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बौद्ध तीर्थ लुंबनी व बोधगया में भी होगी मोरारी बापू की रामकथा

- महापरिनिर्वाण कुशीनगर बना रामकथा का 854वां पड़ाव गोपाल गुप्ता कुशीनगर, 20 जनवरी(हि. स.)। श्रीराम कथा के वाचन के लिए देश दुनिया में विख्यात कथा व्यास मोरारी बापू की रामकथा कुशीनगर के बाद प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल सारनाथ, बोधगया व लुंबनी में भी होगी। कुशीनगर बुद्ध की निर्वाणस्थल, लुंबनी जन्मस्थल, सारनाथ प्रथम उपदेशस्थल तो बोधगया ज्ञान प्राप्त स्थल है। इन चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर चीन,जापान, थाईलैंड, म्यांमार, कम्बोडिया, श्रीलंका आदि देशों के बौद्ध अनुयाई इन स्थलों पर आने को आतुर रहते हैं। देश के प्रमुख हिन्दू तीर्थस्थलों पर रामकथा सुना चुके बापू की कुशीनगर में 854वीं रामकथा है। अंतिम 853वीं रामकथा गंगा किनारे शुक्रतीर्थ मुजफ्फरनगर में हुई थी। बुद्ध भूमि पर कथा सुनाने की इच्छा अपने शिष्यों से व्यक्त की थी। पहले तो शिष्यों ने बुद्ध की जन्मस्थली लुंबनी नेपाल के लिए प्रयास किया, किन्तु कोविड-19 के प्रसार के कारण नेपाल सरकार ने अनुमति नही दी तो कुशीनगर का नाम फाइनल हुआ। मोरारी बापू हिमालय में कैलाश-मानसरोवर, नीलगिरि पर्वत पर, बर्फानी बाबा अमरनाथ के साथ-साथ चार धाम-बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमनोत्री और गंगोत्री जैसे दुर्गम क्षेत्रों में रामकथा कह चुके हैं। गंगा तट पर स्थित शहरों में रामकथा सुनाना बापू को अत्यंत प्रिय है। देश के किसी बौद्ध तीर्थस्थली पर रामकथा सुनाने का यह पहला अवसर है। मोरारी बापू गिरनारी पर्वत श्रृंखला का हिस्सा तुलसी-श्याम तीर्थ में विराजी मां रूक्मिणी के चरणों में रामकथा कह चुके हैं। आयोजन समिति के सदस्य सुमित त्रिपाठी व विक्रम अग्रवाल ने बताया कि मोरारी बापू की रामकथा लुंबनी, बोधगया व सारनाथ में प्रस्तावित है। बौद्धस्थली पर प्रासंगिक है रामकथा रू बुद्ध पीजी कालेज के पूर्व प्राचार्य व गायत्री परिवार के जिला संयोजक डॉ. डी एस तिवारी का कहना है कि मोरारी बापू का राम कथा के लिए कुशीनगर को चुनना यूं ही नहीं है। बुद्ध ने निर्वाण पूर्व अंतिम भी दिया था। बुद्ध हिरण्यवती नदी पार कर कुशीनगर पहुंचे थे। अस्वस्थता की स्थिति में वह उत्तर की ओर सिर कर लेट गए और मल्लों को बुलावा भेजा। शिष्य आनन्द, उपवाण व सुभद्र मौजूद थे। सुभद्र की प्रार्थना पर बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश दिया। इस कारण से भी कुशीनगर में मोरारी बापू की रामकथा की प्रासंगिकता बढ़ जाती है। समरसता व उन्नति का मार्ग प्रशस्त करेगी बापू की कथा काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष, कर्मकांड, धर्म संस्कृति विभाग के अध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पांडेय का कहना है कि सनातन धर्म की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसमें समभाव, प्राणी मात्र के कल्याण व राष्ट्रीय उन्नति की संकल्पना की गई है। कालांतर में इसी से अनेक पंथों व धर्म का उदय हुआ। बौद्ध धर्म भी सनातन धर्म से उद्भूत हो अलग होकर प्रतिष्ठित हुआ। इसमें भी सनातन धर्म के मूलभूत सिद्धान्त अंतर्निहित हैं। इसे किसी अन्य नजरिए से देखने की जरूरत नहीं है। कुशीनगर में मोरारी बापू के श्रीमुख से होने वाली मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की कथा सामाजिक व धार्मिक समरसता व राष्ट्र उन्नति का मार्ग प्रशस्त करेगी। हिन्दुस्थान समाचार/-hindusthansamachar.in

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