श्रीराम मन्दिर पूर्वाभिमुख बन रहा, निर्माण में नहीं आएगी कोई समस्या: गणेश्वर शास्त्री
श्रीराम मन्दिर पूर्वाभिमुख बन रहा, निर्माण में नहीं आएगी कोई समस्या: गणेश्वर शास्त्री

श्रीराम मन्दिर पूर्वाभिमुख बन रहा, निर्माण में नहीं आएगी कोई समस्या: गणेश्वर शास्त्री

- 05 अगस्त का मुहूर्त शास्त्रसम्मत, शंका समाधान के लिए 31 जुलाई को सांगवेद विद्यालय में आएं वाराणसी, 28 जुलाई (हि.स.)। अयोध्या में भव्य श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन मुहूर्त निकालने वाले काशी के विद्यान आचार्य गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने दो टूक कहा है कि 05 अगस्त को प्रदत्त मुहूर्त पूरी तरह शास्त्र सम्मत है। उन्होंने मुहूर्त और भूमि पूजन के लिए उठाई जा रही आशंकाओं को खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि जिस किसी को आशंका हो, वह 31 जुलाई को रामघाट स्थित सांगवेद विद्यालय में सुबह 08 बजे से सायं 04 बजे के बीच आकर शंका समाधान के लिए तर्क प्रस्तुत कर सकता है। आचार्य द्रविड़ ने मंगलवार को 'हिन्दुस्थान समाचार' से बातचीत में कहा कि राम मन्दिर पूर्वाभिमुख बन रहा है। अतः 05 अगस्त को उत्तरभारतानुसार भाद्रपदमास में उसके निर्माण में कोई समस्या नहीं है। वस्तुतस्तु – श्री कालिदासप्रणीत ज्योतिर्विदाभरणानुसार गृहनिर्माण के लिए गंगा–यमुना अन्तरालवर्ती (मध्यवर्ती) क्षेत्र में ही पूर्णिमान्त मास ग्राह्य है। आचार्य द्रविड़ ने बताया कि गंगा–यमुना अन्तरालवर्ती (मध्यवर्ती) क्षेत्र को छोड़कर सर्वत्र अमान्त मास ही ग्राह्य है। अयोध्या नगरी गंगा–यमुना के अन्तराल में नहीं है। अतः वहाँ मन्दिर निर्माण के लिए अमान्त श्रावण ग्राह्य है। “श्रावणे सिंहकर्क्योः” इस मुहूर्तचिन्तामणिवचनानुसार अमान्त श्रावण में कर्क एवं सिंह दोनों राशियों में सूर्य की स्थिति होने पर मुहूर्त चलता है। तदनुसार 05 अगस्त का प्रदत्त मुहूर्त शास्त्रसम्मत है। अतः अयोध्या नगरी में 5 अगस्त को श्री राममन्दिर निर्माणारम्भ में कोई बाधा नहीं है। ज्योतिर्विदाभरण के वाक्य का उल्लेख कर उन्होंने बताया कि “दो अमावस्याओं के मध्यवर्ती मास (अर्थात् अमान्त मास) को ही गृहनिर्माण में सर्वत्र (सभी देशों में) प्रमाण माना गया है। गंगा और यमुना नदियों के मध्यवर्ती भागों में अमावस्या मास के मध्यगत होती है। अर्थात् इन प्रदेशों में पूर्णिमान्त मास माने जाते हैं। अतः इस क्षेत्र में पूर्णान्त मास ग्रहण करना चाहिए ।” (ज्योतिर्विदाभरण पृ० 504) उन्होंने जोर देकर कहा कि 05 अगस्त को दिन में 12 बजकर 39 मिनट 20 सेकेण्ड से 12 बजकर 54 मिनट 40 सेकेण्ड तक वृषनवांश है। उसी में मध्य में ३२ सेकेण्ड में “सुप्रतिष्ठितमस्तु” कहकर के अक्षता छोडने की बात कही गयी है। उन्होंने कहा कि तुलालग्न से नवम स्थान (मिथुन) में तुलांश का शुक्र है । अतः –“उक्तानुक्ताश्च ये दोषास्तान्निहन्ति बली गुरुः। केन्द्रत्रिकोणगो वापि शुक्रो विष्णुर्यथाऽसुरान् ।।”