Swami Vivekananda: leader of nation reconstruction
Swami Vivekananda: leader of nation reconstruction

स्वामी विवेकानंदः राष्ट्र पुनर्निर्माण के पुरोधा

धर्मपाल सिंह 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में जन्में नरेन्द्र नाथ आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से मशहूर हुए। उनके जन्म जयंती पर देश में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद इतिहास के अच्छे अध्येता थे और ऐतिहासिक शक्तियों के विषय में उनकी गहरी अंर्तदृष्टि थी। विवेकानंद ने ही एक और भविष्वाणी की थी कि भारत एकबार फिर समृद्धि तथा शक्ति की महान ऊँचाईयों पर उठेगा और अपने समस्त प्राचीन गौरव को पीछे छोड़ जाएगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारत का विश्वगुरु बनना केवल भारत ही नहीं, अपितु विश्व के हित में है। विवेकानंद ने कहा कि समाज का नेतृत्व चाहे विद्या बल से प्राप्त हुआ हो चाहे बाहुबल से, पर शक्ति का आधार जनता ही होती है। उनका मानना था कि प्रजा से शासक वर्ग जितना ही अलग रहेगा, वह उतनी ही दुर्बल होगी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि यथार्थ भारत झोपड़ी में बसता है, गांवों में बसता है। इसलिए भारत की उन्नति भी झोपड़ी और गांव में रहने वाले आम जनता की प्रगति पर निर्भर है। हमारा पहला कर्तव्य दीनहीन, निर्धन, निरक्षर, किसानों तथा श्रमिकों के चिंतन का है। उनके लिए सब करने के उपरांत ही संबंधों की बारी आनी चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि अतीत से ही भविष्य बनता है। अतः यथासंभव अतीत की ओर देखो और उसके बाद सामने देखो और भारत को उज्ज्वल तक पहले से अधिक पहुंचाओ। हमारे पूर्वज महान थे हम भारत के गौरवशाली अतीत का जितना ही अध्ययन करेंगे हमारा भविष्य उतना ही उज्ज्वल होगा। भारत में श्रीराम, कृष्ण, महावीर, हनुमान तथा श्रीरामकृष्ण जैसे अनेक ईष्ट और महापुरुषों के आदर्श उपस्थित हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि जिस राज्य की जनता में विद्या, बुद्धि का जितना अधिक प्रचार है यह राष्ट्र उतना ही उन्नत है। भारत के सर्वनाश का मुख्य कारण यही है कि देश की सारी विद्या, बुद्धि राज्य शासन और धन के बल पर मुट्ठी भर लोगों के एकाधिकार में रखी गई है। यदि हमें फिर से उन्नति करनी है तो हमको उसी मार्ग पर चलना होगा अर्थात् जनता में विद्या का प्रचार करना होगा। भारत के लोगों को यदि आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा नहीं दी जाएगी तो सारे संसार की दौलत से भारत के एक छोटे से गांव को भी सहायता नहीं की जा सकती। नैतिक तथा बौद्धिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा प्रदान करना हमारा पहला कार्य होना चाहिए। राष्ट्रभक्तों की टोलियों पर स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि देशभक्त बनो। जिस राष्ट्र ने अतीत में हमारे लिए इतने बड़े-बड़े काम किए हैं, उसे प्राणों से भी प्यारा समझो। क्या तुम यह अनुभव करते हो कि अज्ञान के काले बादल ने सारे भारत को ढंक लिया है। यह सोचकर क्या तुमको बेचैनी नहीं होती। क्या इस सोच ने तुम्हारी निद्रा छीन ली है कि भारत के लोग दुखी हैं, यदि हां तो तुम देशभक्त बनने की पहली सीढ़ी पार कर गए हो। यदि तुमने केवल व्यर्थ की बातों में शक्ति क्षीण करके इस दुर्दशा के निवारण हेतु कोई यथार्थ कर्तव्य पथ निश्चित किया है। यदि तुम पर्वताकार विघ्न बाधाओं को लांघ कर राष्ट्र कार्य करने के लिए तैयार हो तो सारी दुनिया विरोध में खड़ी हो जाए तो भी निडरता के साथ सत्व की रक्षा के लिए खड़े रहना और संगी-साथियों के छोड़ जाने पर भी अभी तुम राष्ट्रोत्थान के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहोगे तो यह तीसरी सफलता है। इन बातों से युक्त विश्वासी युवा देशभक्तों की आज भारत को आवश्यकता है। मेरा विश्वास युवा पीढ़ी, नई पीढ़ी में है। मेरे कार्यकर्ता इनमें से आयेंगे और वह सिंहों की भांति समस्याओं का हल निकालेंगे। ऐसे युवाओं में और किसी बात की जरूरत नहीं है। बस केवल प्रेम, सेवा, आत्मविश्वास, धैर्य और राष्ट्र के प्रति असीम श्रद्धा होनी चाहिए। वहीं नारी जागरण पर भी स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि स्त्रियों की पूजा करके ही सभी राष्ट्र बड़े बने हैं। जिस देश में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वह देश या राष्ट्र कभी बड़ा नहीं बन सका है और भविष्य में कभी बड़ा भी नहीं बन सकेगा। हम देख रहे हैं कि नौ देवियों लक्ष्मी और सरस्वती को मां मानकर पूजने वाले सीता जैसे आदर्श की गाथा घर-घर