वेंकैया नायडू ने वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित तमाम गुरुओं का किया स्मरण
वेंकैया नायडू ने वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित तमाम गुरुओं का किया स्मरण

वेंकैया नायडू ने वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित तमाम गुरुओं का किया स्मरण

नई दिल्ली, 04 जुलाई (हि.स.)। उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने शनिवार को जीवन यात्रा के विभिन्न चरणों में गुरुओं के दृष्टिकोण और जीवन को आकार देने वाले वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित अन्य तमाम गुरुओं का स्मरण किया। उन्होंने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हर व्यक्ति से आग्रह किया कि वह कुछ समय अपने जीवन में निकालें और अपने गुरुओं, शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें जिन्होंने जीवन के हर दौर में हर स्तर पर मार्गदर्शन प्रदान किया है। नायडू ने अपने फेसबुक वॉल पर एक लेख में कहा है कि राजनैतिक जीवन के प्रारंभिक दिनों में उन्हें आंध्र प्रदेश के प्रख्यात स्वाधीनता सेनानी तेन्नती विश्वनाथम के सान्निध्य का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बाद में राष्ट्रीय स्तर पर मुझे एल के आडवाणी के मार्गदर्शन का सुयोग प्राप्त हुआ। पंद्रह महीने की अल्प आयु में अपनी मां को खोने वाले नायडू ने अपने दादा-दादी को अपना पहला ‘गुरु’ बताया और स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय के दिनों में उन्हें प्रभावित करने वाले 55 शिक्षकों को याद किया। उप राष्ट्रपति ने 'गुरु-शिष्य परम्परा' की भारतीय परंपरा में चरित्र निर्माण सहित 'शिष्य' के समग्र विकास में 'गुरु' की भूमिका के लिए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। नायडू ने प्रौद्योगिकी के वर्तमान युग में शिक्षकों से व्यक्तिगत स्पर्श के साथ शिक्षा प्रदान करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि गुरु के बिना जीवन ऐसा ही है जैसे मानो प्रकाश बिना अंधकारमय मार्ग। उन्होंने कहा कि तेज़ी से बदलते विश्व में शिक्षा का परिदृश्य भी बदल रहा है। कक्षाएं अब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर होने लगी हैं। महामारी के कारण हुई बंदी के कारण स्कूल, कॉलेज तथा अन्य शिक्षण संस्थान ऑनलाइन कक्षाएं चला रहे हैं। यद्यपि आज के संदर्भ में ऑनलाइन शिक्षा ही एकमात्र विकल्प उपलब्ध है, फिर भी शिक्षकों को मेरा परामर्श होगा कि वे अपनी सनातन गुरु शिष्य परंपरा के अनुरूप छात्रों के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास पर ध्यान दें। शिक्षा को रोचक बनाने के लिए वैयक्तिक संपर्क और संवाद आवश्यक हैं। नायडू ने कहा, वर्तमान परिस्थितियों में अपेक्षित है कि शिक्षक अपने शिष्यों पर और अधिक ध्यान दें, उनका मार्गदर्शन करें और देखें कि उनकी पढ़ाई बाधित न हो। गुरुओं और शिक्षकों ने सदा ही अपने शिष्यों की सहायता की है जिससे कि वे अपनी क्षमता अनुसार जीवन में स्थान हासिल कर सके। इंटरनेट आपको दुनिया भर की तमाम जानकारी तो उपलब्ध करा सकता है पर उस जानकारी के सम्यक विश्लेषण और किसी परिपेक्ष्य में उनके मूल्यांकन की क्षमता तो गुरु ही प्रदान करता है। विश्लेषण की यह क्षमता ही शिक्षा को ज्ञान और कौशल के उच्चतर स्तर पर ले जाती है। यह कौशल ही व्यक्ति को जीवन की कठिन स्थितियों का सामना करने में सक्षम बनाता है। उन्होंने कहा कि यद्यपि टेक्नोलॉजी आज हमारे जीवन के हर आयाम में व्याप्त है फिर भी गुरु का कोई विकल्प नहीं, क्योंकि वो न सिर्फ ज्ञान देता है बल्कि संस्कार भी देता है, दया, करुणा और अनुशासन जैसे मानवीय गुण प्रदान करता है। नायडू ने रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच गुरु-शिष्य संबंध की प्रेरक गाथा को याद करते हुए कहा कि दोनों अलग-अलग पृष्ठभूमि से आए थे, दोनों की आस्थाएं और विश्वास भी भिन्न थे बल्कि एक दूसरे के विपरीत थे। बहुत समय तक तो विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु स्वीकार ही नहीं किया बल्कि उनके विचारों को चुनौती देते थे। अपने पिता की मृत्यु के बाद विवेकानंद को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, तब वे मार्गदर्शन के लिए रामकृष्ण परमहंस की तरफ लौटे। यह उनके जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव था। इसके बाद ही स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस के मार्गदर्शन में अपनी आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ की। वेंकैया ने कहा, वर्तमान संदर्भों में भी गुरु ही करोड़ों बच्चों और युवाओं के सबसे महत्त्वपूर्ण पथप्रदर्शक हैं जो उनके जीवन को दिशा दे रहे हैं, उसे आकार प्रदान कर रहे हैं। राष्ट्र के प्रति उनका महान दायित्व है कि वे न केवल विद्यार्थियों को शिक्षा दें बल्कि उनमें दया, त्याग, करुणा, निष्ठा, अनुशासन, संकल्प जैसे संस्कार भी पैदा करें। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सत्य ही कहा है " जो शिक्षा चरित्र का निर्माण न करे, वह व्यर्थ है"। शिष्यों में संस्कार पैदा करने के लिए आवश्यक है कि उनके सामने उदाहरण प्रस्तुत किया जाय।इसके लिए शिक्षकों को स्वयं संस्कारों का अनुकरणीय मानदंड स्थापित करना होगा। हिन्दुस्थान समाचार/सुशील/बच्चन-hindusthansamachar.in

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