'योगी' की नसीहत से नाराज थे 'ओली', 'सांस्कृतिक विरासत' ने उत्पन्न किया 'भय'
'योगी' की नसीहत से नाराज थे 'ओली', 'सांस्कृतिक विरासत' ने उत्पन्न किया 'भय'

'योगी' की नसीहत से नाराज थे 'ओली', 'सांस्कृतिक विरासत' ने उत्पन्न किया 'भय'

गोरखपुर, 20 जून (हि.स.)। प्रचंड के नेतृत्व वाली नेपाल सरकार की मुद्रा पर अंकित गुरु गोरक्षनाथ के प्रतीकों के हटाने के प्रयासों की विफलता और तिब्बत के हश्र की ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ध्यान आकृष्ट कराने के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद ओली काफी नाराज थे। शायद उन्हें उसी समय यह लगाने लगा था कि योगी आदित्यनाथ का यह बयान उन्हें और उनकी पार्टी को सांसत में डाल सकती है। इस बात पर नेपाली प्रधानमंत्री ओली काफी नाराज हुए थे और इसे राजनैतिक तूल देतेे हुए योगी को ही नसीहत दी थी। लेकिन शायद उन्हें असली भय नेपाली जनता में गोक्षनाथ और नाथपंथ के प्रति अटूट विश्वास और अगाध श्रद्धा से है। उन्हें भारत-नेपाल की सांस्कृतिक विरासत ने झकझोर कर रख दिया था। मत्स्येन्द्र यात्रा उत्सव में दिखते हैं नेपाल और नाथपंथ के रिश्ते नाथपंथ और नेपाल के रिश्ते हजारों वर्ष पुराने हैं। महायोगी गोरखनाथ द्वारा प्रवर्तित नाथपंथ के प्रभाव से पूर्व नेपाल में योगी मत्स्येन्द्रनाथ की योग परम्परा का प्रभाव दिखायी देता है, जिन्हें नेपाल के सामाजिक जनजीवन में अत्यंत सम्मान प्राप्त है। इसकी झलक नेपाली समाज में प्रसिद्ध मत्स्येन्द्र-यात्रा-उत्सव के रूप में मिलती है। गुरु गोरक्षनाथ के प्रताप से गोरखा राष्ट्र, जाति, भाषा, सभ्यता एवं संस्कृति की प्रतिष्ठा हुई। राजवंश के इष्टदेव हैं गोरखनाथ शाह राजवंश के सभी नरेशों ने गुरु गोरखनाथ को अपना इष्टदेव स्वीकारा। नेपाल के शाहवंशी शासकों ने अपने सिक्कों पर गुरु गोरखनाथ की चरण पादुकाओं का चिह्न अंकित कराया। 'श्री श्री गोरखनाथ' उत्कीर्ण कराया। गोरखनाथ को हर वर्ष खिचड़ी चढ़ाते हैं नेपाली नेपाल की जनता एवं शाह राजवंश परम्परागत रूप से महायोगी गोरक्षनाथ को प्रतिवर्ष भारत के गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मन्दिर में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी चढ़ाते हैं। आज भी नेपाली जनता के बीच गोरखनाथ राष्ट्रगुरु के रूप में पूज्य हैं। शाह राजवंश और राणा शासकों के संघर्ष में नेपाली सरकार को लेनी पड़ी थी मदद यह नाथपंथ का नेपाल में प्रभाव और तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ के प्रति आदर ही था कि 1950 के दशक में शाह राजवंश और राणा शासकों में जारी सत्ता संघर्ष के दौर में तत्कालीन सरकार को उनकी मदद लेनी पड़ी थी। बावजूद इसके भारत के प्रति नेपाल का यह रवैया दुखद है। कहते थे ब्रह्मलीन अवेद्यनाथ, कांग्रेस सरकार को दिग्विजयनाथ ने दी थी चेतावनी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के ब्रह्मलीन गुरु अवेद्यनाथ अक्सर यह कहा करते थे कि नेपाल सिर्फ हमारा पड़ोसी मित्र राष्ट्र ही नहीं है, वरन, समान और साझा सांस्कृतिक विरासत के कारण सहोदर भाई जैसा एकात्म राष्ट्र है। नेपाल के प्रति ऐसी ही भावना उनके गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ की भी थी। अपने समय में कई बार उन्होंने नेपाल की उपेक्षा के लिए कांग्रेस को चेताया भी था। वह नेपाल के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप किये बिना भारत से हमेशा सद्भावना मंडल भेजे जाने पर बल देते थे। ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने भी ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ के विचारों का आजीवन अनुकरण किया। नेपाल के प्रति इन्हीं विचारों और नीतियों का समर्थन किया। वह बार-बार भारत सरकार को नेपाल में हो रहे सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के बारे में तत्कालीन सरकारों को सचेत करते रहे। माओवादी गतिविधियां, आईएसआई की पैठ और धर्मांतरण को भारत विरोधी गतिविधियां बताने से गुरेज नहीं की। योगी आदित्यनाथ भी पूर्वजों का करते हैं अनुकरण नेपाल शोध अध्ययन केन्द्र के निदेशक डॉ. प्रदीप राव कहते हैं कि अपने गुरु की इस सोच को योगी आदित्यनाथ भी अक्सर उल्लेख किया करते हैं। ऐसे वक्त में भारत की वर्तमान सरकार को नेपाल के साथ अपने सम्बन्धों को सुदृढ करने के लिये नाथ सम्प्रदाय की आध्यात्मिक उपस्थिति और प्रभाव का सहयोग लेना चाहिये। भारत के लिये एक स्थिर नेपाल सरकार ही हितकर है। ऐसी स्थिति में योगी आदित्यनाथ, भारत सरकार के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/आमोदकांत/सुनीत-hindusthansamachar.in

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