पूंजीवाद में आई कमी, इससे उबरने में लगेगा वक्‍त : मुख्य आर्थिक सलाहकार

पूंजीवाद में आई कमी, इससे उबरने में लगेगा वक्‍त : मुख्य आर्थिक सलाहकार

पूंजीवाद में आई कमी, इससे उबरने में लगेगा वक्त : मुख्य आर्थिक सलाहकार नई दिल्ली/मुंबई, 22 फरवरी (हि.स.)। केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने कहा कि 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद चहेते औद्योगिक घराने के साथ मिलकर यानी साठ-गांठ से नीति तय करने (क्रोनी कैपिटलिज्म) का चलन कम हुआ है लेकिन देश को इससे पूरी तरह उबरकर सम्पूर्ण काराबारी जगत के अनुकूल नीतियों को बनाने की अवस्था में पहुंचने में अभी कुछ और दूरी तय करनी बाकी है। सुब्रमण्यन ने शनिवार को यहां आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि जब पूरे कारोबार जगत को ध्यान में रखकर नीतियां बनाई जाएंगी, तभी सही मायने में बाजार के अदृश्य हाथों को बल मिलेगा (बाजार कारगर होगा), जो देश को 5 हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तक पहुंचाएगा। उन्होंने ये भी कहा कि कारोबार के अनुकूल नीतियां वो होती है, जो कि देश में एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देती है। उन्होंने कहा कि हमें इस तरह की नीतियों को पूरी तरह अपनाने के लिए कुछ और दूरी तय करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इनसे उलट कारोबारियों से यारी-दोस्ती को ध्यान में रखकर नीतियां बनाने से सिर्फ खास लोगों को लाभ मिलता है। इसलिए हमें बाजार के अदृश्य हाथों को ताकत देने के लिए इससे (साठ-गांठ कर नीतियां बनाने से) बचने की जरूरत है। सुब्रमण्यन ने साठ-गांठ के घटते प्रतिफल की ओर संकेत करते हुए कहा कि दूरसंचार स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर 2011 में कैग की रिपोर्ट आने के बाद से ऐसी कंपनियों में निवेश पर कमाई शेयर सूचकांकों में वृद्धि की दर से बहुत कम रही, जो ‘संपर्कों वाली’ कंपनी मानी जाती है। उन्होंने कहा कि क्रोनी कैपिटलिज्म के साथ एक दिक्कत है, ये आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए कारोबार का बेहतर मॉडल नहीं है। सुब्रमण्यन कहा कि हमें हमेशा ऐसे रचनात्मक विध्वंस पर भी ध्यान देना चाहिए, जहां पहले से मौजूद कॉरपोरेट घरानों को चुनौतियां मिलती हो। सुब्रमण्यन ने नीति निर्माण की प्रक्रिया में अर्थव्यवस्था के हालिया सिद्धांतों पर निर्भर हो जाने के अर्थशास्त्र जैसे प्राचीन ग्रंथों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देने को भी गलत बताया। उन्होंने कहा कि पिछले 100 साल में जो लिखा गया, सिर्फ वही विद्वता नहीं है, बल्कि ये सदियों पुरानी चीज है। उन्होंने कहा कि अर्थशास्त्र में नैतिक तरीके से संपत्ति के सृजन की वकालत की गई है। साथ ही मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि हमें बाजार में भी भरोसा बहाल करने की आवश्यकता है। उन्होंने बजट में ‘असेंबल इन इंडिया’ पर जोर देने को लेकर कहा कि इसे ‘मेक इन इंडिया’ के विकल्प की तरह नहीं, बल्कि सहयोगी कार्यक्रम की तरह देखा जाना चाहिए। हिन्दुस्थान समाचार/प्रजेश शंकर-hindusthansamachar.in

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