नेपाल के सांसद अभिषेक प्रताप ने की अखिलेश से मुलाकात, बीपी कोइराला पर लिखित पुस्तक की भेंट
नेपाल के सांसद अभिषेक प्रताप ने की अखिलेश से मुलाकात, बीपी कोइराला पर लिखित पुस्तक की भेंट

नेपाल के सांसद अभिषेक प्रताप ने की अखिलेश से मुलाकात, बीपी कोइराला पर लिखित पुस्तक की भेंट

लखनऊ, 25 जून (हि.स.)। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से गुरुवार को नेपाल के सांसद अभिषेक प्रताप शाह ने भेंटकर उन्हें नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के लिए सतत संघर्षरत रहे पूर्व प्रधानमंत्री बीपी कोइराला के जीवन पर किरन मिश्रा द्वारा लिखित पुस्तक 'बीपी कोइराला-लाइफ ऐंड टाइम्स' भेंट की। नेपाली कांग्रेस से निर्वाचित संसद सदस्य अभिषेक प्रताप शाह ने चर्चा में बताया कि बीपी कोइराला के भारतीय नेताओं से प्रगाढ़ सम्बंध थे और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया था। बीपी कोइराला को एक क्रांतिकारी राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रखर लेखक के रूप में याद किया जाता है। अखिलेश यादव ने कहा कि भारत-नेपाल के ऐतिहासिक-सामाजिक रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने के लिए उनके बीच-सद्भाव और सहयोग की भावना बढ़ाना चाहिए। नेपाली जनता की मैत्री भारत के लिए बहुत-महत्वपूर्ण है। बीपी कोइराला राजनीतिक स्तर पर लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के लिए आर्थिक विकास के पक्षधर थे। वे मानते थे कि गरीबी को दूर किए बगैर राजनीतिक आजादी बेमानी होगी। वे नेपाल में सामंती तत्वों और राजतंत्र के विरोध में सतत संघर्षशील रहे। वे देशी संसाधनों के बल पर विकास को गति देना चाहते थे जबकि सामंतशाही विदेशी मदद चाहती थी। वे लोकतंत्र में जनता की भागीदारी के प्रबल समर्थक थे। कोइराला ने भारत की जेलों में चार वर्ष, नेपाल की जेलों में ग्यारह वर्ष और सात वर्ष निर्वासन में बिताए। राजनीतिक जीवन की उथल-पुथल के बीच उन्होंने कई उपन्यास भी लिखे। चर्चा में भारत के आपातकाल पर बीपी कोइराला के विचार भी आए। वे उससे इतने विचलित थे कि उनका कहना था कि नेपाल में राजशाही के अंतर्गत रहना बेहतर होगा बजाय भारत में लोकतांत्रिक महारानी के राज में। उन्होंने तभी नेपाल जाने का निश्चय किया था। यद्यपि उनके साथी वहां जाने के खतरे के प्रति चिंतित थे। बीपी कोइराला का जन्म वाराणसी में 8 सितम्बर 1914 में हुआ था। उनके पिता कृष्ण प्रसाद कोइराला नेपाल में राजाशाही के दौर में आंतरिक सुधारों के लिए लड़ते रहे तो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी कम सक्रिय नहीं थे। महात्मा गांधी के आह्वान पर विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर वे खद्दरधारी हो गए थे। अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए बीपी कोइराला जब कक्षा 9 के छात्र थे तभी ब्रिटिश राज के खिलाफ एक आतंकवादी गुट में शामिल हो गए। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी वे शामिल रहे। उन्होंने वाराणसी के बीएचयू से बैचलर की डिग्री और कलकत्ता से लाॅ की डिग्री ली। कोइराला पहले कम्युनिस्टों के सम्पर्क में आए। लेकिन, उनका मन वहां नहीं रमा। वे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में सक्रिय हुए। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्हें छह महीने बिहार की बांकीपुर जेल में रखा गया। जयप्रकाश नारायण और डॉ. राममनोहर लोहिया उनके निकट मित्र थे। कोइराला ने इसके बाद नेपाल में जनतंत्रीकरण की तरफ मोर्चा खोला और नेपाली राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की इसके बाद तो बीपी कोइराला के दिन आंदोलन और जेल में ही बीते। उन्हें कई बार राणाशाही ने गिरफ्तार किया जेल यंत्रणाएं दी पर बीपी डटे रहे। अंततः राणाशाही समाप्त हुई, महाराजा त्रिभुवन काठमांडो लौटे। 1959 में बीपी कोइराला प्रथम निर्वाचित प्रधानमंत्री चुने गए। 21 जुलाई 1982 को उनका निधन हो गया। हिन्दुस्थान समाचार/संजय/राजेश-hindusthansamachar.in

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