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माध्यमिक व उच्च माध्यमिक : परीक्षा की मूल्यांकन पद्धति बदलना छात्रों के लिए कितना हितकर

मधुप कोलकाता, 23 जून (हि.स.)। कोरोना संकट के चलते पश्चिम बंगाल सरकार ने इस वर्ष माध्यमिक व उच्च माध्यमिक की परीक्षाएं रद्द कर दी हैं। परीक्षा परिणाम के लिए जिस मूल्यांकन पद्धति की घोषणा की गई है, उसकी उपयोगिता और मेधावी छात्रों के प्रति सही न्याय को लेकर आम लोगों में संशय बना हुआ है। माध्यमिक शिक्षा परिषद तथा उच्च माध्यमिक शिक्षा की मूल्यांकन पद्धति का कुछ लोग स्वागत कर रहे हैं, वहीं कई ऐसे भी हैं, जो इसे छात्रों के भविष्य के लिए नुकसानदेह मानते हैं। हिन्दुस्थान समाचार ने इस बारे में कुछ शिक्षा विशेषज्ञों से बात की। बुधवार को नेशनल बोर्ड फॉर एक्रीडिटेशन विशेषज्ञ समिति के चेयरमैन डॉक्टर रंजन बनर्जी ने बताया कि इस फैसले से राज्य के मेधावी छात्रों को बड़ा नुकसान होने वाला है। इसकी वजह का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि एकमात्र परीक्षा ही छात्रों के मूल्यांकन का विज्ञान सम्मत विकल्प है। इसका कोई अन्य विकल्प हो ही नहीं सकता। वरिष्ठ शिक्षाविद तथा पूर्व उपकुलपति डॉ. पवित्र सरकार भी डॉ. बनर्जी के विचारों का समर्थन करते हुए कहते हैं कि इस फैसले से बंगाल की शिक्षा के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि जिन लोगों ने यह निर्णय लिया है वह क्या इन बातों से अवगत नहीं थे? ज्वाइंट एंटरेंस बोर्ड के पूर्व चेयरमैन निखिल रंजन बनर्जी कहते हैं- "कई बार हम सब कुछ जानते हुए भी प्रतिवाद नहीं कर पाते, क्योंकि राज्य सरकार ने परीक्षा आयोजित नहीं करने का निर्णय लिया है। केरल का उदाहरण देते हुए वह कहते हैं कि संक्रमण के भय से वहां परीक्षा रद्द नहीं की गयीं। बिहार में भी परीक्षाएं हुई हैं। सीएसआईआर या आईआईटी-गेट जैसी अखिल भारतीय प्रवेशिका परीक्षाओं में विद्यालय से प्राप्त अंक अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। कहां किस तरह से परीक्षाएं हुई या मूल्यांकन हुए हैं, इस बारे में वे पूरी जानकारी भी रखते हैं। लिहाजा यहां होने वाले मूल्यांकन से प्राप्त नंबरों को वे अधिक महत्व नहीं देंगे।" इस चर्चा को आगे बढाते हुए पवित्र सरकार कहते हैं कि मूल्यांकन पद्धति से मेधावी और कमजोर छात्रों के बीच का अंतर सिमट जाएगा, जिससे मेधावी छात्र हताश भी होंगे और वंचित भी। भविष्य में उन्हें कई प्रकार की समस्याएं होंगी। उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस की सरकार लगातार लोकलुभावन राह पर चलती रही है। हमने 'द्वारे परीक्षा' की मांग की थी, लेकिन उसके बदले हमें 'पाकेट नंबर' मिल रहा है। तो क्या मूल्यांकन पद्धति के अलावा कोई और विकल्प है? इस पर पवित्र सरकार कहते हैं- "केरल और बिहार में कैसे परीक्षाएं हुई? वास्तव में सदिच्छा ही सबसे महत्वपूर्ण है। कम्युनिटी हॉल, प्रेक्षागृह जैसी जगहों को किराए पर लेकर कोरोना प्रोटोकॉल मानते हुए परीक्षा ली जा सकती थी। शिक्षक और अध्यापक भी सहयोग के लिए तैयार थे।" निखिल