यूजीसी के दिशा-निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाली
यूजीसी के दिशा-निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाली

यूजीसी के दिशा-निर्देशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाली

नई दिल्ली, 31 जुलाई (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने फाइनल ईयर की परीक्षा कराने के यूजीसी के दिशा-निर्देश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई 10 अगस्त तक के लिए टाल दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में स्टेट डिज़ास्टर मैनेजमेंट कमेटी की तरफ से लिए गए फैसले की कॉपी रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया है। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अप्रैल में जारी दिशा-निर्देश को यूजीसी ने जुलाई में बदल दिया। कोर्ट ने कहा कि उन्हें इसका अधिकार है, वो ऐसा कर सकते हैं। सिंघवी ने कहा कि जुलाई के दिशा-निर्देश और ज़्यादा सख्त हैं। बहुत सी यूनिवर्सिटीज में ऑनलाइन परीक्षा के लिए ज़रूरी सुविधाएं नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऑफलाइन का भी विकल्प है। सिंघवी ने कहा कि बहुत से लोग स्थानीय हालात या बीमारी के चलते ऑफलाइन परीक्षा नहीं दे पाएंगे। बाद में परीक्षा देने का विकल्प देने से और भ्रम होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लेकिन इसमें तो छात्रों का हित ही नज़र आता है। यूजीसी ने 30 सितम्बर तक फाइनल ईयर की परीक्षा आयोजित करने के अपने सर्कुलर का बचाव करते हुए कहा है कि कोरोना संकट की वजह से पर्याप्त समय दिया गया है। यूजीसी के नोटिफिकेशन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर दाखिल हलफनामे में कहा है कि युनिवर्सिटीज को परीक्षा लेने के लिए पर्याप्त छूट दी गई है। वे चाहें तो आनलाइन मोड में परीक्षा ले सकती हैं या ऑफलाइन मोड में या दोनों में। यूजीसी ने कहा है कि अगर कोई छात्र परीक्षा में हिस्सा नहीं ले पाता है तो उसे बाद में विशेष परीक्षा में शामिल होने का मौका दिया जाएगा। यूजीसी ने कहा है कि महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार का बिना परीक्षा के फाइनल ईयर के छात्रों को डिग्री देने का फैसला यूजीसी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है। इससे देश में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर असर डाल सकता है। पिछले 27 जुलाई को कोर्ट ने सुनवाई टाल दी थी। सुनवाई के दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि कोरोना के संकट के दौरान फाइनल ईयर की परीक्षा कराने का दिशा-निर्देश देना गलत है। इस दिशा-निर्देश में राज्यों को कोई विवेकाधिकार नहीं दिए गए हैं। महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों ने इसका विरोध किया है। यूजीसी के इस दिशा-निर्देश का कोई कानूनी आधार नहीं है। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि हम केवल फाइनल ईयर की परीक्षा को लेकर चिंतित हैं। देश के 818 यूनिवर्सिटी हैं जिनमें 209 ने फाइनल ईयर की परीक्षा पूरी कर ली है। 394 यूनिवर्सिटी परीक्षा पूरी करने की प्रक्रिया में हैं। उन्होंने कहा था कि हमें इसमें हलफनामा दाखिल करना होगा। हमने आनलाइन और आफलाइन परीक्षा दोनों का विकल्प दिया है। गृह मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दिशा-निर्देश के मुताबिक एक कमरे में दस से ज्यादा छात्र एक कमरे में परीक्षा देने के लिए नहीं बैठ सकते हैं। कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने कहा था कि 50 हजार कोरोना के नए मरीज मिले हैं। ऐसे समय में यूजीसी के दिशा-निर्देश पर तब तक रोक लगाई जानी चाहिए जब तक कोर्ट में मामला लंबित है। याचिका दायर करने वाले छात्रों में एक छात्र कोरोना पॉजिटिव है। याचिका में कहा गया है की उसकी तरह देशभर में कई ऐसे छात्र हैं जो या तो खुद कोरोना पॉजिटिव हैं या उनके परिवार के सदस्यों को कोरोना का संक्रमण हुआ है। ऐसे छात्रों को परीक्षा में शामिल करने के लिए बाध्य करना संविधान की धारा 21 के तहत जीने के अधिकार का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता छात्रों की ओर से वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने याचिका में कहा है कि आमतौर पर मार्कशीट और डिग्रियां 31 जुलाई तक मिल जाती हैं लेकिन वर्तमान स्थिति है परीक्षाएं 30 सितम्बर तक खत्म की जाएंगी। इससे कई छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए आवेदन करने या नौकरियों के अधिकार से वंचित होना होगा। ऐसा करना संविधान की धारा 14 का उल्लंघन होगा। याचिका में मांग की गई है कि फाइनल ईयर के छात्रों को भी सीबीएसई और आईसीएसई की तर्ज पर ही फैसला करना चाहिए, जिसने दसवीं और 12वीं के रिजल्ट पूर्व के प्रदर्शन और इंटरनल असेसमेंट के आधार पर जारी कर दिया। याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट यूजीसी को दिशा-निर्देश जारी करें कि वह पूर्व के प्रदर्शन और इंटरनल असेसमेंट के आधार पर फाइनल ईयर के छात्रों के रिजल्ट 31 जुलाई तक जारी करें। हिन्दुस्थान समाचार/संजय/सुनीत/बच्चन-hindusthansamachar.in

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