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महिलायें गोबर से बना रहीं हवनकुंड पात्र, दे रहीं हजारों को रोजगार

डॉ. मयंक चतुर्वेदी भोपाल, 01 जून (हि.स.)। छोटा सा निरंतर किया गया प्रयास देखते ही देखते कब बड़ा हो जाता है, इसका आभास तब होता है, जब हम वस्तुस्थिति को समग्रता में देखते और परखते हैं। मध्यप्रदेश के जबलपुर से ऐसी ही खबर आई है। यहां महिलाओं के एक समूह ने गोबर से हवनकुंड पात्र बनाकर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में सफल रही हैं और हजारों लोगों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रही हैं। 'दीनदयाल अंत्योदय राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन' के अंतर्गत जबलपुर जिले के पनागर विकासखंड में संचालित स्व-सहायता समूह ने आजीविका के लिए नित नए प्रयोग के तहत अनूठा काम कर दिखाया है। स्थानीय महिलाओं ने इकट्ठे आकर गाय के गोबर से हवनकुंड पात्र का निर्माण करना आरंभ कर दिया, जिसकी मांग आज न केवल मध्य प्रदेश में है, बल्कि राज्य के बाहर कई प्रदेशों में भी होने लगी है। इस रचनात्मक कार्य की शुरुआत ग्राम पंचायत सुंदरपुर के स्व-सहायता समूह गार्गी, अदिति, अपाला, अहिल्या, अनुसूइया और एकता समूह की लगभग 75 महिला सदस्यों ने की थी। अब हजारों लोगों को यह महिलाएं सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मुहैया करा रही हैं। रखा जाता है वैज्ञानिकता और धार्मिकता का ध्यान जिन हवन कुण्डों का निर्माण ये महिला समूह कर रही हैं, उनमें वैज्ञानिक व धार्मिक दोनों तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। सुंदरपुर ग्राम की आजीविका मिशन की समन्वयक रिशा पांडेय बताती हैं कि हवन कुण्ड निर्माण में गोबर के साथ सुगंधित जड़ी-बूटी जैसे मालकांगनी, बावुजी, बेलगिरी, हरड़, बहेड़ा, वन तुलसी, कपूर कचरी, नीलगिरी, गोंद, अजमोद, अमलतास, गोरखमुंडी, चंदन चौरा, सिंदूरी पलाश, अर्जुन, गिलोय का उपयोग प्रमुखता से किया जाता है। हवन कुण्ड निर्माण में होता है जड़ी-बूटियों का उपयोग रिशा पांडेय कहती हैं कि इसके अतिरिक्त पीपल व बेल के पत्ते, गेंदे के फूल, देशी कपूर, अकौआ के पत्ते और तुलसी की मंजरी भी मिलाई जाती है। यहां विशेष यह है कि निर्माण से लेकर पैकिंग तक का समस्त कार्य महिलाओं के द्वारा किया जा रहा है। आगे उन्होंने जानकारी दी कि कई स्वयंसेवी संस्थानों के साथ-साथ खुले बाजार में अकेले गायत्री शक्तिपीठ परिवार द्वारा भी इन हवनकुंडों का स्व-सहायता समूह से बड़ी संख्या में क्रय किया जा रहा है। कुछ महिलाएं प्रेरित होकर बना रहीं अन्य उत्पादन रिशा कहती हैं कि निर्माण के उपरांत कुछ व्यासायिक संस्थानों द्वारा इन्हें बाजार उपलब्ध कराने का भी प्रयास किया गया, जो पूरी तरह सफल साबित हुआ है। वे यह भी बताती हैं कि समूह से जुड़ी महिलाएं इस प्रयोग से आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर हो रहीं हैं। कुछ महिलाएं हवन कुंड के साथ गाय के गोबर से अन्य उत्पाद जैसे- गौ काष्ठ, समिधा आदि भी बनाने का प्रयास कर रही हैं। मेलों और प्रदर्शनियों में मिली सराहना उत्पादों को समय-समय पर प्रदेश भर में लगने वाले मेलों व प्रदर्शनी में भी प्रदर्शित किया जाता रहा है। ओजस्विनी मेला, हितकारिणी महिला महाविद्यालय स्वरोजगार प्रदर्शनी, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की प्रदर्शनी में इन्हें अब तक बहुत अधिक सराहा गया है। उच्च शिक्षा भी ग्रहण कर रहीं महिलाएं रिशा पांडेय बहुत ही फक्र के साथ यह भी कहती हैं कि समूह की महिलाएं जो विद्यालय शिक्षा के बाद पढ़ाई छोड़कर घर पर बैठी थीं, उनको भी मिशन के माध्यम से और मध्य प्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत नि:शुल्क शिक्षा प्रदान किया जा रहा है। यही नहीं, बल्कि उनके बच्चों को भी उच्च शिक्षा दिलवाई जा रही है। जिसमें शासकीय अनुदान प्राप्त हितकारिणी महिला महाविद्यालय, खमरिया शासकीय महाविद्यालय, कौशल विकास केन्द्र रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय का विशेष सहयोग प्राप्त होता है। कहना होगा कि ये महिलाएं वास्तव में ''आत्मनिर्भर भारत'' की ओर एक कदम आजीविका, मिशन के साथ बढ़ा रही हैं। जिसमें केंद्र व राज्य शासन का भरपूर सहयोग प्राप्त हो रहा है। छोटे-छोटे प्रयास गढ़ रहे आत्म-निर्भर भारत की तस्वीर सच बात यह है कि देश में रोजगार के ऐसे छोटे-छोटे प्रयास भारत की नई तस्वीर गढ़ रहे हैं। देश में कोरोना के कारण लम्बा लॉकडाउन लगा, दुनिया के तमाम देशों एवं आर्थिक विश्लेषकों ने एक सुर में कहा कि इससे भारत की आर्थिक तौर पर कमर टूट जाएगी। लेकिन इन प्रयासों से देश की नई तस्वीर प्रस्तुत हो रही है। देश की जीडीपी 1.6 फीसदी बढ़ी पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में जीडीपी 1.6 फीसदी बढ़ी है। इससे यह संकेत मिलते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर से पहले देश की अर्थव्यवस्था रिकवरी के रास्ते पर है। छोटे-छोटे रोजगार के प्रयास सतत भारत को आर्थिक रूप से कोरोना के विकट संकटकाल में भी गति प्रदान करने वाले साबित हो रहे हैं। हिन्दुस्थान समाचार

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