विकास दुबे मुठभेड़ की जांच करेगा तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग
विकास दुबे मुठभेड़ की जांच करेगा तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग

विकास दुबे मुठभेड़ की जांच करेगा तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग

- इस कमेटी में हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस शशिकांत अग्रवाल और पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता भी शामिल - सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को 2 महीने में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया नई दिल्ली, 22 जुलाई (हि.स.)। विकास दुबे मुठभेड़ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बीएस चौहान के नेतृत्व में तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग के गठन पर मुहर लगाई है। इस कमेटी में हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस शशिकांत अग्रवाल और पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक आयोग सभी पहलुओं को देखेगा। आयोग यह भी देखेगा कि गंभीर मुकदमों के रहते दुबे जेल से बाहर कैसे था। आयोग एक हफ्ते में अपना काम शुरू करेगा। कोर्ट ने आयोग को 2 महीने में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया। कोर्ट ने साफ किया कि आयोग के चलते 2-3 जुलाई को मुठभेड़ में मारे गए पुलिसकर्मियों को लेकर चल रहे ट्रायल पर कोई असर नहीं पड़ेगा। केंद्र सरकार आयोग को स्टाफ उपलब्ध कराएगी। कोर्ट ने जांच की निगरानी करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि वे ये सुनिश्चित करें कि आगे से ऐसी घटना दोबारा नहीं हो। सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि इलाहाबाद के रहने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बीएस चौहान से न्यायिक आयोग में शामिल होने का आग्रह किया गया है। वे इससे सहमत हैं। यूपी सरकार ने पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता का नाम भी प्रस्तावित किया। तुषार मेहता ने कहा कि कमेटी विकास दुबे के एनकाउंटर के साथ पूरे मामले को देखेगी। यह भी देखा जाएगा कि दुबे को कौन लोग संरक्षण दे रहे थे। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण पहलू यही है कि इतने गंभीर मुकदमों के रहते वो जेल से बाहर कैसे था? सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने यूपी सरकार की तरफ से आयोग के सदस्यों के नाम तय किए जाने पर एतराज जताया। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि मैंने जस्टिस चौहान के साथ काम किया है। शायद मैं भी अपनी तरफ से उनका ही नाम सुझाता। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 20 जुलाई को संकेत दिया था कि वो इस मामले में यूपी सरकार की ओर से बनाई गई न्यायिक कमेटी का पुर्नगठन करेगा। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि क़ानून का शासन कायम करना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है।गिरफ्तारी, ट्रायल और फिर अदालत से सजा, यही न्यायिक प्रकिया है। कोर्ट ने कहा कि कानून का शासन हो तो पुलिस कभी हतोत्साहित होंगी ही नहीं। कोर्ट ने पूछा था कि इतने केस लंबित रहने के बावजूद विकास दुबे को ज़मानत कैसे मिल गई। कोर्ट ने कहा कि ये पहलू भी देखा जाए कि मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री जैसे लोगों ने क्या बयान दिए? क्या उनके कहे मुताबिक वैसा ही पुलिस ने भी किया? दरअसल सुनवाई के दौरान याचिकर्ताओं ने एनकाउंटर को लेकर दिये इन बयानों का हवाला देते हुए यूपी सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए स्वतंत्र जांच की मांग की थी। यूपी सरकार ने पिछले 17 जुलाई को विकास दूबे एनकाउंटर मामले में सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल कर एनकाउंटर को सही बताया था। यूपी सरकार ने कहा है कि एनकाउंटर को फर्जी नहीं कहा जा सकता। इसे लेकर किसी तरह का संशय नहीं रहे इसके लिए सरकार ने सभी तरह का कदम उठाया है। इस मामले में दो याचिकाएं दायर की गई थीं। एक याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील अनूप प्रकाश अवस्थी ने दायर की थी। इस याचिका में 2 जुलाई को 8 पुलिस वालों की हत्या के मामले में भी सीबीआई या एसआईटी से जांच कराने की मांग की गई है। अनूप अवस्थी का कहना था कि पुलिस, राजनेता और अपराधियों के गठजोड़ की तह तक पहुंचना ज़रूरी है। दूसरी याचिका एनजीओ पीपुल्स युनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने दायर करके इस एनकाउंटर की न्यायिक जांच की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि त्वरित न्याय के नाम पर पुलिस इस तरह कानून अपने हाथ में नहीं ले सकती है। हिन्दुस्थान समाचार/संजय/सुनीत/बच्चन-hindusthansamachar.in

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