बहुत भयभीत करता था आपातकाल का दौर
बहुत भयभीत करता था आपातकाल का दौर

बहुत भयभीत करता था आपातकाल का दौर

पटना, 25 जून (हि.स)। 25-26 जून 1975 की रात्रि को घोषित आपातकाल को 45 वर्ष बीत गये। 45 साल एक लम्बा अंतराल होता है लेकिन आपातकाल मे दो यातनायें लोगों ने झेली और जो ज़्यादतियॉ हुई उनका स्मरण आज भी रोंगटे खड़े कर देता है। उस समय जो भय और दहशत का वातावरण बन गया था उस की मात्र कल्पना भी बहुत डरावनी है। आपातकाल का आतंक इतना अधिक था कि लोकनायक जय प्रकाश नारायण का नाम तक लेने मे लोग यहॉ तक कि उनके अनुयायी भी भयभीत हो जाते थे । वरिष्ठ पत्रकार और आपातकाल मे जार्ज फ़र्नान्डिस से जुड़े बड़ौदा डायनामाइट केस के अभियुक्त सुरेंद्र किशोर उस दहशत के माहौल को याद करते हैं। आपातकाल की घोषणा होते ही विपक्ष के लगभग सभी नेता गिरफ़्तार हो चुके थे। कर्पूरी ठाकुर उस समय यहॉ नहीं थे और शायद नेपाल मे कही छुप गये थे । गिरफ़्तार करने को प्रयास मे नाकाम होकर पटना पुलिस ने बीरचंद पटेल पथ पर ठाकुर के विधायक निवास का ताला तोड़ दिया और सामान निकाल कर बाहर फेंक दिया। उनका विधायक निवास आज के भाजपा कार्यालय के निकट था। सड़क पर कर्पूरी जी का थोड़ा बहुत सामान: एक पुराना सूटकेस और बैग जिसमें उनके चंद कपड़े, किताबें, काग़ज़ात थे, बिस्तर, चादर इत्यादि सब सड़क पर पड़े थे। किसी ने इसकी जानकारी उनके निकट सहयोगी और विधान पार्षद इंद्र कुमार को दी जिनका सरकारी आवास क़रीब मे ही स्थित बंदरबगीचा में था। किशोर बताते है कि आपातकाल का ऐसा भय समाया था कि इन्द्र कुमार न तो स्वयं गये न ही किसी को भेज कर सामान मँगवाया। अब यह बड़ी परेशानी हो गई कि कर्पूरी जी के सामान का क्या किया जाये। इसी बीच एक विधायक वहाँ पहुँचे और सामान उठवाने लगे और अपने सरकारी निवास ले गये । किशोर ने बताया कि वह विधायक थे विरेंद्र कुमार पॉडेय और यह सुन कर हर किसी ने दांत तले उँगली दबा ली कि पॉडेय जी कांग्रेस के विधायक थे फिर भी उन्होंने हिम्मत दिखाकर विपक्ष के एक ऐसे नेता का सामान सुरक्षित रख लिया जिनकी तलाश पुलिस को थी। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं था कि इंद्र कुमार की कर्पूरी जी से घनिष्ठता कम हो गई थी या कोई मतभेद हो गया था। बात केवल इतनी थी कि आपातकाल के दहशत वाले माहौल मे इतनी हिम्मत दिखाना भी बहुतों के वश मे नहीं था। पत्रकार किशोर इसी संदर्भ मे एक और संस्मरण सुनाते है। विश्वविख्यात अंग्रेज़ी साप्ताहिक न्यूज़वीक मे जय प्रकाश नारायण पर एक लेख छपा था। किशोर ने किसी तरह उस पन्ने की कापी बनवाई और उसको लेकर इंद्र कुमार के पास गये कि उसका थोड़ा अनुवाद कर के बताये। इंद्र कुमार जी ने उसे पढ़ा, कुर्ता की जेब से सिगरेट लाइटर निकाला और बिना कुछ कहे उस काग़ज़ के टुकड़े को जला दिया। अवाक होकर किशोर उन्हें देखते रहे। हिन्दुस्थान समाचार/फैजान-hindusthansamachar.in

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