देशी प्रजाति की गायों का पालन करने की ओर बढ़ रहा पशुपालकों का रुझान
देशी प्रजाति की गायों का पालन करने की ओर बढ़ रहा पशुपालकों का रुझान

देशी प्रजाति की गायों का पालन करने की ओर बढ़ रहा पशुपालकों का रुझान

-अति हिमीकृत वीर्य उत्पादन केंद्र में 80 प्रतिशत हो रहा देशी प्रजाति के सांडों के वीर्य का उत्पादन -ऐसी विधि विकसित की गई ताकि गाय केवल बछिया को ही जन्म दे हापुड़, 27 जून (हि.स.)। पश्चिमी उप्र के पशुपालकों का रुझान अब विदेशी गायों के बजाय देशी गायों के प्रति अधिक हो रहा है। वे जर्सी, हॉलिस्टीन, ब्राउन स्विस आदि विदेशी प्रजातियों की गायों के बजाय साहीवाल और गिर प्रजाति की देशी गाय पालना पसंद कर रहे हैं। जनपद के गांव बिगास स्थित नवनिर्मित अति हिमीकृत वीर्य उत्पादन केंद्र के आंकड़ों से इस जानकारी की पुष्टि होती है। इसका एक बड़ा कारण देशी गाय का दूध अधिक पौष्टिक और गुणकारक माना जाना है। इनके वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से किसान बछिया पैदा कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण पालने में आसानी और दूध की पौष्टिकता को बताया जा रहा है। ग्राम बिगास स्थित नवनिर्मित अति हिमीकृत वीर्य उत्पादन केंद्र में देशी सांडों का ही पालन नहीं हो रहा है अपितु अनुसंधान भी किया गया है ताकि गाय बछिया को ही जन्म दे। आजकल खेती का मशीनीकरण हो जाने के कारण किसानों को बैलों की आवश्यकता नहीं रही है। इस कारण वे गाय द्वारा बछड़े को जन्म दिए जाने के लगभग एक वर्ष बाद खुला छोड़ देते हैं। ये बेसहारा पशु सड़कों पर घूमते हुए दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं और किसानों की फसलों को नष्ट करते हैं। इस समस्या का समाधान करने के लिए इस उत्पादन केंद्र में अनुसंधान किया गया है ताकि गाय केवल बछिया को ही जन्म दे। गत वर्ष क्षेत्र के उत्तर प्रदेश पशुधन विकास विभाग ने बिगास ग्राम में लगभग एक अरब रुपये की लागत से अति हिमीकृत वीर्य उत्पादन केंद्र की स्थापना की थी। लगभग एक अरब रुपये की लागत से निर्माण कराया। इस केन्द्र में विभिन्न नस्लों के 171 बैल मौजूद हैं। जिनके वीर्य से 92 प्रतिशत बछिया पैदा होती हैं। इसे अमेरिका की कंपनी जीनस ब्रीडिंग इंडिया लिमिटेड के सहयोग से बनाया गया है। दस केंद्र पर 27 हजार 500 इकाई वीर्य का उत्पादन प्रतिमाह हो रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य गाय की देशी नस्लों को बढ़ावा देकर दूध की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ाना है। विदेशी प्रजाति के सांडों के वीर्य की मांग काफी घटी उत्पादन केंद्र के संयुक्त निदेशक डॉ. वीर सिंह ने बताया कि उत्पादन केंद्र पर अक्टूबर 2019 से वीर्य का उत्पादन किया जा रहा है। इसमें पांच देशी प्रजाति और तीन विदेशी प्रजाति के सांडों के वीर्य उत्पादन किया जा रहा है। अब गोपालक विदेशी नस्ल के सांडों के वीर्य की मांग बहुत कम कर रहे हैं। वर्तमान में साहीवाल और गिर प्रजाति के वीर्य की मांग बहुत बढ़ गई है। 27 हजार 500 इकाई वीर्य में से 70 प्रतिशत इकाई वीर्य का उत्पादन साहीवाल प्रजाति के सांडों से किया जा रहा है। गिर प्रजाति के सांडों से 10 से 15 प्रतिशत वीर्य का उत्पादन किया जा रहा है। वर्तमान में इस उत्पादन केन्द्र में साहीवाल प्रजाति के 17 और गिर प्रजाति के दो सांडों से उत्पादन किया जा रहा है। इनकी संख्या और बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। साहीवाल प्रजाति साहीवाल भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। यह गाय मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। यह गाय सालाना दो हजार से तीन हजार लीटर तक दूध देती हैं, जिसकी वजह से दुग्ध उत्पादन करने वाले व्यवसायी इन्हें काफी पसंद करते हैं। यह गाय एक बार मां बनने पर करीब 10 महीने तक दूध देती है। अच्छी देखभाल करने पर यह किसी भी वातावरण में रह सकती हैं। गिर प्रजाति गिर प्रजाति की गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। यह गाय एक दिन में 20 से 30 लीटर तक दूध दे देती है। इस गाय के थन काफी बड़े होते हैं। इस गाय का मूल स्थान काठियावाड़ (गुजरात) के दक्षिण में गिर जंगल है, जिसकी वजह से इनका नाम गिर गाय पड़ गया। भारत के अलावा इस गाय की विदेशों में भी काफी मांग है। इजराइल और ब्राजील में भी मुख्य रूप से इन्हीं गायों का पाला जाता है। देशी गायों की प्रजातियां साहीवाल (पंजाब), हरियाणा (हरियाणा), गिर (गुजरात), लाल सिंधी (उत्तराखंड), मालवी (मालवा, मध्यप्रदेश), देवनी (मराठवाड़ा महाराष्ट्र), लाल कंधारी (बीड़, महाराष्ट्र) राठी (राजस्थान), नागौरी (राजस्थान), खिल्लारी (महाराष्ट्र), वेचुर (केरल), थारपरकर (राजस्थान), अंगोल (आन्ध्र प्रदेश), कांकरेज (गुजरात) जैसी देसी गायों के नस्ल संरक्षण पर अनुसंधान चल रहा है। हिन्दुस्थान समाचार/विनम्र व्रत/दीपक-hindusthansamachar.in

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