झांसी के महाकाली मंदिर से बदला था कांग्रेस का पार्टी का चुनाव चिन्ह
झांसी के महाकाली मंदिर से बदला था कांग्रेस का पार्टी का चुनाव चिन्ह

झांसी के महाकाली मंदिर से बदला था कांग्रेस का पार्टी का चुनाव चिन्ह

- महाकाली के दर पर सिर झुकाकर दोबारा प्रधानमंत्री बनी इंदिरा गांधी ने चढ़ाया था हाथ का पंजा महेश पटैरिया झांसी, 23 अक्टूबर (हि.स.)। बुंदेलखंड की वीरांगना नगरी झांसी का नाम यूं तो वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई के शौर्य और पराक्रम के लिए इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों अंकित है। इसके इतर धर्म के क्षेत्र में भी यहां के महाकाली मंदिर का अपना अलग स्थान है। इस सिद्धपीठ की शक्ति को स्वीकारने और उसके आगे नतमस्तक होने वाले बड़े नामों में एक नाम देश की सबसे शक्तिशाली भूतपूर्व प्रधानमंत्री कही जाने वाली आयरन लेडी इंदिरा गांधी का भी है। जिन्होंने मुसीबत के समय माई के दर पर सिर झुकाया और मां का आर्शीवाद पाकर एक बार भारी बहुमत के साथ फिर से राजयोग प्राप्त किया था। महाकाली विद्यापीठ मंदिर को सिद्धपीठ बनाने वाले बंगाली समाज के गुरु मंत्रशास्त्री पं. प्रेम नारायण त्रिवेदी के नाती मंदिर के व्यवस्थापक और संचालक पं. गोपाल त्रिवेदी ने हिन्दुस्थान समाचार से शुक्रवार को खास बातचीत में मंदिर के गौरवशाली इतिहास के कई पहलुओं पर वार्ता की। उन्होंने बताया कि 1977 में सत्ता से बाहर होकर बुरी तरह से क्षीण हुई कांग्रेस में एक फिर से नवऊर्जा का संचार करने का उपाय खोजती श्रीमती इंदिरा गांधी अपने विशेष सलाहकार लोकपति त्रिपाठी व कमलापति त्रिपाठी के कहने पर भगवती मां काली के दरबार में सिर झुकाने पहुंची थी। माई का आर्शीवाद प्राप्त कर ही उन्होंने कांग्रेस का चुनाव चिंह बदला था। कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिंह “ हाथ का पंजा ” इसी कालियन के मंदिर सिद्धपीठ की देन है। इससे पहले कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह गाय बछड़ा हुआ करता था। 1965 में हुई थी शाक्त मंडल की स्थापना पंडित त्रिवेदी ने बताया कि उनके दादा पं. प्रेम नारायण त्रिवेदी ने झांसी में सबसे पहले 1965 में शाक्त मंडल की स्थापना की थी और मंदिर में लक्षचंडी यज्ञ कराया था। इसके बाद मां भगवती की प्रेरणा से उसी दौरान वह कांग्रेस के कद्दावर नेता और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कमलापति त्रिपाठी के संपर्क में आये। इस दौरान उन्हें गुरूजी के ज्ञान और सिद्धी के बारे में व्यापक जानकारी हुई। जब सत्ता वापसी को लेकर अधीर हुई थी इंदिरा गांधी कमलापति त्रिपाठी कांग्रेसी नेता श्रीमती गांधी के करीबी नेताओं में से थे और 1977 में जब कांग्रेस निस्तेज होकर सत्ता से बाहर हो गयी थी। देश में कांग्रेस विरोधी जबरदस्त लहर थी ऐसे में दोबारा कांग्रेस के वैभव को लौटाने को लेकर श्रीमती गांधी बेहद परेशान थीं। कांग्रेस को इन मुश्किल हालातों से बाहर निकालने के लिए श्रीमती गांधी ने धार्मिक स्थलों की शरण ली थी। उन्होंने कई शक्ति पीठों की यात्रा की और वहां माथा टेका। इसी क्रम में कमलापति त्रिपाठी के माध्यम से उन्हें झांसी की सिद्धपीठ माँ भगवती के मंदिर के बारे में जानकारी हुई और वह माई के दर्शनों के लिए 1978 में झांसी आयी। उन्होंने गुरुजी पं प्रेम नारायण त्रिवेदी से मुलाकात की। उन्होंने पूछा कि पंडित जी मुझे बताएं कि मेरे मन में क्या चल रहा है ? इस पर पं. त्रिवेदी ने कहा कि आप मां भगवती से जो मांग रही हैं वह आपको प्राप्त होने वाले लक्ष्य से बहुत सूक्ष्म है। