मन की बात : भारत की जैव विविधता को संजोने और संरक्षित रखने की जरूरत : प्रधानमंत्री
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मन की बात : भारत की जैव विविधता को संजोने और संरक्षित रखने की जरूरत : प्रधानमंत्री

मन की बात : भारत की जैव विविधता को संजोने और संरक्षित रखने की जरूरत : प्रधानमंत्री नई दिल्ली, 23 फरवरी (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जैव विविधता को संजोने और संरक्षित रखने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि मेघालय की गुफाओं में जीव विज्ञानियों द्वारा हाल ही में खोजी गई मछली भारत की जैव-विविधता को एक नया आयाम देगी। उन्होंने कहा कि हमारे आस-पास ऐसे बहुत सारे अजूबे हैं जो अब भी अनभिज्ञ हैं और इनका पता लगाने के लिए खोजी जुनून जरुरी होता है। प्रधानमंत्री ने रविवार को अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ को संबोधित करते हुए कहा कि जीवों पर भी दया और प्रकृति से प्रेम करने की सीख भारतीयों को पूर्वजों से विरासत में मिली है। भारत के इस वातावरण का आतिथ्य लेने के लिए दुनिया भर से अलग-अलग प्रजातियों के पक्षी हर साल भारत आते हैं। भारत पूरे साल कई प्रवासी प्रजातियों का भी आशियाना बना रहता है। पांच-सौ से भी ज्यादा अलग-अलग प्रकार के और अलग-अलग इलाकों से ये पक्षी आते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों, गांधी नगर में ‘सीओपी -13 सम्मेलन’, जिसमें इस विषय पर काफी चिंतन हुआ, मनन हुआ, मन्थन भी हुआ और भारत के प्रयासों की काफी सराहना भी हुई। ये हमारे लिए गर्व की बात है कि आने वाले तीन वर्षों तक भारत प्रवासी प्रजातियां पर होने वाले ‘सीओपी सम्मेलन’ की अध्यक्षता करेगा। प्रधानमंत्री इस अवसर को अधिक उपयोगी बनाने के लिए जनता से सुझाव भी मांगे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि हाल ही में जीव विज्ञानियों ने मछली की एक ऐसी नई प्रजाति की खोज की है, जो केवल मेघालय में गुफाओं के अन्दर पाई जाती है। माना जा रहा है कि यह मछली गुफाओं में जमीन के अन्दर रहने वाले जल-जीवों की प्रजातियों में से सबसे बड़ी है। यह मछली ऐसी गहरी और अंधेरी भूमिगत गुफाओं में रहती है, जहां रोशनी भी शायद ही पहुंच पाती है। वैज्ञानिक भी इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि इतनी बड़ी मछली इतनी गहरी गुफाओं में कैसे जीवित रहती है। यह एक सुखद बात है कि हमारा भारत और विशेष तौर पर मेघालय एक दुर्लभ प्रजाति का घर है। यह भारत की जैव-विविधता को एक नया आयाम देने वाला है। हमारे आस-पास ऐसे बहुत सारे अजूबे हैं, जो अब भी अनदेखा हैं। इन अजूबों का पता लगाने के लिए खोजी जुनून जरुरी होता है। उन्होंने तमिल कवियत्री अव्वैयार के कथन का हवाला देते हुए कहा कि हम जो जानते हैं, वह महज, मुट्ठी-भर एक रेत है लेकिन, जो हम नहीं जानते हैं, वो, अपने आप में पूरे ब्रह्माण्ड के समान है। इस देश की विविधता के साथ भी ऐसा ही है जितना जाने उतना कम है। हमारी जैव विविधता भी पूरी मानवता के लिए अनोखा खजाना है जिसे हमें संजोना है, संरक्षित रखना है, और, खोज भी करना है। हिन्दुस्थान समाचार/सुशील-hindusthansamachar.in

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