बनर्जी इस तर्क का समर्थन करते हुए कहते हैं कि ऑनलाइन अथवा एक सीमित दायरे में परीक्षाएं लेना असंभव नहीं था। सारा बांग्लादेश एजुकेशन कमेटी के सचिव तथा जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्वर्ण कांति नस्कर ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि माध्यमिक शिक्षा परिषद तथा उच्च माध्यमिक शिक्षा संसद ने 2021 के माध्यमिक व उच्च माध्यमिक के मूल्यांकन की जो प्रक्रिया बताई है उससे मेघावी छात्रों के साथ न्याय करना संभव नहीं है। माध्यमिक स्तर पर इस मूल्यांकन प्रक्रिया से छात्रों के लिए अधिकतम नंबर पाने का अवसर होगा, जिससे मेधा का मूल्यांकन संभव नहीं है। क्योंकि सामान्यतया छात्र नवमी कक्षा की तुलना में दसवीं कक्षा में बेहतर रिजल्ट लाते हैं। मेधा का उचित मूल्यांकन नहीं होने से 11वीं कक्षा में दाखिले के मामले में भी उन्हें असुविधा हो सकती है। हालांकि, माध्यमिक शिक्षा परिषद तथा उच्च माध्यमिक शिक्षा संसद ने परीक्षा के विकल्प को पूरी तरह खारिज नहीं किया है। उनकी ओर से कहा गया है कि यदि कोई छात्र मूल्यांकन पद्धति से संतुष्ट है तो स्थिति सामान्य होने के बाद परीक्षा दे सकेंगे। स्वर्णकांति नस्कर के अनुसार इससे भी छात्रों को बहुत अधिक लाभ नहीं होगा क्योंकि जब तक यह परीक्षा ली जाएगी, तब तक कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में दाखिले की प्रक्रिया पूरी हो चुकी होगी। चंदननगर कॉलेज में बांग्ला विभाग की प्रमुख संगीता त्रिपाठी मित्र मूल्यांकन पद्धति का समर्थन करते हुए कहती हैं कि महामारी के सामान्य परिवेश में माध्यमिक व उच्च माध्यमिक छात्रों के लिए मूल्यांकन का फैसला लेना पड़ा है। यदि कोई छात्र मूल्यांकन से संतुष्ट न हो तो उसके लिए परीक्षा देने का विकल्प भी रखा गया है। यह बिल्कुल सही फैसला है। ऐसे अनिश्चितता भरे माहौल में मानसिक तौर पर छात्रों को दबाव मुक्त करने वाले इस फैसले सराहना होनी चाहिए। पंचशायर शिक्षा निकेतन की उप प्रधानाध्यापिका सुपर्णा चक्रवर्ती ने कहा कि लंबी प्रतीक्षा के बाद मूल्यांकन पद्धति की घोषणा की गई है। छात्र लंबे समय तक अनिश्चितता और मानसिक दबाव में रहे था। इस फैसले ने इस दबाव से उन्हें मुक्ति दे दी है लेकिन परीक्षा के परिणाम निर्धारित करने की जो पद्धति स्वीकृत हुई है, खासतौर पर माध्यमिक परीक्षा के क्षेत्र में उसे ले लेकर कुछ संशय जरूर बना रह जाता है। बोर्ड की परीक्षा दसवीं कक्षा के सिलेबस पर आधारित होती है जबकि मूल्यांकन पद्धति में नौवीं कक्षा में प्राप्त अंकों को भी समान महत्व दिया गया है। सामान्यतः छात्र नौवीं कक्षा में दसवीं कक्षा जितना मेहनत नहीं करते। ऐसे में नौवीं कक्षा के नंबरों को महत्व दिए जाने से साधारण स्तर के छात्र-छात्राओं के मामले में प्रभाव जरूर पड़ेगा। शिक्षा बंधु एकता मंच के प्रदेश सचिव विभूति भूषण मंडल ने बताया कि इस मूल्यांकन पद्धति का कोई वैज्ञानिक अथवा शैक्षणिक आधार नहीं है। इससे मेधावी छात्रों की उम्मीदें धूमिल होंगी। हिन्दुस्थान समाचार

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