चीन का एक और विश्वासघात
चीन का एक और विश्वासघात

चीन का एक और विश्वासघात

सियाराम पांडेय 'शांत' चीन ने एकबार फिर साबित कर दिया है कि वह करता कुछ है और कहता कुछ है। उसकी अविश्वसनीयता से दुनिया भर के देश परेशान हैं।भारत तो पिछले छह दशक से उसकी सीमा विस्तार नीतियों से लड़ता आ रहा है। पूर्वी लद्दाख की गलवां घाटी को लेकर 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था। उसी गलवां घाटी में चीन ने भारतीय सैनिकों से हिंसक झड़प कर उकसाने वाली कार्रवाई की है। वह भी तब जब दोनों देशों की सेनाएं वापस लौटने पर सहमत हो चुकी थीं लेकिन चीन की भारतीय भूभाग को हड़पने की हवस ने हिंसक संघर्ष को जन्म दे दिया। इस झड़प में भारतीय सैन्य कमांडर समेत 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं। चीन के भी 43 सैनिकों के हताहत होने की खबर है। चीन के सैनिकों ने जिस तरह पत्थर, लाठी और रॉड से हमला किया, उससे जाहिर है कि चीन किसी भी हद तक जा सकता है। सीमा पर गोली नहीं चली, यह अच्छी बात है लेकिन चीन अगली बार ऐसा ही कुछ करेगा, इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है। भारत को इस मौके पर दुनिया भर के चीन प्रताड़ित देशों को विश्वास में लेना और चीन का खेल हमेशा के लिए समाप्त करने की रणनीति पर अमल करना चाहिए। चीन अगर पाकिस्तान और नेपाल को भड़का सकता है तो भारत क्यों अमेरिका, ताइवान, जापान, आस्ट्रेलिया, इजराइल जैसे देशों की मदद नहीं ले सकता। उसे तो रूस को भी विश्वास में लेना चाहिए। चीन ने कोरोना वायरस फैलाकर पूरी दुनिया को दुख दे रखा है, भारत को इसका लाभ उठाना चाहिए। चीन को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए। यह समय सेना का साथ देने और इसका मनोबल बढ़ाने का है, यह तभी संभव है जब हर भारतीय चीनी उत्पादों का इस्तेमाल बंद करे। व्यापारियों को भी मुनाफे की संस्कृति से ऊपर उठकर चीनी उत्पादों का बहिष्कार करना चाहिए। चीन के सैनिक बार-बार भारतीय सीमा में घुस आते हैं और तनाव का माहौल पैदा करते हैं। पिछले दो माह से चीन भारत के साथ चार चक्र की वार्ता कर चुका है लेकिन उच्चस्तरीय समझौतों और सहमतियों पर अमल नहीं करता। भारत को उसके झांसे में नहीं आना है बल्कि पूरे विवेक और संयम के साथ रणनीति बनाकर ड्रैगन को उसकी मांद में भेजना है। चीन अन्य भारतीय सैनिकों का खून बहाए और भारत को ही झूठा ठहराए, उसे आंखें दिखाए, इससे पहले उसे ऐसे गहरे घाव देने होंगे जिसकी पीड़ा वह अरसे तक महसूस करता रहे। उससे अक्साई चीन और पाक अधिकृत कश्मीर की भूमि छीननी होगी और इसके लिए चीन पर गुरिल्ला तरीके से प्रहार करना होगा। युद्ध हमेशा बड़ी सेनाएं और हथियारों के बल पर ही नहीं जीते जाते। इसके लिए परम साहस, विवेक, बुद्धि और पराक्रम अपेक्षित है। भारत को भी चीन के इलाकों में घुसकर अपने टेंट उसी तरह गाड़ने होंगे। चीन को कदम-कदम पर घेरना होगा। चीन तिब्बत, लद्दाख, लेह और अरुणाचल प्रदेश को हड़पना चाहता है, वह वहां तक भारत की पहुंच मजबूत नहीं होने देना चाहता। वह नहीं चाहता कि भारत वहां सड़क या एयरबेस बनाए। भारत ने विगत 2 वर्षों में जिस तरह से निर्माण गतिविधियां तेज की हैं, उससे वह बौखलाया हुआ है। कोरोना संकट के बाद उसे लगता है कि वुहान से विदेशी कंपनियां अपने उद्योग समेट लेंगी और भारत के विभिन्न राज्यों में शिफ्ट हो जाएंगी। भारत से चीन की हिंसक झड़प के मूल में यह भी एक बड़ा कारण है। अपनी पार्टी में शी जिनपिंग की स्थिति कमजोर हुई है, ऐसे में खुद को दमदार साबित करने के लिहाज से भी उन्होंने जान बूझकर भारत विरोधी कार्ड खेला है। चीन की आंतरिक राजनीति भारत के सामरिक हितों पर भारी न पड़े, इसपर भी विचार करने की जरूरत है। वैसे चीन ने गलवां घाटी में जो कुछ किया है, उसका करारा जवाब तो उसे दिया ही जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र चिंतित है। उसकी चिंता स्वाभाविक है लेकिन यह चिंता तो तनाव के वक्त ही कि जानी चाहिए। देर से की गई चिंता अपने उद्देश्य से भटक जाती है। इसमें शक नहीं कि भारत अपनी क्षेत्रीय अखंडता को लेकर प्रतिबद्ध है लेकिन वह अभी भी चाहता है कि भारत-चीन सीमा का शांतिपूर्ण समाधान निकल आए। युद्ध अंतिम विकल्प है। चीन भारत को युद्ध की आग में झोंकना चाहता है। गलवां घाटी में हुई हिंसक झड़प को कमोबेश इसी चश्मे से देखा जा सकता है। चीन के नापाक इरादों से गलवां घाटी में हालात खराब हुए हैं। कथनी और करनी मामले में हमेशा से ही चीन का दागदार इतिहास रहा है 1962 से आजतक चीन इस मामले में हमेशा झूठ और फरेब ही करता रहा है। वह खुद तो सीमा क्षत्र में पक्के निर्माण कर रहा है लेकिन भारत को वह ऐसा करने नहीं देता। चीन जिस तरह भारत के मामले में दखल करता है, अब समय आ गया है कि उसे जवाब मिलना चाहिए। चीन को उसी के इलाके में घेरने और तबाह करने की जरूरत है। इस घटना से मोदी सरकार पर दबाव बढ़ गया है। विपक्ष फिर सवाल उठाने लगा है। मौजूदा समय चीन और विपक्ष के दबाव में आने की बजाय सेना का मनोबल बढ़ाने और चीन को शिकस्त देने के रास्ते तलाशने का है। सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सीमा विवाद जल्द हल हो। इस संवेदनशील मामले को हम अपनी पीढ़ियों को हस्तांतरित नहीं कर सकते। (लेखक हिन्दुस्थान समाचार से सम्बद्ध हैं।)-hindusthansamachar.in

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