हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा- डिलीवरी से पहले महिला का कोरोना टेस्ट जरूरी या नहीं
हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा- डिलीवरी से पहले महिला का कोरोना टेस्ट जरूरी या नहीं

हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा- डिलीवरी से पहले महिला का कोरोना टेस्ट जरूरी या नहीं

नई दिल्ली, 09 जुलाई (हि.स.)। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा है कि वो इस सवाल का साफ-साफ जवाब दे कि गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी के लिए अस्पताल जाने पर कोरोना का टेस्ट करवाना जरूरी है या नहीं। चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार से पूछा है कि अगर कोरोना से संक्रमित होने का कोई लक्षण नहीं हो तो गर्भवती महिला का टेस्ट कराया जाएगा कि नहीं। इस मामले पर अगली सुनवाई 15 जुलाई को होगी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया था कि दिल्ली सरकार ने जो हलफनामा दिया है उसमें कहा गया है कि रैपिड एंटिजेन टेस्ट गर्भवती महिलाओं का भी होगा लेकिन नोटिफिकेशन में ऐसा नहीं कहा गया है। इस पर दिल्ली सरकार की ओर से कहा गया कि इसमें 48 घंटे लगेंगे। तब कोर्ट ने पूछा था कि क्या इसमें टेस्ट करने और उसका रिजल्ट देने के बीच का समय भी शामिल है। कोर्ट ने कहा था कि हम लक्षण वाले मरीजों की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि हम चाहते हैं कि सभी गर्भवती महिलाओं को चिकित्सा उपलब्ध हो। कोर्ट ने कहा था कि जिस महिला की डिलीवरी होनी है वो टेस्ट के रिजल्ट के लिए पांच-छह दिनों तक इंतजार नहीं कर सकती है। इस पर दिल्ली सरकार ने कहा कि रैपिड एंटिजेन टेस्टिंग से एक घंटे में रिजल्ट आ जाता है। तब कोर्ट ने पूछा कि क्या रैपिड एंटिजेन टेस्ट के निगेटिव रिपोर्ट को स्वीकार किया जा रहा है। क्योंकि इस पर पिछली सुनवाई के दौरान चिंता व्यक्त की गई थी। पिछले एक जुलाई को दिल्ली सरकार ने कहा था कि गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी के लिए अस्पतालों में भर्ती करने के पहले कोरोना का टेस्ट कराना जरूरी नहीं है। दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा था कि गर्भवती महिलाओं की सर्जरी या डिलीवरी कोरोना टेस्ट के लिए नही रोकी जाएगी। सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने कहा था कि गर्भवती महिलाओं का कोरोना टेस्ट अगर पॉजीटिव भी आता है तो उसका साथ-साथ इलाज चलेगा। दिल्ली सरकार ने कहा था कि उसने अस्पतालों में रैपिड एंटिजेन टेस्टिंग के इस्तेमाल का दायरा बढ़ाया है ताकि गर्भवती महिलाओं समेत दूसरे मरीजों का कोरोना टेस्ट में ज्यादा समय नहीं लगे। दिल्ली सरकार ने इस मामले पर विस्तृत हलफनामा दाखिल करने के लिए समय की मांग की थी। सुनवाई के दौरान इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की ओर से वकील विवेक गोयल ने कहा था कि उसने गर्भवती महिलाओं के लिए दिशानिर्देश जारी किया है जिसमें कहा गया है कि कोरोना टेस्ट के लिए किसी की डिलीवरी या सर्जरी रोकी नहीं जाए। उन्होंने कहा था कि आईसीएमआर ये तय नहीं करता है कि किस मरीज की टेस्टिंग को प्राथमिकता दी जाए। याचिका वकील निखिल सिंघवी ने दायर किया था। याचिका में कहा गया है कि गर्भवती महिलाओं की जांच के नतीजों को प्राथमिकता देने के लिए दिशानिर्देश जारी किया जाए। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अगर गर्भवती महिलाओं की कोरोना टेस्ट का रिजल्ट देने में 5 से 7 दिन लगाया जाएगा तब अस्पताल कहेगा कि रिजल्ट 5 दिन पुराना है और इसे फिर से जांच कराइए। कोर्ट ने दिल्ली सरकार और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च आईसीएमआर को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट ने पिछले 12 जून को इस मामले में नोटिस जारी किया था। हिन्दुस्थान समाचार/संजय/सुनीत-hindusthansamachar.in

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