विलुप्ति के कगार पर असम का प्रख्यात लोक शिल्प पुतला नृत्य
विलुप्ति के कगार पर असम का प्रख्यात लोक शिल्प पुतला नृत्य

विलुप्ति के कगार पर असम का प्रख्यात लोक शिल्प पुतला नृत्य

गोलाघाट (असम), 21 अगस्त (हि.स.)। असम में पुतला नृत्य का इतिहास बहुत पुराना है। यह रंगमंच पर निभाया जाने वाले प्राचीनतम खेलों में से एक है। अब पूर्व की तरह पुतला नृत्य के कार्यक्रम में दर्शक नहीं आते हैं। इसके बावजूद पुतला नृत्य शिल्पियों की पूरी कोशिश रहती है कि कठपुतली कला को बचाए रखा जाए। असम की प्राचीन लोक कला पुतला नृत्य में भारतीय संस्कृति व लोक कलाओं का प्रतिबिंब झलकता है। यह देश की सांस्कृतिक धरोहर होने के साथ-साथ प्रचार प्रसार का सशक्त माध्यम है। इस कला का इतिहास काफी प्राचीन है। लेकिन, समय के साथ-साथ पुतला नृत्य अब विलुप्ति के कगार पर है। लकड़ी के टुकड़े, कागज, कपड़ा व धागा के जरिए पुतला जब शिल्पियों के हाथों में आते हैं तो मानों जिवित हो उठते हैं। अनेक कलाकार इस पुतला नृत्य के साथ जुड़े हुए हैं। पुतला नृत्य के द्वारा जीवन में प्रचलित आख्यान, धार्मीक कहानियों को दर्शाया जाता है। वर्तमान समय में जीवन समाज व जीवन में परिवर्तन के साथ-साथ पुतला नृत्य भी विलुप्ती की कगार पर है। पुतला नृत्य को आज भी गोलाघाट जिलांतर्गत दैयांग के पुतला नृत्य कलाकार पेंसनार यदु बरुवा सहेज कर रखा है। पुतला नृत्य के विख्यात शिल्पी शरत शैकिया की मौत के बाद दैयांग इलाके में यदु बरुवा इस प्राचीन लोक शिल्प को संरक्षित करने के लिए बहुत कोशिश कर रहे हैं। एक समय लोगों को आनंद देने वाला शंकर ज्योति पुतला थिएटर पुतला नृत्य समय के साथ-साथ खो गये हैं। लेकिन, यदु बरुवा पुतला को अपने घर में सहेज कर रखे हुए हैं। जो आज भी जीवंत दिखाई पड़ता है। उनके पुतलों को देखकर युवा पीढ़ी दंग रह जाती है। हिन्दुस्थान समाचार/ देबोजानी/ अरविंद-hindusthansamachar.in

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