मशरूम और बेबी कॉर्न की खेती ने बदल दी सोनीपत के अटेरना गांव की तकदीर
मशरूम और बेबी कॉर्न की खेती ने बदल दी सोनीपत के अटेरना गांव की तकदीर

मशरूम और बेबी कॉर्न की खेती ने बदल दी सोनीपत के अटेरना गांव की तकदीर

- गांव के हर परिवार ने बेबी कॉर्न की खेती को अपनाया, बन रहे हैं आत्मनिर्भर - पर्यावरण के लिए भी बेबी कॉर्न की खेती है लाभप्रद नई दिल्ली, 04 सितम्बर (हि.स.)। दिल्ली से महज 25 किलोमीटर दूर हरियाणा के सोनीपत जिला स्थित अटेरना गांव इन दिनों चर्चा में है। अटेरना गांव के हर परिवार ने मशरूम और बेबी कॉर्न की खेती को अपनाया है। इन दोनों किस्मों की खेती ने इस गांव की किस्मत बदल दी है। अब गांव के हर परिवार को न केवल रोजगार मिल रहा है बल्कि पशुओं के लिए चारा भी उपलब्ध हो रहा है। अब गांव में मशरूम और बेबी कॉर्न की प्रोसेसिंग भी की जाने लगी है। इन दोनों को प्रोसेस कर इसे अब विदेशों में भी निर्यात किया जाने लगा है। बेबी कॉर्न की अच्छी पैदावार होने के कारण अब इस गांव में तीन चार प्रोसेसिंग युनिट्स भी खुल गई हैं, जिसमें गांव के लोगों को खासकर महिलाओं को बड़ी संख्या में रोजगार मिल रहा है। अटेरना गांव में मशरूम और बेबी कॉर्न की खेती की शुरुआत करने वाले कंवल सिंह चौहान बताते हैं कि बीस साल पहले उन्होंने इन दोनों किस्म की खेती करने की शुरुआत की थी। उस वक्त ये दोनों बहुत नई फसल हुआ करती थी। काफी मेहनत भी करनी पड़ी। लेकिन जब इस खेती से मुनाफा बनता दिखाई दिया तो गांव के अन्य लोग भी इस खेती से जुड़ने लगे। कंवल सिंह बताते हैं कि हरियाणा के सोनीपत में सबसे ज्यादा मशरूम की खेती होती है। इसके साथ गांव में बेबी कॉर्न(मक्का) भी उगा रहे हैं। शादी ब्याह के दिनों में तो दोनों फसलों की बहुत मांग रहती है, लेकिन यहां से बेबी कॉर्न दूसरे देशों में निर्यात भी किया जाता है। वे बताते हैं कि अब गांव के लोगों के साथ दूर दूर से लोग उनसे ट्रेनिंग लेने आते हैं। कंवल सिंह को इस अथक मेहनत के लिए साल 2019 में पदमश्री अवार्ड से भी नवाजा गया है। गांव में बेबी कॉर्न की खेती करने की ट्रेनिंग देने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉ. साईं दास बताते हैं कि बेबी कॉर्न लगाने के कई फायदे होते हैं। यह एक इंटीग्रेटेड फार्मिंग जिसमें फसल के अलावा पशुओं के लिए चारा भी मिलता है जिससे लोग गाय भैंस पाल सकते हैं। यह फसल कम से कम लागत से लगाई जा सकती है और इसका मुनाफा भी अच्छा होता है। आईसीआर के पूर्व निदेशक रह चुके डॉ. साईं के मुताबिक हरियाणा में भूजल स्तर काफी गिर गया है और अगर कृषि के क्षेत्र में बदलाव नहीं किया गया तो आने वाले 30 सालों में भूजल खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि बेबी कॉर्न लगाने से कार्बन उत्सर्जन नहीं होगा क्योंकि मक्का ऑक्सीजन देता है, पानी भी कम सोखता है। खेती किसानी से अलग दृष्टिकोण से इन दोनों के लाभ देखें तो पर्यावरण के लिए भी बेबी कॉर्न वरदान साबित हो रहा है। पहले इस गांव में धान की फसल हुआ करती थी, जिससे भूजल का स्तर गिरने के साथ साथ कार्बन का उत्सर्जन भी काफी होने लगा। इसके साथ फसल के कटने के बाद पराली की समस्या भी पैदा हो जाती थी। इन सभी समस्याओं को देखते हुए हरियाणा सरकार ने अब मक्के की फसल को बढ़ावा देने का मन बना लिया है। इससे लोगों की आमदनी तो बढ़ेगी साथ ही पर्यावरण की सेहत भी सुधरेगी। हिन्दुस्थान समाचार/विजयलक्ष्मी/सुनीत-hindusthansamachar.in

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