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भारती की धमक से कांपता था बंगाल का माओवादी बेल्ट, अब तृणमूल को उखाड़ने उतरी हैं मैदान में

ओम प्रकाश कोलकाता, 29 मार्च (हि.स.)। दिन हो या रात, जंगलमहल के इलाके में माओवादियों का सितम ऐसा था कि आजादी के चार दशक तक इन इलाकों में सरकारी सुविधाएं पांव नहीं पसार सकी थीं। लेकिन वक्त बदला और यही माओवादी बेल्ट कांपने लगा, वह भी एक महिला की धमक से। जिनका नाम भारती घोष है। पूर्व आईपीएस अफसर भारती घोष अपने कार्यकाल में जब वर्दी पहनकर क्षेत्र में निकलती थीं, तब आम लोग सुरक्षा भाव से खड़े रहते थे और माओवादियों-अपराधियों के रोंगटे खड़े हो जाते थे। एक दौर में ममता बनर्जी की बेहद करीबी रही भारती ने अनगिनत माओवादियों को आत्मसमर्पण करा कर मुख्यधारा से जोड़ा। जंगलमहल के युवा वर्ग को हिंसा के रास्ते से मोड़कर शिक्षा, विकास और इंसानियत की राह पर आगे ले गईं। लेकिन देश में राजनीति क्या न कराए। समय ने ऐसी करवट ली कि ममता बनर्जी को जंगलमहल की मां का संज्ञा देने वाली भारती के पद को ममता सरकार ने सिर्फ इसीलिए हटा दिया, क्योंकि ममता के ही करीबी मुकुल राय भाजपा में चले गए थे और भारती को उनका भी करीबी माना जाता था। इतनी तेज तर्रार अधिकारी केवल संदेह की यह वजह बर्दाश्त नहीं कर सकी और नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद ममता सरकार ने उन्हें भ्रष्ट साबित करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। लगातार सीआईडी जांच होती रही। पूरा प्रशासन भारती घोष के पीछे पड़ा रहा लेकिन उस सबला का बाल बांका भी नहीं कर सका। अंत में सुप्रीम कोर्ट का आदेश हुआ। प्रशासन अपनी जगह पर शांत शिथिल पड़ गया और भारती घोष भाजपा का दामन थाम कर तृणमूल को उखाड़ने के लिए रणक्षेत्र में मोर्चा संभाल चुकी हैं। इसके पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में घटाल से उम्मीदवार थीं लेकिन तृणमूल के उम्मीदवार देव ने उन्हें हरा दिया था। हालांकि भारती ने हार नहीं मानी और इस बार 2021 के विधानसभा चुनाव में "डेबरा" विधानसभा से तृणमूल के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है। उनके खिलाफ तृणमूल कांग्रेस ने पूर्व आईपीएस अधिकारी हुमायूं कबीर को उतारा है, जो चंदननगर पुलिस कमिश्नरेट के कमिश्नर थे और चुनाव से ठीक पहले वॉलेंटियरी रिटायरमेंट लेकर सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल हुए थे। कैसे हैं हालात राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार लड़ाई दिलचस्प है। भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में माहौल है और भारती घोष तृणमूल को उखाड़कर कमल खिलाने के लिए लगातार मैदान में डटी हुई हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भले ही भारती घोष हार गई थीं लेकिन विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी को अच्छा वोट मिला था और इस बार माहौल और अधिक पक्ष में है। कैसा रहा है भारती घोष का करियर 9 अप्रैल, 1962 को जन्मी भारती घोष हावर्ड विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से स्नातक हैं। राष्ट्र संघ के शांति मिशन में दुनिया भर के देशों में अपनी सेवा देने के बाद 1998 में पश्चिम बंगाल लौटी थीं और राज्य के क्रिमिनल इन्वेस्टीगेशन डिपार्टमेंट (सीआईडी) में कार्य शुरू किया था। तब से 2017 तक विभिन्न बड़े पदों पर रहीं। उनके करियर का सबसे उल्लेखनीय समय पश्चिम मेदिनीपुर के एसपी के तौर पर रहा है, जब वह क्षेत्र में माओवाद की गतिविधियों पर लगाम लगाने में पूरी तरह से सफल रहीं और ममता बनर्जी के बेहद करीबी बनी रहीं। उसी दौर में वह ममता बनर्जी को जंगलमहल की मां कहती थी और माओवादी क्षेत्र में शांति लौटाने के लिए सराहना की पात्र भी थीं। 2017 में हालात बदल गए। मुकुल रॉय भाजपा में चले गए और उनके करीबी होने के संदेह में 25 दिसंबर, 2017 को राज्य सरकार ने भारती घोष को पश्चिम मेदिनीपुर के एसपी के पद से हटाकर अपेक्षाकृत कम प्रभाव वाले पद पर भेज दिया था। इससे आहत होकर उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। वह राज्य सरकार के खिलाफ सवाल भी खड़ा करने लगी थीं, जिसकी वजह से ममता सरकार ने उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और जांच शुरू कर दी। दो साल तक भागदौड़ का खेल चला लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि भारती घोष को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। उसके बाद 2019 में लोकसभा का चुनाव लड़ीं, लेकिन जीत नहीं हुई। अब डेबरा से भाजपा की उम्मीदवार हैं। भारतीय खोज की संपत्ति 10 करोड़ 09 लाख 92 हजार 831 रुपये की है। सोना तस्करी समेत कई अन्य गंभीर धाराओं में पश्चिम बंगाल सरकार ने उनके खिलाफ 30 मामले दर्ज किए हैं,जिनमें गिरफ्तारी की संभावना थी, लेकिन गत 9 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि 10 मई तक भारती घोष को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। अपनी जीत को लेकर 100 फीसदी आश्वस्त जीत के संबंध में जब उनसे "हिन्दुस्थान समाचार" ने सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि वह शत प्रतिशत आश्वस्त हैं कि इस बार उनकी जीत होगी। अपने खिलाफ एक आईपीएस अधिकारी के ही खड़े होने और लड़ाई कांटे की टक्कर से होने के संबंध में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को यहां बहुत अच्छा वोट मिला था। उस समय चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से जनसंपर्क करने और उन्हें समझने में काफी मदद मिली। सच्चाई यह है कि लोग तृणमूल कांग्रेस को पूरी तरह से उखाड़ फेंकना चाहते हैं, इसलिए मैं अपनी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हूं।" उल्लेखनीय है कि दूसरे चरण में एक अप्रैल को वोटिंग होनी है। उसी दिन डेबरा में भी मतदान होगा। हिन्दुस्थान समाचार

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