गांधी और ग्राम स्वराज
गांधी और ग्राम स्वराज

गांधी और ग्राम स्वराज

डॉ. नाज़ परवीन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज का सपना, श्रेष्ठ मानवीय गुणों से युक्त भारत की समृद्धि एवं विकास की प्रबल संभावनाओं से भरा था। ग्राम स्वराज अर्थात ’आत्मबल का होना।’ गांधी का मानना था कि गांवों की सेवा करने से ही सच्चे स्वराज की स्थापना होगी। जिसके लिए उन्होंने सन् 1909 में ’हिन्द स्वराज’ में समृद्ध समाज की परिकल्पना तैयार की थी। जिसका सीधा सम्बन्ध भारत के सात लाख गांवों के विकास से जुडा था। 10 नवम्बर 1946 के ’हरिजन सेवक’ के अंक में गांधीजी लिखते हैं कि ’गांव वालों में ऐसी कला और कारीगरी का विकास होना चाहिए, जिससे बाहर उनकी पैदा की हुई चीजों की कीमत मिल सके। जब गांवों का पूरा विकास हो जाएगा तो गांव वालों की बुद्धि और आत्मा को संतुष्ट करने वाली कला-कारीगरी के धनी स्त्री-पुरूषों की गांवों में कमी नहीं रहेगी। गांव में कवि होंगे, चित्रकार होंगे, शिल्पी होंगे, भाषा के पण्डित और शोध करने वाले लोग भी होंगे। तब जिन्दगी की ऐसी कोई चीज न होगी जो गांव में न मिले। आज हमारे गांव उजड़े हुए और कूड़े-कचरे के ढेर बने हुए हैं। कल वही सुंदर बगीचे होंगे और ग्रामवासियों को ठगना या उनका शोषण करना असम्भव हो जाएगा।’ गांधी की सत्यनिष्ठा समाज के उपेक्षित, शोषित तथा समाज के उस अन्तिम वंचित व्यक्ति से थी जो सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा था। उसमें महिलाऐं, बच्चे, बूढ़े भी शामिल थे। जिनके लिए उनका स्नेह, आत्मीयता, मानवीय गुणों से लबालब थी। वे ग्रामीण भारत की समस्याओं को कभी नज़रअंदाज नहीं करते थे, इसलिए जीवन भर ग्रामीण भारत की समृद्धि की वकालत करते रहे। ग्रामीण एवं शहरी असमानता को देख गांधी चिंतित थे। उनका मानना था कि भारत की संस्कृति ग्रामीण संस्कृति है। भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का द्वार हमारे गांवों से ही खुल सकता है। उनका कहना था कि जबतक हम अपने गांवों में गरीबी से त्रस्त लोगों की स्थिति में परिवर्तन नहीं लाएंगे, तब तक भारत की स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं होगा और न इसकी प्रगति का सपना पूरा हो सकता है। महात्मा गांधी ने ग्रामीण विकास की आधारशिला चरखा व करघा, ग्रामीण व कुटीर उद्योग, सहकारी खेती, ग्राम पंचायतों व सहकारी संस्थाओं, राजनीति व आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण, अस्पृश्यता निवारण, मद्य निषेध, बुनियादी शिक्षा की रूपरेखा तैयार करके रखी। गांधी का चरखा व करघा एवं ग्रामीण कुटीर उद्योग, बेरोजगारी की समस्या का हथियार बने। आजादी की लड़ाई में चरखा आर्थिक और राजनैतिक अधिकारों की पहचान बना। गांधी जी ने औद्योगिकीकरण का विरोध किया क्योंकि वे बेरोजगारी की समस्या का निदान स्वावलम्बन में मानते थे। उनका कहना था कि ’हमें इस बात पर शक्ति केन्द्रित करनी होगी कि गांव स्वावलम्बी बनें और अपने उपयोग के लिए माल स्वयं तैयार करें। अगर कुटीर उद्योग का यह स्वरूप कायम रखा जाए तो ग्रामीणों को आधुनिक यंत्रों और औजारों को काम में लेने के बारे में मेरा कोई ऐतराज नहीं।’ वे यंत्रों के विरोधी नहीं थे, अपितु उनके पागलपन का विरोध करते थे। 2 अगस्त 1942 के ’हरिजन सेवक’ में गांधीजी लिखते हैं कि ’ग्राम स्वराज की मेरी कल्पना यह है कि वह एक ऐसा पूर्ण प्रजातंत्र होगा, जो अपनी अहम जरूरतों के लिए अपने पड़ोसी पर भी निर्भर नहीं करेगा। फिर भी बहुत-सी दूसरी जरूरतों के लिए जिनमें दूसरों का सहयोग अनिवार्य होगा, वह परस्पर सहयोग से काम लेगा। इस प्रकार हर एक गांव का पहला काम यह होगा कि वह अपनी जरूरत का तमाम अनाज और कपड़े के लिए कपास खुद पैदा कर ले। उसके पास इतनी सुरक्षित जमीन होनी चाहिए जिसमें ढोर चर सकें और गांव के बड़ों व बच्चों के लिए मन बहलाव के साधन और खेलकूद के मैदान वगैरह का बंदोबस्त हो सके। हर एक गांव में गांव की अपनी एक नाटकशाला, पाठशाला और सभा भवन रहेगा। पानी के लिए उसका अपना अलग इन्तजाम होगा जिससे गांव के सभी लोग शुद्ध पानी प्राप्त कर सकें। बुनियादी तालीम के आखिरी दर्जे तक शिक्षा सबके लिए लाजिमी होगी, जहां तक सम्भव हो सकेगा।’ गांधीजी का सपना ऐसे ग्राम स्वराज का था जो भाषा, जाति और धर्म की संकीर्ण भावनाओं से परे हो। वे ऐसे आदर्श समाज की कल्पना करते थे जिसमें हर आंख से आंसू मिटाए जा सकें। कोरोना संकट के इस दौर में जहां दुनिया के बाजार और रोजगार ठप्प हो गए थे, गांधी के उसी ग्राम स्वराज के सपने ने बहुत से लोगों की आर्थिकी को संभाले रखा। दुनियाभर के देशों में जहां मास्क की कमी देखी गई, हमारे भारत में घरों में छोटे-मोटे रोजगार के तौर पर आपदा को अवसर में बदलने के कई उदाहरण पेश किए। जिनमें हाथों से मास्क बनाना, उनमें तरह-तरह की पेन्टिग करके डिजाइनर मास्क तैयार करना शामिल था। जिसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम स्वावलम्बन के सपनों को पुनर्जीवित करने का काम किया। (लेखिका, अधिवक्ता हैं।)-hindusthansamachar.in

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