उचित विपणन प्रबंधन के अभाव के कारण वैश्विक बाजार में नहीं बना सके अपना उचित स्थान: मुंडा
उचित विपणन प्रबंधन के अभाव के कारण वैश्विक बाजार में नहीं बना सके अपना उचित स्थान: मुंडा

उचित विपणन प्रबंधन के अभाव के कारण वैश्विक बाजार में नहीं बना सके अपना उचित स्थान: मुंडा

नई दिल्ली, 24 जुलाई (हि.स.)। केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने शुक्रवार को कहा कि भारत में पारंपरिक जीवन शैली अत्यंत कलात्मक एवं रचनात्मक है, लेकिन हम उचित विपणन प्रबंधन के अभाव के कारण वैश्विक बाजार में अपना उचित स्थान नहीं बना सके। उन्होंने अगरबत्ती का उदाहरण दिया, जिसका अब भारत में ज्यादातर आयात ही होता है। मुंडा ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम नीतिगत अनुसंधान एवं विश्लेषण केंद्र, भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम), शिलांग द्वारा हस्तशिल्प पर आयोजित एक ई-संगोष्ठी ‘उभरता पूर्वोत्तर भारत: हस्तशिल्प में रणनीतिक और विकासात्मक अनिवार्यताएं’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों के बांस का उपयोग बेहतर गुणवत्ता वाली अगरबत्तियां बनाने में किया जा सकता है और इस तरह से इसके आयात के बोझ को कम किया जा सकता है। उन्होंने भगवान गणेश की मूर्तियों का भी उल्लेख किया जो हमारे देश में विभिन्न स्वरूपों में आयात की जाती हैं, जबकि हम उन्हें और भी अधिक कलात्मक तरीके से बनाने में कहीं ज्यादा सक्षम हैं। उन्होंने कहा कि भारत में नेल कटर जैसे बेहद छोटे घरेलू सामान का भी निर्माण नहीं किया जाता है। इसका एकमात्र कारण बेहतर गुणवत्ता वाले स्टील का अभाव है, जबकि हमारा देश लौह अयस्क का निर्यात करता है। जनजातीय कार्य मंत्री ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण जैविक कृषि उत्पादों का उत्पादन करने के लिए सभी पूर्वोत्तर राज्यों को अत्यंत आसानी से जैविक राज्यों में परिवर्तित किया जा सकता है। उन्होंने विशेष जोर देते हुए कहा कि हमारे कारीगरों के कौशल को उन्नत करके उनके कारोबारी नजरिए को ‘उद्यमिता’ द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। कौशल बढ़ाना समय की मांग है। उन्होंने कहा कि हमारी बाजार जरूरतों को पूरा करने के लिए एक उचित कार्य योजना तैयार करनी होगी, क्योंकि इसके अभाव में उच्च लागत वाले कम गुणवत्तापूर्ण उत्पाद तैयार होते हैं। हमें अपने कारीगरों के कौशल उन्नयन पर ध्यान देना चाहिए। हमें यह पता लगाना चाहिए कि हमारे कारीगरों के उत्पादों की वैश्विक बाजार में कितनी संभावनाएं हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि हमारे कारीगरों के उत्पाद आकर्षक एवं मनमोहक होने चाहिए और उनकी लागत कम होनी चाहिए तथा गुणवत्ता बेहतरीन होनी चाहिए। केंद्रीय मंत्री ने विदेशी उत्पादों पर निर्भरता घटाने पर जोर दिया और कहा कि आईआईएम जैसे संस्थान हमारे कारीगरों के लिए वैश्विक बाजारों की तलाश करके इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। मंत्री महोदय ने कहा कि उन्हें छोटे कारीगरों को बड़े उद्योगों से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि हस्तशिल्प पर ई-संगोष्ठी दरअसल ई-सिम्पोजिया सीरीज का एक हिस्सा है, जिसे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम नीतिगत अनुसंधान एवं विश्लेषण केंद्र, भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम), शिलांग द्वारा शुरू किया गया है। ई-संगोष्ठी श्रृंखला की परिकल्पना एक ऐसे प्लेटफॉर्म के रूप में की गई है जो पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास पहलों पर चर्चाएं एवं विचार-विमर्श करने के लिए नीति निर्माताओं, विद्वानों, संस्थानों, कॉरपोरेट्स और सिविल सोसायटी को एक मंच पर लाती है। हिन्दुस्थान समाचार/अजीत/बच्चन-hindusthansamachar.in

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in