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स्मृति शेषः रक्षा राज्यमंत्री बनकर बचदा ने खंडूरी को कर दिया था हैरान

-वर्ष 1999 में वाजपेयी मंत्रिमंडल में रक्षा राज्य मंत्री बने थे बचदा -भाजपा नेता बची सिंह रावत के सिर नहीं चढ़ा कामयाबी का नशा देहरादून, 19 अप्रैल (हि.स.)। यह वर्ष 1999 की बात है। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के गठन का रास्ता साफ हो चुका था। कवायद टीम को लेकर चल रही थी। उत्तराखंड से प्रतिनिधित्व के नाम पर सबकी निगाहें पूर्व मेजर जनरल और गढ़वाल सांसद भुवन चंद्र खंडूरी पर टिकी थीं। कयासबाजी का आलम यह था कि उनके लिए रक्षा जैसा अहम मंत्रालय भी लोगों ने सोच लिया था। वाजपेयी मंत्रिमंडल का ऐलान हुआ, तो उत्तराखंड के हिस्से रक्षा मंत्रालय आया तो सही, लेकिन मंत्री बची सिंह रावत बन गए। बेहद सौम्य और सरल बची सिंह रावत ने तब अपने ढंग की राजनीति करते हुए खंडूरी समेत तमाम लोगों को हैरान कर दिया था। यह अलग बात है कि एक साल बाद वर्ष 2000 में खंडूरी भी वाजपेयी मंत्रिमंडल का हिस्सा हो गए थे। बचदा के निधन से न सिर्फ भाजपाई, बल्कि वे सभी लोग दुखी हैं, जो कि सियासत में सादगी और ईमानदारी को पसंद करते हैं। 1992 में पहली बार रानीखेत से विधायक बनकर यूपी जैसे बडे़ राज्य में राजस्व उप मंत्री बन जाने वाले बचदा ने नब्बे के दशक में अपने कामकाज से पहाड़ की राजनीति में अलग छाप छोड़ी। नब्बे के दशक में यूपी के उपमंत्री से लेकर केंद्र के रक्षा राज्य मंत्री की कुर्सी पर पहुंचने वाले बचदा का सियासी सफर शानदार रहा। वह चार बार लोकसभा सदस्य चुने गए। लोकसभा चुनाव में भी उनके सामने ज्यादातर हरीश रावत जैसे दिग्गज रहे। वर्ष 1996 में जब पहली बार बचदा लोकसभा चुनाव में उतरे, तो उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर उनके शुभचिंतक खासे परेशान थे। इसकी वजह थी कि सरल और सीधे बचदा के सामने राजनीति के धुरंधर और तेजतर्रार नेता हरीश रावत थे। लोगों को लगता था कि हरीश रावत से बचदा पार नहीं पा सकेंगे और कैरियर तबाह कर बैठेंगे। मगर बचदा ने हरीश रावत पर जीत का सिलसिला जो एक बार शुरू किया, तो फिर वह कभी रुके नहीं। उन्होंने तीन बार हरीश रावत को लोकसभा चुनाव में शिकस्त दी। हरीश रावत जैसा दिग्गज नेता अपना संसदीय क्षेत्र यदि बदलने को मजबूर हुआ, तो उसकी एकमात्र वजह बचदा की चुनौती रही। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद सिर्फ एक बार बचदा वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे। इसके बाद, भाजपा ने वर्ष 2007 में उन्हें उस वक्त उत्तराखंड भाजपा का अध्यक्ष बनाया, जबकि कुछ समय बाद ही चुनाव होने वाले थे। भाजपा को सत्ता में पहुंचाने में बचदा का राजनीतिक अनुभव काम आया और भाजपा सत्तासीन हो गई। वर्ष 2009 तक बचदा भाजपा के उत्तराखंड अध्यक्ष रहे। सीधे और सरल बचदा ने संगठन से जुडे़ कई पेचीदे मसलों को भी इस दौरान बहुत कुशलता से निपटाया। मगर हाल के वर्षों में कहा जा सकता है कि बचदा हाशिये पर चले गए। एकाध मौकों पर ऐसा लगा कि संगठन में उन्हें तवज्जो दी जा रही है, लेकिन बाद में सारी स्थिति स्पष्ट हो गई और वह काफी हद तक उपेक्षित ही रहे। केंद्रीय राजनीति में मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज नेता के कमजोर पड़ जाने के कारण भी बचदा को नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि भाजपा के भीतर की गुटबाजी के बावजूद बचदा एक ऐसे नेता रहे, जिन्होंने अपने व्यवहार से सभी का दिल जीता। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का मानना है कि बचदा का देहांत पार्टी के लिए बहुत बड़ी क्षति है। ऐसी क्षति जिसका अहसास समय -समय पर होता रहेगा। हिन्दुस्थान समाचार/विपिन बनियाल/मुकुंद

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