​सैन्य अदालत से सजायाफ्ता लेफ्टिनेंट 26 साल बाद बहाल
​सैन्य अदालत से सजायाफ्ता लेफ्टिनेंट 26 साल बाद बहाल

​सैन्य अदालत से सजायाफ्ता लेफ्टिनेंट 26 साल बाद बहाल

- रक्षा मंत्रालय पर एक करोड़ जुर्माना, सेना के केंद्रीय कल्याण कोष में जमा करने का आदेश - लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक के हिसाब से 26 साल का बकाया वेतन, पेंशन लाभ देने के निर्देश नई दिल्ली, 07 अगस्त (हि.स.)। सैन्य अदालत से सजायाफ्ता सेना के लेफ्टिनेंट को 26 साल बाद सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) ने बहाल कर दिया है। ट्रिब्यूनल ने बहाल हुए लेफ्टिनेंट को 4 करोड़ का भुगतान करने और चार महीने के भीतर सेना के केंद्रीय कल्याण कोष में 1 करोड़ रुपये जमा करने का आदेश रक्षा मंत्रालय को दिया है। साथ ही 26 साल का बकाया वेतन, पेंशन लाभ और लेफ्टिनेंट कर्नल का रैंक देने के आदेश दिए हैं। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के मूल निवासी एसएस चौहान भारतीय सेना की छठी राजपूत बटालियन में सेकेंड लेफ्टिनेंट पद पर श्रीनगर में तैनात थे। 11 अप्रैल, 1990 को श्रीनगर में एक तलाशी अभियान के दौरान उन्होंने 27.5 किलोग्राम वजन के 147 सोने के बिस्कुट बरामद किए। चौहान ने बताया कि यह सोने के बिस्कुट अन्य सैनिकों की उपस्थिति में एक घर से बरामद किए गए थे और उन्हें तत्कालीन कर्नल केआरएस पवार और तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल जकी मोहम्मद अहमद को सौंप दिया गया था। बाद में यह सोने के बिस्कुट सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने 'गायब' कर दिए और आरोप सेकेंड लेफ्टिनेंट एसएस चौहान पर लगा दिया गया। इसी गबन के आरोप में एसएस चौहान पर सैन्य अदालत में मुकदमा चला और इस दौरान उन्हें मानसिक रूप से अस्थिर भी घोषित किया गया था। सैन्य अदालत से 4 नवम्बर, 1991 को उन्हें सजा सुनाई गई और कोर्ट मार्शल के इस आदेश को श्रीनगर के तत्कालीन जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ ने अनुमोदित किया था। सेना से बर्खास्त होने के बाद उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की शरण ली। यह मामला 26 साल सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) में चला। ट्रायल के दौरान ट्रिब्यूनल ने पाया कि चौहान के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें झूठे मामलों में फंसाया ताकि सोने की बरामदगी सरकार से छुपाई जा सके। न्यायाधिकरण के न्यायमूर्ति डीपी सिंह और एयर मार्शल अनिल चोपड़ा ने गुरुवार को फैसला सुनाते हुए चौहान के कोर्ट-मार्शल को गलत बताते हुए रक्षा मंत्रालय को चौहान की बहाली का आदेश दिया। साथ ही उनके 26 साल के बकाया वेतन, पेंशन लाभ और लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक देने के आदेश दिए। दरअसल मौजूदा समय में सेना में सेकेंड लेफ्टिनेंट का पद नहीं है, इसलिए सभी नए अधिकारियों को लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन किया जाता है। न्यायमूर्ति सिंह और एयर मार्शल चोपड़ा ने सेना प्रमुख को भी निर्देश दिया कि इस मामले की चार महीने तक जांच करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों और चौहान को प्रताड़ित करने वाले अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए। ट्रिब्यूनल ने रक्षा मंत्रालय को चौहान को 4 करोड़ का भुगतान करने और चार महीने के भीतर सेना के केंद्रीय कल्याण कोष में 1 करोड़ रुपये जमा करने का आदेश दिया है। क्या होता है कोर्ट मार्शल कोर्ट मार्शल अपने आप में सज़ा नहीं होती बल्कि ये वो कार्रवाई है, जिसके तहत फौजियों को सज़ा सुनाई जाती है। यानी फौज की अदालत. यह तय करने के लिए होती है कि किसी सैनिक से ड्यूटी के दौरान कोई गलती हुई है या नहीं। अगर हुई है तो उसे क्या सज़ा मिलनी चाहिए। मामले की सुनवाई हमेशा आरोपित से सीनियर रैंक का अधिकारी करते हैं। सबसे सीनियर अधिकारी पैनल का अध्यक्ष होता है। सुनवाई के दौरान आरोपित अपने पक्ष में पैरवी के लिए सेना के वकील बुला सकता है। कार्यवाही पूरी होने के बाद कोर्ट अपनी रिपोर्ट सेना के सीनियर अधिकारियों को भेजती है। इसी में सज़ा का ज़िक्र होता है। सीनियर अधिकारी चाहें तो सज़ा घटा या बढ़ा सकते हैं। सज़ा के तौर पर कैद, तनख्वाह में कटौती, रैंक में कमी, वरिष्ठता में कमी, बर्खास्तगी कुछ भी हो सकती है। सबसे बड़ी सज़ा होती है सज़ा-ए-मौत। कोर्ट मार्शल के फैसले को सेना के अंदर चुनौती दी जा सकती है। मिसाल के लिए अगर कर्नल रैंक के अधिकारी का फैसला है तो आरोपित ब्रिगेडियर या किसी दूसरे सीनियर अधिकारी के पास जा सकता है। अगर वहां बात न बने तो आरोपित आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल जा सकता है। इसके बाद हाईकोर्ट का नंबर आता है। हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई कम से कम डिवीज़न बेंच करती है। हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट जाने का भी विकल्प रहता है। हिन्दुस्थान समाचार/सुनीत-hindusthansamachar.in

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