अनंत फल प्राप्ति के लिए की जाती है देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा
अनंत फल प्राप्ति के लिए की जाती है देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा

अनंत फल प्राप्ति के लिए की जाती है देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा

अनंत फल प्राप्ति के लिए की जाती है देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा जम्मू, 25 मार्च, (हिस) । मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में से दूसरा स्वरूप जो भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देता है वह है ब्रह्मचारिणी। नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को मां के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है ऐसी छात्रा जो आश्रम में रहकर गुरु से शिक्षा प्राप्त करे। यहां ब्रह्म का अर्थ है ऐसा दिव्य ज्ञान जो पूर्ण सत्य तथा वास्तविक है तथा जिसका ना आदि है और ना अंत ही है। चारणी का अर्थ है कि जो अपने आचरण से ऐसे दिव्य ज्ञान की ओर बढ़े। इस अनुसार ब्रह्मचारिणी का अर्थ है ऐसी दिव्य नारी जिसके पास दिव्य ज्ञान का भंडार हो। साधक लोग मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना कर इस दिव्य ज्ञान का वर प्राप्त करते हैं। मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत सुंदर व मनोहर है। श्वेत वस्त्रों में सुसज्जित माता ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप माला तथा बाएं हाथ में कमंडल होता है। माता ब्रह्मचारिणी की कथा : माता ब्रह्मचारिणी पार्वती का ही स्वरूप है। एक कथा के अनुसार माता पार्वती शिव जी से विवाह करना चाहती थीं परंतु जब यह बात पार्वती के माता-पिता को पता चली तो उन्हेंने माता पार्वती को हतोत्साहित करने के अनेकों प्रयास किए परंतु माता पार्वती ना मानी। माता पार्वती ने 5000 साल तक तपस्या की। इसी बीच देवता इच्छा, प्रेम तथा आकर्षण के देवता कामदेव के पास जा पहुंचे और उनसे आग्रह करने लगे कि शिवजी के मन में माता पार्वती के लिए प्रेम जागृत करें। देवताओं ने ऐसा तारकासुर का अंत करने के लिए किया। तारकासुर को वरदान प्राप्त था कि वह केवल शिवजी के पुत्र के द्वारा ही मारा जा सकता है। यह तभी संभव था जब शिवजी की तपस्या भंग हो तथा शिव व पार्वती के संगम से पुत्र उत्पन्न हो। वह ही केवल तारकासुर का वध कर सकता था। कामदेव शिवजी के पास जा पहुंचे तथा उन्होंने इच्छा जागृत करने वाले बाण शिवजी पर चला डाले इससे शिवजी की तपस्या भंग हो गई। तपस्या भंग होते ही शिवजी क्रोधित हो उठे और अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर डाला परंतु यह सब देख कर भी पार्वती नहीं रुकी। वह पहाड़ों पर जाकर शिवजी की तपस्या करने लगी तथा वह सब कार्य जो शिवजी किया करते थी जैसे योग तथा तप करने लगी। पार्वती द्वारा योग और तप के इसी गुण से माता ब्रह्मचारिणी का उद्भव हुआ। माता पार्वती के योग तथा तप को देखकर शिवजी प्रभावित हुए। शिव जी माता पार्वती के पास जाकर उन्हें हतोत्साहित करने लगे। वह माता पार्वती को अपने दुर्बलता तथा व्यक्तिगत समस्याओं से अवगत करवाने लगे परंतु माता पार्वती ने उनकी एक न सुनी तथा शिव जी को हार माननी पड़ी तथा माता पार्वती तथा शिवजी का विवाह हुआ। क्यों करें देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा : देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है। यही कारण है कि साधक लोग मां ब्रह्मचारिणी की पूजा तथा साधना करते हैं। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से जीवन सफल होता है और सामने आने वाले किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से किया जा सकता है। मां दुर्गा जी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में शिथिल होता है। इस चक्कर में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है। इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र भेंट किए जाते हैं। कैसे करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा : मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए सर्वप्रथम एक सुंदर श्वेत वस्त्र तथा एक हाथ में जप माला व दूसरे हाथ में कमंडल पकड़े माता ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। इसी के साथ आवाहन मंत्रों से उनको घर बुलाना चाहिए। उनको बैठने के लिए सुंदर आसन दें। इसके बाद उनके पैर धुलाकर, हाथ धुलाकर कर आचमन करवा कर स्नान करवाएं। फिर दूध, दही, घी, शहद, शकर, गंध इत्यादि से स्नान करवाकर श्वेत वस्त्र पहनाए। गंध लगाकर पुष्पमाला अर्पित करें। सुगंधित द्रव्य देकर धूप और दीप दिखाएं। खाने के लिए भोजन, फल, तांबूल तथा दक्षिणा देकर माता की पूजा करें। फिर माता की आरती कर के स्तुति करें तथा वह आरती सब लोग वंदन करें। इसके पश्चात माता ब्रह्मचारिणी के चरणों में नमस्कार करें। माता ब्रह्मचारिणी द्वारा ग्रहण किया गया प्रसाद सब भक्तों में बांटे। ऐसा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। संभव हो तो ज्ञानी भक्त दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करें। इससे अभीष्ट वर प्राप्त होता है। हिंदुस्थान समाचार / राहुल / बलवान-hindusthansamachar.in

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