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जो आप मांग रही हो उससे बहुत अधिक आपको मिलने वाला है। इस पर श्रीमती गांधी और अधीर हो उठीं और उन्होंने पंडित जी से कहा कि मैं नहीं समझ पा रही हूं कि मुझे क्या मिलने वाला है। इस पर गुरु जी ने कहा कि मैं आपके मुखमंडल से आपको देश का प्रधानमंत्री दोबारा बनते देख रहा हूं। पंडित जी की यह बात सुनकर वह अवाक रह गयीं और कहा कि इस समय कांग्रेस के लिए देश में हालात बेहद विपरीत हैं और आप दोबारा प्रधामंत्री बनने की बात कह रहे हैं यह कैसे संभव है ? पंडित जी ने कहा कि यह निश्चित होगा। मां भगवती की कृपा आप पर हैं और आप देश की सत्ता हासिल करेंगी और आपका वैभव पुनः लौटेगा। कांग्रेस पार्टी के पुर्नजीवन के लिए कराई थी विशेष पूजा कांग्रेस में पुर्नजीवन लाने के लिए श्रीमती गांधी के काफी अनुरोध पर पंडित जी ने उन्हें मंदिर में एक विशेष पूजन कराने को कहा। पूजन के बाद पंडित जी ने श्रीमती गांधी को कहा कि मां भगवती प्रेरणा दे रहीं हैं कि आप अपना चुनाव चिंह बदलें। हो सकता है कि इससे कांग्रेस में नवऊर्जा का संचार हो और आपकी पार्टी को नवजीवन मिले। इसके बाद श्रीमती गांधी ने गुरु जी बताए अनुसार मां के आर्शीवाद स्वरुप हाथ के पंजे को अपनी पार्टी का चुनाव चिन्ह बनाया था। मां भगवती की कृपा का मांगा था प्रमाण श्रीमती गांधी ने पंडित जी से मां भगवती की कृपा का संकेत जानने की इच्छा जताई थी। इस पर गुरु जी ने बताया कि चुनाव परिणामों में जब तीन चैथाई से अधिक मत आपकी पार्टी को मिलने लगे तो समझ जाइयेगा कि आप पर मां भगवती की कृपा हो गई है। चुनाव के शुरुआती रुझान देख घबरा गई थी इंदिरा गांधी चुनाव के शुरूआती परिणामों में स्थिति कांग्रेस के विपरीत नजर आई। इस पर वह हो उठी थी। श्रीमती गांधी ने श्री त्रिपाठी से इस बारे में बात की। श्री त्रिपाठी ने पंडित जी ने बात की और उन्हें श्रीमती गांधी की व्याकुलता के बारे में बताया जिस पर पंडित जी ने उन्हें माई के चरणों का नारियल के रुप में आर्शीवाद प्रदान किया। और उसी के बाद परिणाम सामने आने लगे। स्थिति कांग्रेस के पक्ष में बनती गयी और आखिर में अभूतपूर्व बहुमत से कांग्रेस ने यह चुनाव जीता। मां भगवती को चढ़ाया था हाथ का पंजा इस अप्रत्याक्षित जीत के बाद प्रधानमंत्री के रुप में पूरे लाव लश्कर के साथ श्रीमति इंदिरा गांधी मां भगवती काली के द्वार पर पहुंची थी। इस सिद्धपीठ और भगवती मां काली की अकथनीय शक्ति ने देश की सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री को अपनी शक्ति का एहसास कराया और उन्होंने दो बार माँ के चरणों में शीश नमन किया। दूसरी बार मां के आर्शीवाद के रूप में मिला “हाथ का पंजा” भी उन्होंने मंदिर में चढ़ाया था। हिन्दुस्थान समाचार-hindusthansamachar.in

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