छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रामकथा की व्याप्ति विषय पर अंतर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन
छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रामकथा की व्याप्ति विषय पर अंतर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन

छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रामकथा की व्याप्ति विषय पर अंतर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन

रायपुर,24 जून (हि.स.)। रामायण पर आधारित विश्वज्ञान कोष निर्माण के लिए छत्तीसगढ़ में भी काम शुरू हो गया है। इस सिलसिले में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पास अभनपुर में अंतर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। वेबीनार के रूप में यह संगोष्ठी सेंटर फॉर स्टडी हॉलिस्टिक डेवलमेंट (सीएसएचडी), तथा छत्तीसगढ़ ग्लोबल इनसाक्लोपीडिय़ा ऑफ रामायण और अयोध्या शोध संस्थान द्वारा आयोजित की गई।वेब संगोष्ठी मुख्य रूप से ‘छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रामकथा की व्याप्ति’ विषय पर केन्द्रित रही। ग्लोबल इनसाक्लोपीडिय़ा ऑफ रामायण छत्तीसगढ़ के संयोजक तथा वरिष्ठ लेखक और ब्लॉगर ललित शर्मा ने बुधवार को बताया कि इस अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार में देश-विदेश से लगभग 109 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। वेबीनार के मुख्य अतिथि जितेंद्र कुमार (आईएएस) प्रमुख सचिव संस्कृति पर्यटन एवं भाषा उत्तर प्रदेश शासन, मुख्य वक्ता प्रोफेसर डॉ राजन यादव हिंदी विभाग इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़,छत्तीसगढ़ थे। वेब संगोष्ठी की अध्यक्षता डॉक्टर योगेंद्र प्रताप सिंह, निदेशक अयोध्या शोध संस्थान अयोध्या उत्तर प्रदेश ने की। वेबीनार में बैंकॉक विश्वविद्यालय थाईलैण्ड के प्रोफेसर विलार्ड वेन बोगार्ड और बैंकाक स्थित थाईलैण्ड के नेशनल म्यूजियम की मार्गदर्शक श्रीमती अनिता बोस ने भी हिस्सा लिया। सभी प्रतिभागियों ने रामायण पर विश्वज्ञान कोष (इनसाइक्लोपीडिय़ा) तैयार करने की परियोजना की प्रशंसा की और इसे तैयार करने में अपनी ओर से हर संभव सहयोग का भरोसा दिया। इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के प्रोफेसर डॉ. राजन यादव ने छत्तीसगढ़ में रामकथा के संदर्भ में कहा कि यहां के जनमानस और लोकगीतों में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम की महिमा व्याप्त है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां अभिवादन में भी राम शब्द का प्रयोग किया जाता है। बैंकॉक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विलार्ड वेन डी बोगार्ड ने वेबीनार में बताया कि वह थाईलैण्ड में रहकर भगवान श्रीराम के जीवन से संबंधित साक्ष्यों को एकत्रित करने तथा वहां उनपर केन्द्रित एक सेन्टर बनाने का प्रयास कर रहे हैं। वेबीनार में बैंकॉक नेशनल म्यूजियम की श्रीमती अनिता बोस का कहना था कि थाईलैण्ड सहित संपूर्ण दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भारतीय संस्कृति का बहुत बड़ा महत्व है। उन्होंने कहा कि थाईलैण्ड की सेना ने भी रामभक्त हनुमान को बहुत सम्मान दिया जाता है और यहां तक कि थाई सेना के ध्वज में हनुमान जी का चित्र भी अंकित रहता है। रायपुर के डॉ. महेन्द्र कुमार मिश्रा ने कहा कि दक्षिण कोसल अर्थात वर्तमान छत्तीसगढ़ के लोक साहित्य में मौखिक रूप से भी कई रामायणों का प्रचलन है। डॉ. पूर्णिमा केलकर ने छत्तीसगढ़ के तुरतुरिया में लव-कुश का जन्म स्थान होने का उल्लेख करते हुए कहा कि यह दण्डकारण्य क्षेत्र अनेक ऋषियों की तपोभूमि रही है।सीएसएचडी के सचिव विवेक सक्सेना ने वेबीनार में कहा कि समग्र विकास की तुलना में सिर्फ भौतिक विकास एकांगी होता है। इसलिए हमें मानसिक, शारीरिक विकास के साथ सर्वांगीण विकास पर ध्यान देना होगा। हिन्दुस्थान समाचार/केशव-hindusthansamachar.in

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