अनुराधा पांचवी बार निर्वहन करेगी काछन गादी पूजा विधान
अनुराधा पांचवी बार निर्वहन करेगी काछन गादी पूजा विधान

अनुराधा पांचवी बार निर्वहन करेगी काछन गादी पूजा विधान

11 वर्षीया अनुराधा अपने माता-पिता के साथ पहुंची काछन गुड़ी जगदलपुर, 12 अक्टूबर (हि.स.)। जिला मुख्यालय में विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक रियासतकालीन 75 दिनों तक चलने वाला इस वर्ष अधिमास के चलते 104 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा में काछन गादी पूजा विधान पथरागुड़ा भंगाराम चौक में काछन गुड़ी में 16 अक्टूबर को संपन्न होगी। इस दौरान काछन देवी की अनुमति के बाद बस्तर दशहरा के रियासत कालीन अन्य परंपराओं का निर्वहन अग्रसर होगा। काछन गादी पूजा विधान के निर्वहन के लिए मारेंगा निवासी 11 वर्षीया अनुराधा अपने माता-पिता के साथ काछन गुड़ी पहुंच चुकी है। अनुराधा लगातार पांचवीं बार काछन गादी पूजा विधान कानिर्वहन करेगी। अनुराधा के पिता शिव प्रसाद ने बताया कि 05 वर्षों से लगातार अनुराधा ही विधि-विधान के साथ काछन गादी पूजा विधान का निर्वहन कर रही है। काछन गादी पूजा विधान प्रक्रिया अनुराधा के उपवास रखने के साथ शुरू होगी। 28 अक्टूबर को काछन जात्रा पूजा विधान तक अनुराधा काछन गुड़ी में ही रहेगी। नारी सम्मान का बेहतरीन उदाहरण है काछन गादी बस्तर दशहरा जातीय समभाव का प्रमुख पर्व है। इसमें सभी जाति के लोगों को जोड़कर इनकी सहभागिता सुनिश्चित है। इसीलिए बस्तर दशहरा जन-जन का पर्व कहलाता रहा है। बस्तर दशहरा की शुरूआत जातीय व्यवस्था के निचले पायदान पर खड़ी अनुसूचित जाति की बालिका की अनुमति से हो, ऐसी राष्ट्रीय एकता की भावना और नारी सम्मान का बेहतरीन उदाहरण बस्तर दशहरा में देखने को मिलता है। इस बार लगातार पांचवे वर्ष बस्तर दशहरा निर्विघ्न और सफलतापूर्वक संपन्न होने का आशीर्वाद अनुराधा के द्वारा 16 अक्टूबर को दिया जायेगा। अनुराधा के परिवार के सदस्य निभा रहे हैं रस्म अनुराधा के परिजनों ने बताया कि बरसों से उनके परिवार की ही नाबालिक कन्या पर काछन देवी की सवारी आ रही है। अनुराधा के पूर्व विशाखा एवं विसाखा की मौसी और मां भी काछन देवी के रूप में कांटों के झूले पर बैठ चुके हैं। परंपरा के अनुसार बस्तर राजपरिवार को काछन देवी, प्रसाद तथा फूल देकर दशहरा मनाने की अनुमति देती है, इसके बाद दशहरा के अन्य रियासत कालीन परंपराओं का निर्वहन संपादित किये जाते हैं। काछन गुड़ी का निर्माण हुआ था 1772 में बस्तर के कला संस्कृति एवं परंपराओं के जानकार रूद्रनारायण पानीग्राही बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंशीय राजा दलपत देव ने लगभग 1772 के पश्चात करवाया था। मान्यता के अनुसार काछिन देवी पशुधन और अन्न-धन की रक्षा करती है। प्रतिवर्ष माहरा जाति की एक नाबालिक पर काछिन देवी आरूढ़ होती हैं। बस्तर अंचल में काछिन देवी, रण की देवी कहलाती है। काछिन गादी का अर्थ होता है, काछिन की देवी को गादी अर्थात् गद्दी या आसन प्रदान करना, जो कांटों की होती है। काले रंग के कपड़े पहनकर कांटेदार झूले की गद्दी पर आसन्न होकर जीवन में कंटकजयी होने का सीने में हाथ रखकर सांकेतिक संदेश देती हैं। काछिन देवी बस्तर दशहरा में प्रतिवर्ष निर्विघ्न आयोजन हेतु स्वीकृति और आशीर्वाद प्रदान किया करती हैं। काछिन देवी से स्वीकृति सूचक प्रसाद मिलने के पश्चात् बस्तर का दशहरा पर्व धूमधाम से प्रारंभ हो जाता है। हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे / गेवेन्द्र-hindusthansamachar.in

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