(ज्योतिर्निबन्ध पृ० 80) इस ज्योतिर्निबन्धवचनानुसार सभी दोषों का परिहार हो जाता है। उन्होंने कहा कि हमारे द्वारा न अभिजित् मुहूर्त कहा गया है और न तो 12 बजकर 15 मिनट पर मुहूर्त दिया गया है। लोग गलत बयानी कर खुद और दूसरों को भ्रमित कर रहे है। मन्दिर निर्माण के मुहूर्त में षोडशवर्ग को लाने का उद्देश्य आचार्य द्रविड़ ने मन्दिर निर्माण के मुहूर्त में षोडशवर्ग को क्यों लाया इसका जबाब दिया है। उन्होंने बताया कि जिस प्रकार लोक में किसी के जन्मने पर उसकी षोडश वर्ग कुण्डली बनाकर फलादेश होता है। उसमें यह देखा जाता है कि कितने शुभवर्ग आये। मन्दिर निर्माण यानी मन्दिर का जन्म । उसके मुहूर्तानुसार मन्दिरनिर्माण की कुण्डली बनेगी। तदनुसार शुभाशुभफल, दशा अन्तर्दशा विचार करके उसका यथायोग्य परिहार किया जा सकता है। षोडशवर्ग के अन्तर्गत 15 शुभवर्ग मिलने से अधिकाधिक शुभफल है। 'गणेश्वर द्रविण को शास्त्रार्थ की चुनौती' का बयान देने वाले आये ही नहीं 'गणेश्वर द्रविण को शास्त्रार्थ की चुनौती' जैसे बयान बाजी पर आचार्य द्रविड़ ने अफसोस जताया है। उन्होंने कहा कि “विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय” यह हम लोगों का आदर्श नहीं है। “ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय” यह हमारा आदर्श है। सांगवेद विद्यालय वेद-शास्त्र सेवा की तपःस्थली है अतः तीर्थ है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामचंद्र जी द्वारा बनवाए गए ‘रामघाट’ पर यह अवस्थित है। इससे बढ़कर इस विषय के लिए विचारार्थ उपयुक्त स्थल काशी में दूसरा नहीं है। उन्होंने कहा कि जिन जिज्ञासुओं को इस विषय में सही जानकारी लेनी है वे इस विद्यालय में 31 जुलाई को आ सकते हैं। जिज्ञासु लोगों को मुहूर्त के विषय में शंका-समाधान के लिए समय दिया जा रहा है। आचार्य द्रविण ने कहा कि शास्त्रार्थ की चुनौती देने वालों को उन्होंने बीते 24 जुलाई को सांगवेद विद्यालय में शास्त्रार्थ के लिए आने हेतु समय दिया था। हमलोग प्रतीक्षा करते रह गये, कोई आया ही नहीं। आचार्य ने कहा कि कुछ लोग लगातार सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर उनके बारे में लिख रहे है। रोज ही कतिपय बातें प्रकाशित हो रही हैं। “वादे -वादे जायते तत्त्वबोधः” भी लिखा जा रहा है। इस बारे में मुझे इतना ही कहना है कि केवल तत्व निर्णय के लिए की जाने वाली चर्चा ‘वाद’ है। इन लोगों के शब्दावली एवं वाक्यों को देखने पर यह विदित को रहा है कि श्रीराममंदिर निर्माण मुहूर्त के लिए शास्त्रार्थ का आह्वान तत्वनिर्णय के उद्देश्य से नहीं है। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/राजेश/सुनीत-hindusthansamachar.in

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