असली-बीमारियां-और-दवाईयां-(व्यंग्य)
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असली बीमारियां और दवाईयां (व्यंग्य)

पिछले दिनों वही सज्जन फिर आए लेकिन घंटी का स्विच नहीं दबाया क्यूंकि वक़्त बीमार होने के कारण अपने हाथ को उसका स्पर्श नहीं देना चाहते थे। गेट पर दो तीन हाथ मार दिए, घर में कोई है, कोई है पुकारने लगे। शायद उन्हें याद नहीं रहा शहर में कोरोना क्लिक »-www.prabhasakshi.com

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