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सुप्रीम कोर्ट ने उपभोक्ता पैनल में रिक्तियों पर राज्यों की खिंचाई की, कहा- पोस्ट क्यों बनाए

नई दिल्ली, 11 अगस्त (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों में रिक्तियों पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि राज्य सरकारें लोगों के कल्याण के लिए बनाए गए कानूनों को हरा रही हैं। शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को आठ सप्ताह की अवधि के भीतर सभी रिक्तियों को भरने के लिए कहा और पूछा कि पदों को बनाने और उन्हें न भरने का उद्देश्य क्या है? जस्टिस संजय किशन कौल और हृषिकेश रॉय की पीठ ने विभिन्न राज्य सरकारों के वकील की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की, क्या आप कदम उठाने के लिए किसी शुभ अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, हम सिर्फ पदों पर व्यक्तियों को चाहते हैं। राज्य सरकारें लोगों के कल्याण के लिए बनाए गए कानूनों को हरा रही हैं। पदों को बनाने का आखिर उद्देश्य क्या है? पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों ने चयन समितियों का गठन भी नहीं किया है। पीठ ने निर्देश दिया कि यह काम 4 सप्ताह के भीतर किया जाना चाहिए। आदेश में कहा गया है कि सभी राज्यों को दो सप्ताह के भीतर नियमों को अधिसूचित करना चाहिए और यदि बड़ी संख्या में रिक्तियां हैं, तो निर्देश है कि सभी रिक्तियों को दो सप्ताह के भीतर विज्ञापित किया जाए। कहा गया है कि सभी रिक्तियां, चाहे अध्यक्ष का पद हो या सदस्यों का, बुधवार से आठ सप्ताह के भीतर भरा जाना चाहिए। पीठ ने यह देखते हुए कि राष्ट्रीय मंच पर सात रिक्तियां हैं, केंद्र से राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोगों में रिक्त पदों को भरने के लिए भी कहा। पीठ ने कहा, अगर हमने राज्यों से कहा है, तो हमें केंद्र से भी पूछना चाहिए। क्योंकि आप (केंद्र) उम्मीदें, आकांक्षाएं बढ़ाते हैं कि जनता की शिकायतों का समाधान किया जाएगा। पीठ ने सभी राज्य सचिवों को दो सप्ताह में नियमों को अधिसूचित करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा, हम एक्सटेंशन नहीं दे रहे हैं। घरों को व्यवस्थित करने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था। अब समय तय किया जाएगा। कहा गया है कि यदि दो सप्ताह में नियमों को अधिसूचित नहीं किया गया तो केंद्र द्वारा बनाए गए मॉडल नियम संबंधित आयोगों के लिए स्वत: लागू हो जाएंगे। पीठ ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 42 के अनुसार, प्रत्येक राज्य आयोग में एक अध्यक्ष होता है और कम से कम चार सदस्य होते हैं। शीर्ष अदालत ने अपने स्वत: संज्ञान मामले में इन निर्देशों को पारित किया, जिसमें जिलों के अध्यक्ष और सदस्यों/कर्मचारियों की नियुक्ति और राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग और पूरे भारत में अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के संबंध में सरकारों की निष्क्रियता थी। --आईएएनएस एसजीके/एएनएम

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