चित्रकूट की ‘शीतल जल धारा’ से ‘हनुमान’ को मिली थी ‘लंका दहन’ की ‘तपन’ से मुक्ति
चित्रकूट की ‘शीतल जल धारा’ से ‘हनुमान’ को मिली थी ‘लंका दहन’ की ‘तपन’ से मुक्ति

चित्रकूट की ‘शीतल जल धारा’ से ‘हनुमान’ को मिली थी ‘लंका दहन’ की ‘तपन’ से मुक्ति

-हनुमान धारा के रूप में समूचे विश्व में विख्यात है तपोभूमि चित्रकूट का यह पावन धाम-धारा -शीतल जल से, स्नान और सेवन में मिलती है कई असाध्य रोगों से निजात रतन पटेल चित्रकूट, 09 दिसम्बर (हि.स.)। आध्यात्मिक ऊर्जा से अभिसिंचित विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य बसे सृष्टि के अनादि तीर्थ चित्रकूट के सुप्रसिद्ध स्थल ’हनुमान धारा’ का विशेष महत्व है। इसी पावन धाम पर निकली जलधार से रावण की सोने की लंका का दहन करने वाले प्रभु श्रीराम के भक्त हनुमान के शरीर की तपन शांत हुई थी। देश भर में हनुमान धारा के नाम से विख्यात इस पावन धाम के दर्शन के लिए प्रतिमाह लाखों श्रद्धालुओं का जमावडा लगता है। चित्रकूट की महिमा का गुणगान स्वयं संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में किया है। ’’चित्रकूट निश दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत।‘’ चैपाई के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास जी ने बताया है कि चित्रकूट ही एक मात्र ऐसा पावन धाम है जहां पर प्रभु श्रीराम लखन और सीता के साथ नित्य निवास करते हैं। इस पावन भूमि से भक्त हनुमान का भी गहरा सम्बंध है। विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य बसे चित्रकूट धाम में हनुमान धारा का विशेष महत्व है। यहां पर राम भक्त श्री हनुमान जी को वह सुख और शांति मिली थी जो पूरे ब्राह्मांड में हासिल नहीं हुई। इस पवित तीर्थ स्थल को लेकर किवदंती है कि जब लंका दहन में हनुमान जी भगवान का पूरा शरीर तप गया था। लंका विजय के बाद हनुमान जी ने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम से शरीर के तपन को शांत करने का उपाय पूछा। तब प्रभु श्रीराम ने उन्हें उपाय बताया कि विंध्य पर्वत पर जाएं। जहां पर आदिकाल के ऋषि-मुनियों ने तप किया था। उस पवित्र भूमि की प्राकृतिक सुषमा से युक्त स्थान पर जाकर तप करो। हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत श्रृंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का पाठ 1008 बार किया। जैसे ही उनका अनुष्ठान पूरा हुआ ऊपर से एक जल की धारा प्रकट हो गयी। जलधारा शरीर में पड़ते ही हनुमान जी के शरीर की तपन शांत हुई और शीतलता की प्राप्त हुई। आज भी यहां वह जल धारा के निरंतर गिरती है। इसी वजह से पूरे देश में इस पावनधाम को ’हनुमान धारा’ के रूप में जाना जाता है। इस पवित्र स्थल की महिमा का बखान करते हुए रामायणी कुटी के महंत राम हृदय दास महाराज कहते हैं कि धर्म नगरी चित्रकूट के कण-कण में भगवान श्रीराम का वास है। देश के अन्य तीथों में तो प्रभु कुछ क्षण ही रहे होगें लेकिन चित्रकूट ही एक मात्र ऐसा पावन धाम है जहां भगवान श्रीराम माता सीता और अनुज लखन के साथ नित्य निवास करते हैं। इसी पावन भूमि पर स्थित हनुमान धारा पर लंका का दहन करने वाले रामभक्त हनुमान के शरीर का पतन शांत हुआ था। इस तीर्थ स्थल में विद्यमान हनुमान जी की विशाल मूर्ति पर लगातार गिरने वाली शीतल जलधारा हो देखने एवं पूजन-अर्चन के लिए हनुमान जयंती आदि पर्वो के साथ-साथ हर महीनें देश भर से लाखों श्रद्धालुओं का जमावडा लगता है। कामदगिरि पूर्वी मुखार बिन्द कामतानाथ मंदिर के प्रधान पुजारी भरत शरण दास महाराज चित्रकूट में प्रकटी शीतल जल धारा की महिमा का बखान करते हुए कहते है कि इस पर्वत से निकलने वाली धारा की अलग ही विशेषता है। बताया कि प्राचीन मान्यता है कि इसके जल से स्नान करने से चर्म रोग का समन होने के साथ-साथ पेट सम्बंधी रोग खत्म हो जाते हैं। इसी वजह से देश भर से आने वाले श्रद्धालु हनुमान धारा के पवित्र जल को ले जाना नहीं भूलते। ऊंची पहाड़ी पर स्थित हनुमान धारा में पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 360 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। लेकिन अब रोपवे का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद श्रद्धालुओं को खासी राहत मिल गई है। वहीं उत्तर प्रदेश के बाँदा-चित्रकूट सांसद आर के सिंह पटेल एवं मध्य प्रदेश के सतना सांसद गणेश सिंह का कहना है कि चित्रकूट विश्व के प्रमुख तीर्थो में से एक है। केंद्र की नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार रामायण सर्किट आदि तमाम योजनाओं के माध्यम से भगवान श्रीराम की तपोभूमि रही चित्रकूट के पर्यटन विकास को संकल्पित है। आदि तीर्थ को सड़क, रेल और हवाई मार्ग से जोड़ा जा रहा है। ताकि क्षेत्र का पर्यटन विकास हो सके और स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया हो सके। हिन्दुस्थान समाचार/रतन/राजेश-hindusthansamachar.in

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