उप्र: सरकारी प्रयास से पूर्वांचल में बदल रही कृषि-बागवानी की सूरत

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गोरखपुर, 21 जून (हि.स.)। कभी घाटे का सौदा मानी जाने वाली खेती-बागवानी की सूरत अब बदल रही है। केंद्र एवं प्रदेश सरकार से मिल रही सुविधाओं एवं जरूरी संसाधन ने पढ़े-लिखे युवाओं को भी खेती-बागवानी की ओर आकर्षित किया है। अब कृषि, अर्थव्यवस्था का नया आधार बनने लगी है। कृषि-बागवानी उत्पाद विदेशों में धाक जमा रहे हैं। हालांकि, ऑर्गेनिक खेती-बागवानी के अभाव में अभी आशातीत सफलता नहीं मिल पा रही है। 28 अक्टूबर 2020 से शुरू और 28 अक्टूबर 2023 तक चलाने वाली योजना को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी खासे गंभीर हैं। इसलिए यह सरकार किसानों को अनुदान के रूप में सहयोग दे रही है। खेती और बागवानी से जुड़ी सभी सुविधाएं दी जा रहीं हैं। इन जिलों के इतने किसानों को सुविधाएं देवरिया से 1500, गोरखपुर से 1000, गोंडा से 500, बलरामपुर से 250, सिद्धार्थनगर से 250, बहराइच से 1250, श्रावस्ती से 1250, बाराबंकी से 500, अयोध्या से 750 किसान इस योजना से जुड़े हैं। इनको किसान उत्पादक संघ बना कर जोड़ा गया है। सात हजार किसानों को सिखाया जा रहा गुर किसानों को खेती-किसानी और उत्पादों को बेचने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार ने पार्टिसिपेटरी रूरल डेवलपमेंट फाउंडेशन एवं कृषि विभाग को नॉलेज पार्टनर बनाया है। इसके माध्यम से पूर्वांचल के 09 जिलों के सात हजार किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। वर्ष 2023 तक चलने वाली इस योजना से किसान अब जैविक खेती के लिए अत्याधुनिक एवं वैज्ञानिक गुर सीख रहे हैं। इसके अलावा उत्पाद के प्रसंस्करण, उसकी पैकिंग, ब्रांडिंग, मार्केटिंग की विधाओं से किसानों को अवगत कराया जा रहा। वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन से संवर रहा भविष्य किसानों को वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है। महायोगी गुरु गोरक्षनाथ कृषि विभाग केंद्र एवं कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के वैज्ञानिक, किसानों को प्रशिक्षित कर प्रेरित कर रहे हैं। हिन्दुस्तान उवर्रक रसायन लिमिटेड (एचयूआरएल) भी किसानों को वर्मी कम्पोस्ट के लिए प्रशिक्षित-प्रेरित करने के साथ स्वयं भी उत्पादन कर रहा है। गोरक्षपीठ की गोशाला में भी कम्पोस्ट खाद बन रही है। विभिन्न गोशालाओं में भी इस पर जोर है। जिला पंचायत राज विभाग, गांव में किसानों को इस बाबत प्रेरित कर रहा। कलस्टर आधारित खेती से किसान सहकार कृषि विभाग, उद्यान विभाग, नाबार्ड का कलस्टर आधारित कृषि पर जोर है। ग्रामीण क्षेत्रों के कृषि उत्पादक संगठनों को अनुदान पर जरूरी संसाधन व प्रशिक्षण मुहैय्या कराया जा रहा है। अब वे स्थानीय जलवायु, बाजार की मांग के मुताबिक समय से परम्परागत फसलों के साथ सब्जियों, फूल, जड़ी बूटी, रेशम, फल, शहद उत्पादन सरीखे कार्य करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इन्हें सोलर वॉटर पम्प, फसलों के बीज, सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर, ड्रीप एरिगेशन, रेनगन सरीखी उन्नत सिंचाई सुविधाएं अनुदान पर उपलब्ध कराई जा रही है। किसानों की आमदनी में ज्यादा इजाफा के लिए पारम्परिक खेती के साथ पशुपालन, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पादन, बकरी पालन, मुर्गी पालन सरीखी योजनाओं से भी जोड़ा जा रहा है। किसान क्रेडिट कार्ड व प्रधानमंत्री फसल सुरक्षा बीमा योजना से आच्छादित किया जा रहा है। बीज उत्पादन कर रहे पूर्वांचल के चिह्नित किसान पूर्वांचल के चिन्हित किसान अब बीज उत्पादन कर रहे हैं। इससे किसानों को उनकी जलवायु एवं स्थानीय मिट्टी की जरूरत के मुताबिक बीज उपलब्ध होने का रास्ता साफ होने लगा है। कहते हैं जानकर हेरिटेज फांउडेशन की ट्रस्टी रंजीता पाण्डेय कहती हैं पूर्वांचल में कृषि और बागवानी सेक्टर में अब असीमित अवसर हैं। कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों में छोटे-बड़े लाखों लोग लाभांवित हो रहे हैं। पूर्वांचल में जैविक खेती पर जोर पूर्वांचल के किसानों की आय बढ़ाने वाली साबित हो रही है। इधर, सरकारें भी अब इन्हें जैविक खेती से जोड़ कर एक उद्यमी के रूप में खड़ा करने की कोशिश कर रहीं हैं। हिन्दुस्थान समाचार/आमोदकान्त/राजेश

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