में गाने वाले यत्र नार्यस्त पूज्यते रमते तत्र देवता को हृदय में बसाने वाले भारत में नारी को यथोचित सम्मान प्राप्त नहीं है। हमारी मानसिकता बदल रही है लेकिन उसकी गति बहुत धीमी है, यदि हम देश की तरक्की चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी सोच को बदल कर नारी जागरण और उत्कर्ष पर चिंतन और त्वरित क्रियाशीलता दिखानी भी होगी। ग्रामीण आदिवासी स्त्रियों की वर्तमान दशा में उद्धार करना होगा, आम जनता को जगाना होगा, तभी तो भारत वर्ष का कल्याण संभव है। अपनी आध्यात्मिकता और दार्शनिकता से हमें जगत को जीतना होगा। संसार में मानवता को जीवित रखने का और कोई उपाय नहीं है। स्वामी विवेकानंद अपनी विदेश की जनजागरण यात्रा के दौरान इंग्लैंड भी गए। स्वामी विवेकानंद इंग्लैंड की अपनी प्रमुख शिष्या, जिसे उन्होंने नाम दिया था भगिनी (बहन) निवेदिता। विवेकानंद सिस्टर निवेदिता को महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए भारत लेकर आए थे। स्वामी जी की प्रेरणा से सिस्टर निवेदिता ने महिला जागरण के लिए एक गर्ल्स स्कूल कलकत्ता में खोला। वह घर-घर जाकर गरीबों के घर लड़कियों को स्कूल भेजने की गुहार लगाने लगीं। विधवाओं और कुछ गरीब औरतों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से सिलाई, कढ़ाई आदि स्कूल से बचे समय में सिखाने लगीं। जाने-माने भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस की सिस्टर निवेदिता ने काफी मदद की, न केवल धन से बल्कि विदेशों में अपने रिश्तों के जरिए। वर्ष 1899 में कोलकाता में प्लेग फैलने पर सिस्टर निवेदिता ने जमकर गरीबों की मदद की। एक तरफ विश्व आज कोरोना महामारी से जूझ रहा है वहीं दूसरी ओर साम्प्रदायिकता की आग में भी झुलस रहा है। हर भौगोलिक दृष्टि से बड़ा देश छोटे देश को दबाने में लगा है। उसकी जमीन हड़पने में लगा है। इन सबके बीच में स्वामी जी का सबको स्वीकार करने वाला यह विश्व बंधुत्व का संदेश, विश्व भर को मार्ग दिखाता है। जो मानव समाज को कटुता से बाहर निकालता है और सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार के तौर पर देखने की दृष्टि प्रदान करता है। हमें स्वामी जी के धर्म महासभा के अंतिम अधिवेशन में दिए गए भाषण के इन शब्दों को भी याद करना चाहिए। ईसाई को हिन्दू या बौद्ध नहीं हो जाना चाहिए और हिन्दू अथवा बौद्ध को ईसाई ही, पर हां, प्रत्येक को चाहिए कि यह दूसरों सार-भाग को आत्मसात करे पृष्टि-लाभ करे और अपने वैशिष्ट्य की रक्षा करते हुए अपनी निजी वृद्धि के नियम के अनुसार वृद्धि को प्राप्त हो। उन्होंने समाज की कपट वृत्ति, दंभ, क्रूरता, आडम्बर और अनाचार की भर्त्सना करने में संकोच नहीं किया। इन्हीं कारण वे तत्कालीन युवा पीढ़ी के आकर्षण का केन्द्र बने। इसमें काई शक नहीं कि वे आज भी अधिकांश युवाओं के आदर्श हैं। उनकी हमेशा यही शिक्षा रही कि आज के युवक को शारीरिक प्रगति से ज्यादा आंतरिक प्रगति की जरूरत है। वे युवकों में जोश भरते हुए कहा करते थे कि उठो मेरे शेरों। इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो। वे एक बात और कहते थे कि जो तुम सोचते हो वह हो जाओगे। ऐसी ही कुछ प्रेरणाएं हैं जो आज भी युवकों को आन्दोलित करती है, पथ दिखाती है और जीने का दर्शन प्रदत्त करती है। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आत्मनिर्भर भारत बनाने की ओर आगे बढ़ रहे हैं तो कहीं न कहीं उसका आधार स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं एवं प्रेरणाएं ही हैं। स्वामी जी ने अनुभव किया कि समाज सेवा केवल संगठित अभियान और ठोस प्रयासों द्वारा ही संभव है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए स्वामी विवेकानंद ने 1897 में रमाकृष्ण मिशन की शुरुआत की और अध्यात्म, वैज्ञानिक जागरुकता एवं आर्थिक समृद्धि के लक्ष्य को हासिल करने के लिए युगानुकूल विचारों का प्रसार लोगों में किया। अगले दो वर्षों में उनहोंने बेलूर में गंगा के किनारे रामकृष्ण मठ की स्थापना की। उन्होंने भारतीय संस्कृति की अलख जगाने के लिए एकबार फिर जनवरी 1899 से दिसम्बर 1900 तक पिश्चमी देशों की यात्रा की। स्वामी विवेकानंद का देहांत 4 जुलाई, 1902 को कलकत्ता के पास बेलूर मठ में हो गया। स्वामी जी देह रूप में हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके अध्यात्म, वैज्ञानिक जागरुकता एवं आर्थिक समृद्धि के विचार युगों-युगों तक मानव जाति का मार्गदर्शन करते रहेंगे। (लेखक, भाजपा झारखंड प्रदेश संगठन महामंत्री हैं।)-hindusthansamachar.in

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