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कोरोना की भयावह चोट से देश को उबारने की चुनौती

रंजना मिश्रा कोरोना की दूसरी लहर ने हमारे देश में चारों ओर तबाही मचा दी है। इस संक्रमण के कारण न जाने कितने परिवार उजड़ गए, कितने बच्चों ने अपने माता-पिता को खो दिया और अनाथ हो गए, कितने ही माता-पिता को इस संक्रमण के कारण अपने जवान संतानों की अर्थी देखनी पड़ी। ये ऐसे घाव हैं जो शायद भविष्य में कभी नहीं भर पाएंगे, किंतु देश को इस महा संकट से उबारने के लिए सभी राजनीतिक दलों को मिलकर काम करना होगा। केंद्र एवं राज्य सरकारों को अपने-अपने स्तर पर कई नीतियां बनानी होंगी। सभी राज्यों को ब्लॉक एवं जिला स्तर पर ऐसे क्षेत्रों को चिन्हित करना चाहिए जो इस महामारी से अधिक प्रभावित हुए हों, वहां लोगों को सरकार द्वारा बनाई गई इन योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ मिलना चाहिए। वैक्सीनेशन, सैनिटाइजेशन, खाद्य-सामग्री वितरण जैसी व्यवस्थाओं के साथ-साथ ऐसे परिवारों को आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाए, जिनमें कोई कमाने वाला अब नहीं बचा है। जिन बच्चों ने कोविड में अपने अभिभावकों को खो दिया है, उनके पालन-पोषण व शिक्षा आदि की पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकारों को उठानी चाहिए। इसके लिए उचित नीतियां बनानी होंगी और उनके क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान देना होगा। सिर्फ बीमारी बनकर देश में नहीं आया, इसके कारण कई तरह की परेशानियां भी देश में आई हैं। कोरोना काल में महंगाई चरम पर है। कोरोना महामारी से देश की जो हालत हुई है, उसमें सुधार करने की चुनौती अब सरकार के सामने है। लेकिन देश की गरीब जनता जो इससे सबसे अधिक प्रभावित है, उसके सामने सबसे बड़ा सवाल अपना पेट पालने का है। आम जनता का भविष्य अंधकारमय हो गया है, व्यापार समाप्त होने की कगार पर है। यदि व्यापार नहीं होगा तो रोजगार भी समाप्त हो जाएंगे, रोजगार समाप्त होने से देश की आम जनता तबाह होती जा रही है। बेरोजगारों, मजदूरों तथा गरीब वर्ग की स्थिति को सुधारने के लिए देशभर की राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्यों में कई प्रभावी योजनाएं बनानी होंगी। कोरोना के चलते नौकरियों में आई कमी जिस आर्थिक रिकवरी में सुधरी थी, उसमें फिर कमी हो गई है। शहरों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी हालात बहुत खराब होते जा रहे हैं, अतः सरकार को शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। नौकरियों के जाने की वजह व्यापार, कारोबार में आई गिरावट है। सरकार के सामने असली चुनौती यह है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा कारोबार ऑनलाइन किए जाएं। जिससे केवल अनिवार्य सेवाओं के लोगों की आवाजाही बनी रहे और कोरोना का असर कम किया जा सके। कोरोना की दूसरी लहर में बेरोजगारी दर बढ़ रही है, लॉकडाउन के कारण राज्यों में बेरोजगारी दर बहुत तेजी से बढ़ी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के अनुसार 16 मई तक बेरोजगारी दर 14.45% के आसपास आ चुकी है। बेरोजगारी हमारे देश की बहुत बड़ी समस्या है, जब से लॉकडाउन हुए हैं, अलग-अलग राज्यों में बिजनेस, कॉमर्स बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। बहुत से व्यापार जैसे होटल, रेस्टोरेंट्स, माल्स, एविएशन, रिटेल शॉपिंग, मल्टीप्लेक्से आदि वो बिजनेस हैं, जो बहुत सारे लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं, इन पर कोविड का बहुत बुरा असर पड़ा है। केंद्र सरकार व राज्य सरकारों का पहला टारगेट देश में कोविड समाप्त होते ही लोगों को रोजगार प्रदान करना होना चाहिए। दूसरी बड़ी समस्या महंगाई है, लॉकडाउन के कारण एक तरफ लोगों की कमाई कम हुई है, दूसरी तरफ महंगाई का बोझ आम लोगों को परेशान किए हुए है। ऐसे में केंद्र व राज्य सरकारों के लिए जरूरी है कि वो महंगाई को काबू में करने के लिए उचित कदम उठाएं और इसके लिए नई व प्रभावी योजनाएं पारित करें। जब आम आदमी के पास पैसा होगा तभी वह सरकार को टैक्स दे सकेगा, इसलिए बहुत जरूरी है कि ऐसी नीतियां बनाई जाएं ताकि इस महासंकट के दौर में भी आम आदमी का हाथ बिल्कुल खाली न रहे। मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए सभी राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्यों में श्रमिक वर्ग को उनकी योग्यता के अनुसार उचित रोजगार के अवसर प्रदान करने चाहिए और उनको प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण केंद्रों की व्यवस्था करनी चाहिए। कोरोनाकाल में छोटे-छोटे उद्योग प्रायः समाप्त हो गए हैं, उन्हें पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है, इसके लिए सभी राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्यों में नीतियां बनाने और उन पर कार्यान्वयन करने की आवश्यकता है। (लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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