साल में एक-दो दिन स्कूल न जाए तो वह पिछड़ जाते हैं। उन्होंने कहा कि अभी कुछ समय से पाठ्यक्रम में लगातार फेरबदल हो रहे है और हर बार नई सूचनाओं ओर जानकारियों के समावेश में पाठ्यक्रम का स्वरुप ही बदल दिया है। पाठ्यक्रम में नई सामग्रियों का प्रवेश तो स्वागत योग्य होना चाहिए लेकिन उसे समय-सीमा में पूरा कर लेना शिक्षकों के लिए चुनौतिपूर्ण होता है और बच्चों के लिए तो वह ऐसा बोझ होता है जिसे जैसे-तैसे उतारना होता है। मौजूदा समय इसके लिए इजाजत नहीं देता कि स्कूलों में पाठ्यक्रम का आद्यतन निर्वाह हो। यह बहुत जरूरी है कि सत्र प्रारंभ से पहले ही पाठ्यक्रम को नियोजित किया जाए। यदि यह समय रहते नहीं हुआ तो प्रचलित पाठ्यक्रम की स्थुलता छात्र-छात्राओं के मनोविज्ञान पर विपरित असर डालेगी। संस्था अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने कहा कि स्कूलों में पढ़ाए जाने वाला पाठ्यक्रम सत्र में पूरे होते ही नहीं। बंद स्कूलों में पाठ्यक्रम पूर्ण करना शिक्षकों के लिए असंभव कार्य है। पाठ्यक्रम हमारी शैक्षणिक व्यवस्था को प्रभावित कर रहे है, यह विद्यार्थियों के हित में और ना ही शिक्षकों के लिए उपयुक्त है। अत: पाठ्यक्रम ऐसे होना चाहिए जो समयावधि में पूर्ण हो सके। चंद्रकांत वाफगांवकर ने कहा कि शिक्षण व्यवस्था खुली किताब की तरह होना चाहिए । यह लघु और प्रायोगिक हो तो ज्यादा अच्छा है। ममता अग्रवाल ने कहा कि मंत्रीजी का चिंतन अपनी जगह बिल्कुल सत्य है, पाठ्यक्रम विद्यार्थियों के लिए एक कठिन समस्या है, वहीं शिक्षकों के लिए भी एक चुनौती है। इसी विषय पर संस्था सचिव दिलीप वर्मा, शिक्षक रमेश उपाध्याय, सेवानिवृत्त शिक्षिका भारती उपाध्याय, रक्षा के.कुमार , प्रतिभा चांदनीवाला, नरेन्द्रसिंह पंवार, कमलसिंह राठौर, कृष्णचंद ठाकुर, श्यामसुंदर भाटी सहित वक्ताओं ने कहा कि पहली बार किसी सरकार ने इस ओर ध्यान देने की कोशिश की है। संचालन दिलीप वर्मा तथा आभार दिनेश वर्मा ने माना। ज्ञातव्य है केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरीयाल ने पिछले दिनों सीबीएसई एवं राज्य के शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में कटौती की वकालात की थी, उनका कहना था कि वर्तमान समय में जहां लॉकडाउन के कारण शिक्षण व्यवस्था प्रभावित हुई है, ऐसे में पाठ्यक्रमों की अधिकता शैक्षिक सुधार में बाधा बनी हुई है, अत: आवश्यक है कि राज्य सरकारें भी और सेंट्रल एज्युकेशन बोर्ड अपने भावी पाठ्यक्रमों में कटौती कर इस दिशा में पहल करें, इसी बात को लेकर यह शिक्षाविदें की यह परिचर्चा आयोजित की गई थी। हिन्दुस्थान समाचार/ शरद जोशी-hindusthansamachar.in

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