श्रमिकों का दर्द : परिवार को मोहताज होता देखने से बेहतर है परदेस में कोरोना से लड़ना
श्रमिकों का दर्द : परिवार को मोहताज होता देखने से बेहतर है परदेस में कोरोना से लड़ना

श्रमिकों का दर्द : परिवार को मोहताज होता देखने से बेहतर है परदेस में कोरोना से लड़ना

बेगूसराय, 23 अगस्त (हि.स.)। कोरोना वायरस (कोविड-19) ने कई प्रकार की सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां पैदा की है। औद्योगिक, अवसंरचनात्मक विकास, व्यापार आदि से जुड़े गतिविधियों के ठप होने से बड़ी संख्या में श्रमिक के लिए पलायन की स्थिति बन गई। इन परिस्थितियों के मद्देनजर शासन-प्रशासन विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन कर रही है। देश के विभिन्न शहरों से वापस लौटे कामगारों के लिए रोजगार सृजन के साथ-साथ लक्षित समूह तक उसकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन अब तक का प्रयास सभी श्रमिकों को गांव में रोकने में असफल रहा। सरकार द्वारा शुरू किए गए अभियान ने कोरोना से उपजी नकारात्मक सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति के विरुद्ध नई उम्मीद को जन्म दिया है। इस अभियान के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में अवसंरचना निर्माण संबंधी गतिविधियों को बल देकर श्रमिकों के आर्थिक सशक्तिकरण का प्रयास है। यह ऐसी योजना साबित हो सकती है, जिसमें रोजगार सृजन की काफी संभावनाएं हैं। इसके लिए विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन करते हुए प्रवासी श्रमिकों की मदद से बुनियादी ढांचा विकास किया जा रहा है। लेकिन सारी कवायद के बावजूद सरकार श्रमिकों को गांव में रोकने में विफल हो चुकी है। यहां काम नहीं मिलने के कारण रोज पांच सौ से अधिक श्रमिक परदेस जा रहे हैं। देश के तमाम शहरों में कोरोना संक्रमण बढ़ने के बावजूद श्रमिक परदेस जा रहे हैं और यह आपदा अब परदेस में उन्हें अवसर भी उपलब्ध करवा रहा है। लॉकडाउन के कारण जब प्रवासी घर आ गए थे तो देश के विभिन्न शहरों में अनलॉक होने पर फैक्ट्री का संचालन एक गंभीर समस्या बन गई और यही समस्या मजदूरों के लिए अवसर बन गया है। पहले बिहार के श्रमिक जब परदेस जाते थे तो उन्हें काम खोजने के लिए चक्कर लगाना पड़ता था। लेकिन अब बड़े-बड़े उद्योगपति बिहारी श्रमिकों को खोज रहे हैं, उन्हें काम पर बुलाने के लिए एडवांस में मजदूरी ही नहीं स्लीपर और एसी टिकट कटाकर आने के लिए भी पैसा भेजा जा रहा है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कोलकाता से बड़ी-बड़ी वोल्वो एसी बस भेज कर गांव से श्रमिकों को शहर बुलाया जा रहा है। बेगूसराय रेलवे स्टेशन एवं बरौनी रेलवे स्टेशन के काउंटर पर पहले की तरह परदेस जाने के लिए रिजर्वेशन कराने वालों की भीड़ लगने लगा रही है। बेगूसराय स्टेशन से दिल्ली जाने के लिए रिजर्वेशन काउंटर पर खड़े मनोज शर्मा, विनोद शर्मा, मनटुन तांती आदि ने बताया कि लॉकडाउन के कारण परदेस से घर वापस लौट आए थे। यहां चार महीने में परिवार की आर्थिक हालत काफी बदतर हो गई है। स्थाई कोई काम नहीं मिला, जिसके कारण मजबूरी में फिर दिल्ली जा रहे हैं, यहां रहकर करेंगे क्या। सरकार ने हम लोगों के लिए बड़े पैमाने पर अभियान शुरू कराया, ताकि आपदा में हमें सहयोग मिले। लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधि और अधिकारियों के लिए यह आपदा भी कामधेनु गाय बन गई है। योजनाओं में जमकर लूट मचाई जा रही है तो मजबूरी में फिर परदेस का ही सहारा है। यहां रह कर आंखों के सामने परिवार को मोहताज होता देखने से बेहतर है कि परदेस जाकर कोरोना से लड़ते हुए रोजी-रोटी की व्यवस्था की जाए। आगे दुर्गा पूजा और महापर्व छठ है, उसने ही पैसों की जरूरत पड़ेगी तो पैसा कहां से आएगा। हम गरीबों को देखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काफी प्रयास किया। लेकिन स्थानीय स्तर पर हो रही गड़बड़ी के कारण, मचाए जा रहे लूट के कारण इसका समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है। हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र-hindusthansamachar.in

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