आज ही के दिन कर्णम मल्लेश्वरी ने ओलंपिक में जीता था पदक,यह उपलब्धि हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं थीं
नई दिल्ली, 19 सितंबर (हि.स.)। भारतीय खेलों के इतिहास में आज का दिन काफी यादगार है। 20 साल पहले आज ही के दिन 19 सितंबर 2000 को भारोत्तोलक कर्णम मल्लेश्वरी ओलंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं थीं। सिडनी 2000 ओलंपिक में, 'स्नैच' और 'क्लीन एंड जर्क' श्रेणियों में 110 किग्रा और कुल 240 किग्रा भार उठाने के बाद, मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक जीता था। इस ऐतिहासिक दिन को याद करते हुए, पूर्व वेटलिफ्टर ने ट्वीट किया,"20 साल पहले,सिडनी ओलंपिक 2000,भारतीय तिरंगे के साथ गौरव, और सम्मान का क्षण। मेरे परिवार, कोच और देशवासियों के आशीर्वाद से भारत की पहली महिला ओलंपिक पदक विजेता के रूप में इतिहास रचा।" इस ऐतिहासिक उपलब्धि के बाद देशवासियों ने उनका नाम 'द आयरन लेडी' रखा। वह अब तक ओलंपिक पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय महिला वेटलिफ्टर बनी हुई हैं। मल्लेश्वरी ने 1993 में अपनी पहली भारोत्तोलन विश्व चैंपियनशिप में 54 किग्रा में कांस्य जीता। एक साल बाद उन्होंने अपने कांस्य पदक को स्वर्ण में बदल दिया, जिससे वह विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला वेटलिफ्टर बन गईं। उसी साल बाद में, कर्णम मल्लेश्वरी ने 1994 के एशियाई खेलों में भी रजत पदक जीता। कर्णम ने 1995 में अपने विश्व खिताब का सफलतापूर्वक बचाव किया और फिर 1996 में विश्व चैम्पियनशिप स्वर्ण की हैट्रिक पूरा करने की दौड़ में थीं। वह लगातार चार विश्व चैंपियनशिप में पदक के साथ लौटी थी, जिसमें 1994 और 1995 में स्वर्ण पदक शामिल थे। सिडनी 2000 में ओलंपिक में पहली बार महिलाओं के भारोत्तोलन को शामिल किया गया था। 69 किलोग्राम भारवर्ग में कर्णम मल्लेश्वरी, हंगरी की एर्ज़बेट मार्कस और चीन की लिन वीनिंग वाले वर्ग में थीं। फाइनल में, सभी तीन प्रतिभागियों ने स्नैच श्रेणी में प्रत्येक में 110 किग्रा वजन उठाया। क्लीन एंड जर्क श्रेणियों में, वीनिंग ने बढ़त हासिल की, अपने पहले प्रयास में उन्होंने अविश्वसनीय 132.5 किलोग्राम वजन उठाया, जबकि कर्णम और मार्कस ने अपने पहले लिफ्ट में 125 किग्रा उठाया। हालांकि वीनिंग ने अपने स्कोर में और सुधार नहीं किया, जबकि मार्कस ने संयुक्त रूप से दूसरे स्थान पर रहते हुए दूसरे प्रयास में 132.5 किग्रा सफलतापूर्वक उठाया जबकि कर्णम ने अपने दूसरे प्रयास में 130 किग्रा उठा लिया। प्रतियोगिता अब क्लीन एंड जर्क राउंड में आ गई थी और यही निर्णायक था। अपने दोनों प्रतिद्वंद्वियों के साथ 242.5 किग्रा का कुल भार उठाने के बाद, कर्णम 2.5 किग्रा से पीछे चल रहीं थीं, जिससे उन्हें कम से कम 132.5 किग्रा उठाकर बॉडीवेट पर रजत की गारंटी देने के लिए या सोने के लिए 135 किग्रा उठाना था। कर्णम ने अपने कोचों की सलाह के साथ 137.5 किलोग्राम वजन उठाकर एक शानदार जीत हासिल करने का फैसला किया। यह उनकी पिछली लिफ्ट से 7.5 किग्रा ज़्यादा थी।हालांकि, कर्णम मल्लेश्वरी निर्णायक क्षण में लड़खड़ा गईं। उन्होंने बारबेल को थोड़ी जल्दी उठा दिया और उनके घुटने पर चोट लगी, जिससे वह गिर गईं। जिसकी वजह से उनके हाथों से शायद स्वर्ण पदक चूक गया लेकिन कर्णम मल्लेश्वरी को ओलंपिक कांस्य पदक मिल चुका था। कर्णम ने 2001 में मातृत्व अवकाश लिया और 2002 के राष्ट्रमंडल खेलों के लिए कड़ी मेहनत करने लगीं, लेकिन उनके पिता के अचानक निधन ने उन्हें कुछ दिनों के लिए खेल से दूर कर दिया था। कर्णम मल्लेश्वरी ने एथेंस में 2004 ओलंपिक के लिए यात्रा की थी लेकिन पीठ की गंभीर चोट की वजह से वह अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाईं थी। हिन्दुस्थान समाचार/सुनील-hindusthansamachar.in