श्रीराम जन्मभूमि: 1885 में ही हिन्दुओं को सौंपने पर राजी हो गए थे ​मुसलमान
श्रीराम जन्मभूमि: 1885 में ही हिन्दुओं को सौंपने पर राजी हो गए थे ​मुसलमान

श्रीराम जन्मभूमि: 1885 में ही हिन्दुओं को सौंपने पर राजी हो गए थे ​मुसलमान

- गोरक्षपीठ के साथ मिलकर मुसलमानों ने छेड़ा था जन्मभूमि मुक्ति संग्राम आमोदकांत मिश्रा गोरखपुर, 31 जुलाई (हि.स.)। अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में गोरक्षपीठ के योगदानों को लेकर अक्सर चर्चाएं होती रहतीं हैं। इस पीठ के अनेक महन्थों ने समय-समय पर समाज के एक बड़े वर्ग का नेतृत्व किया है और उन्हें श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के लिए तैयार किया है। एक समय वह भी था जब गोरक्षपीठ के तत्कालीन महंत गोपालनाथ, योगिराज बाबा गंभीरनाथ और महंत ब्रह्मनाथ के समय मे हिंदुओं के साथ मिलकर मुसलमानों में आपसी सामंजस्य स्थापित हुआ था और इस विवाद का हल निकालने की कोशिशें हुईं थीं। वर्ष 1885 में बनी सहमति में विवादित ढांचे को हिंदुओं को सौंपने की हुई सहमति पर अमल होना ही था कि बीच में अंग्रेज आ गए और मुलमानों की अगुवाई कर रहे अमीर अली और हिन्दुओं का पक्ष रखने वाले रामचरणदास को बागी घोषित कर उन्हें फांसी दे दी गयी। अयोध्या में 05 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राममंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कर आधारशिला रखने को आने वाले हैं। अयोध्या में इसकी तैयारियां चल रही हैं। इधर, अयोध्या से 137 किलोमीटर दूर गोरखपुर और गोरखनाथ मंदिर में भी खुशियां मनाने की तैयारी है। दरअसल, श्रीराममंदिर आंदोलन के लम्बे दौर में श्रीराम मंदिर मुक्ति आंदोलन के अगुआ नेताओं का गोरक्षपीठ रणनीतिक केंद्र रहा। श्रीराममंदिर आंदोलन से गोरक्षपीठ का सम्बन्ध पीढ़ियों का है। वजह, गोरक्षपीठ ने ब्रिटिश काल में ही मुसलमानों को साथ लेकर श्रीराम मंदिर आंदोलन का शंखनाद कर दिया था। महाराणा प्रताप पीजी कालेज के प्राचार्य डा. प्रदीप राव के सम्पादन में तीन खंडों में प्रकाशित 'राष्ट्रीयता के अनन्य साधक महंत अवेद्यनाथ' नामक पुस्तक में ये जानकारियां साझा की गईं हैं। डा. प्रदीप राव के मुताबिक वर्ष 1855 से वर्ष 1885 तक महंत गोपालनाथ गोरक्षपीठाधीश्वर थे। वर्ष 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अवध क्षेत्र (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) पर ब्रिटिश शासन अधिपत्य हो गया था। इस समय मे ही अंग्रेजी राज के खिलाफ हिन्दुओं-मुसलमानों ने मिल कर संघर्ष छेड़ दिया था, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने इस आंदोलन को बड़ी क्रूरता से दबा दिया था। वे बताते हैं कि संघर्ष असफल हो चुका था, बावजूद इसके अंग्रेजी राज के खिलाफ हिन्दू-मुसलमान तेजी से संगठित हो रहे थे। ऐसे समय में एक मुस्लिम क्रांतिकारी नेता अमीर अली ने अयोध्या-फैजाबाद के मुसलमानों को समझाया कि सम्राट बहादुरशाह जफर की राह पर चलते हुए उन्हें भी मिसाल पेश करनी चाहिए। अमीर अली ने एकता बनाने के लिए रामजन्मभूमि हिन्दुओं को सौंपने का प्रस्ताव रखा। जन्मभूमि हस्तांतरण की पृष्ठभूमि तैयार करने में बाबा रामचरणदास की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। इन दोनों लोगों को तैयार करने के पीछे तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत गोपालनाथ ने पहल की थी। बताते हैं कि मुसलमानों ने भी इसका समर्थन किया, लेकिन अंग्रेज आड़े आ गए। उन्होंने अमीर अली और बाबा रामचरण दास के खिलाफ साजिश रची। दोनों को बागी घोषित कर 18 मार्च 1885 को फांसी पर लटका दिया। नाथ पंथ के जानकार और महाराणा प्रताप पीजी कालेज जंगल धूसड़ के प्राचार्य डा. प्रदीप राव कहते हैं कि अमीर अली और बाबा रामचरण दास को फांसी दिए जाने की घटना ने आम लोगों को झकझोर कर रख दिया। रामजन्मभूमि विवाद का समाधान निकलते-निकलते रह गया। ऐसे में भावी गोरक्षपीठाधीश्वरों ने लोगों को एकजुट रखते हुए प्रयास जारी रखा। मामला गंभीर होता जा रहा था और आस्था का यह विषय भारतीयों में तेजी से फैल रहा था। इस वजह से अंग्रेज भी किसी बड़े आंदोलन की सुगबुगाहट से सशंकित थे। फिर यह बात, ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया तक पहुंची। उन्होंने बाबरी मस्जिद का नक्शा मंगवाया और परिसर के बीच में दीवार बना दी गई। मुसलमानों को भीतर नमाज पढ़ने और बाहर के चबूतरे पर हिंदुओं को पूजा पाठ करने का फरमान जारी कर दिया। डा. राव ने बताया कि महंत गोपालनाथ के बाद उनके शिष्य योगीराज बाबा गम्भीरनाथ और गोरक्षपीठाधीश्वर महंत ब्रह्मनाथ ने भी रामजन्मभूमि मुक्ति के लिए प्रयास जारी रखा। हिन्दुस्थान समाचार-hindusthansamachar.in

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