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नए का स्वागत करें लेकिन पुराने को भी यथोचित स्थान दे भाजपा : कर्नल बागची

कोलकाता, 12 अप्रैल (हि. स.)। पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी को जमाने वालों में से एक सेवानिवृत्त कर्नल सब्यसाची बागची ने आज कहा कि भाजपा पार्टी में आने वाले नए लोगों का स्वागत अवश्य करे लेकिन पुराने साथियों काे भी यथोचित सम्मान दे। सेवानिवृत्त कर्नल बागची ने सेना की नौकरी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर प्रतिकूल परिस्थितियों में पार्टी के लिये काम किया था। भाजपा की वर्तमान स्थिति के संबंध में वे आज क्या सोचते हैं? चुनाव को लेकर उनकी क्या राय है? इस संबंध में आज हिन्दुस्थान समाचार ने कर्नल बागची से बातचीत की। कर्नल बागची ने पार्टी के संबंध में अपनी राय रखते हुए कहा कि, "मैं अपनी चेतना के आदि पर्व से ही संघ का अनुयायी रहा हूं। मेरे विचार में पार्टी में नए लोगों का स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन साथ ही जो पुराने लोग हैं, उन्हें भी सम्मान मिलना चाहिए। जिस तरह परिवार में माता-पिता या बड़ों को सम्मान देना भारत की परंपरा रही है। यही सनातन रीति है। हमें याद रखना होगा कि भाजपा एक परिवार की तरह है।" 1963 में भारतीय सेना में शामिल हुए बागची ने 27 वर्ष तक देश की सेवा की। उसके उपरांत उन्होंने कर्नल के पद पर रहते हुए स्वैच्छिक अवकाश लिया। इस बारे में उन्होंने बतायाकि, "मैं चाहता तो और 10 साल तक सेना को अपनी सेवाएं दे सकता था। कार्य अवधि पूर्ण करने पर संभवत: मैं मेजर जनरल होता 1990 में सेना से अवकाश ग्रहण करते ही मैं भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गया। उस वक्त सुकुमार बनर्जी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे। बाद तपन सिकदर के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए भी पार्टी के लिए काम किया। जोलु मुखर्जी के समय में मैं प्रदेश उपाध्यक्ष था। उस वक्त पार्टी में इतने पद नहीं थे। एक दायरे में सिमट कर काम करना पड़ता था।" आज पार्टी में कैसा परिवर्तन आप देख रहे हैं? इस सवाल पर कर्नल बागची ने कहा कि, "स्कूल के समय से ही आरएसएस से जुड़ गया था। बाद में फौज में शामिल हो गया। फौज से बाहर निकलने के बाद करीब दो दशकों तक प्रदेश भाजपा के अहम नीति निर्धारकों में शामिल रहा। धन दौलत की कमी थी, काफी तकलीफ में गुजारा होता था। उस वक्त परिवार छोटा हुआ करता था, आज पार्टी का परिवार बहुत बड़ा हो चुका है। पार्टी में कई लोग अपना व्यक्तिगत हित साधने के लिए शामिल हो रहे हैं। हम तो दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आदर्शों के आधार पर काम किया करते थे। नानाजी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेई को करीब से देखा। आज उन आदर्शों से पार्टी विमुख होती नजर आ रही है। किन आदर्शों की बात कर रहे हैं आप? इस पर उन्होंने कहा कि आत्मीयता, पारस्परिक संबंध, नैतिकता पूर्ण राजनीति, एकात्म मानववाद आदि अन्य चीजें आज बिल्कुल नजर नहीं आ रही। सब कुछ भूल कर किसी भी तरह सत्ता हासिल करना जैसे एकमात्र लक्ष्य हो चला है, लेकिन समय के साथ बदलाव तो स्वाभाविक है? इस पर कर्नल बागची कहते हैं कि यह सही है पावर पॉलिटिक्स ने राजनीति की चाल चरित्र बदल दी है। एक अजीब सा वातावरण बन गया है, जहां मूल्य बोध का खासा अभाव है। असली मकसद गद्दी हासिल करना है। अगर यही चलता रहा तो पार्टी की हालत वैसी ही हो जायेगी जैसी वैल्यूलेस पॉलिटिक्स की वजह से कांग्रेस की हुई है।" आप इतनी मुखरता से आदर्शों की बात करते हैं लेकिन संघ के आदर्शों में विश्वास होने के बावजूद आप भाजपा छोड़कर तृणमूल में क्यों चले गये? इस पर कर्नल बागची कहते हैं, "हां, 2010 की शुरुआत में मैं तृणमूल में शामिल हुआ था। मेरा उद्देश्य था सीपीएम के 34 सालों के शासन का अंत करना। राज्य में राजनीतिक परिवर्तन के बाद सात सालों तक लघु उद्योग विकास निगम के चेयरमैन के तौर पर काम करने का अवसर मिला। 2018 के मार्च महीने में मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर मैंने वहां से भी मुक्ति ले ली। वजह थी मेरी शारीरिक अस्वस्थता। उसके बाद फिर भाजपा में लौटने की कोशिश नहीं की। हां, पार्टी के विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होता रहता हूं।" उन्होंने कहा कि राज्य में बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है। इसे कहते हैं पैराडाइम शिफ्ट। ऐसा नहीं हुआ तो सोनार बांग्ला वापस नहीं लौटाया जा सकेगा। बिधान चंद्र राय के बाद बंगाल की लगातार अवनति हुई है। केंद्र के साथ राज्य लगातार टकराव की राह पर चलता रहा है। ऐसा किसी विकसित देश में नहीं होता। इस चुनाव में भाजपा का जीतना बहुत जरूरी है अन्यथा, सिर्फ पिछड़ापन ही नहीं बंगाल घोर अंधेरे में भी डूब जाएगा और पश्चिम बंगाल की जगह पश्चिम बांग्ला देश बन जाएगा। एक सभ्यता इतिहास बन कर रह जाएगी। आज की भाजपा को आप कोई सलाह देना चाहेंगे? इस पर उन्होंने कहा कि नए लोग पार्टी में आ रहे हैं। मेरा मानना है कि आप कांटे से ही कांटा निकाल सकते हैं लेकिन बाद में दोनों कांटों को समय रहते फेंक देना पड़ता है, नहीं तो फिर मुश्किल होती है। यह काम आसान नहीं है। इसी वजह से थोड़ा सा डर भी लग रहा है। इन बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा कि मैंने कहा कि भाजपा एक परिवार की तरह है इस बात का स्मरण रखते हुए सनातन मूल्य बोध को सदैव अहमियत देनी होगी। हिन्दुस्थान समाचार/मधुप

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