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ब्रह्मांड के अंतिम छोर के आंकलन की ओर बढ़े वैज्ञानिक, एरीज के नाम भी जुड़ी बड़ी उपलब्धि

- एरीज की छात्रा दुनिया के खगोलविदों के समूह जीएआईए द्वारा की गई बड़ी खोज में शामिल - एरीज की डॉट व आईएलएमटी दूरबीनों का भी खोज में योगदान नैनीताल, 08 अप्रैल (हि.स.)। मुख्यालय स्थित एरीज यानी आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के नाम पर बड़ी उपलब्धि जुड़ी है। दुनिया के खगोलविदों के संगठन जीएआईए यानी गुरुत्वाकर्षण लेंस वर्किंग ग्रुप ने जनपद के देवस्थल में लगी एशिया की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी प्रकाशीय दूरबीन-डॉट यानी देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप और यहीं प्रस्तावित 4 मीटर व्यास की आईएलएमटी दूरबीन सहित दुनिया की कई जमीन और अंतरिक्ष में लगी दूरबीनों की मदद से चतुष्कोणीय बहुरूपीय क्वेजार की खोज की है। इसे मनुष्यों एवं तथा मशीन आधारित एआई यानी संवर्धित बुद्धि की मदद से इंसान और मशीन की अनूठी जुगलबंदी की एक बड़ी खोज भी माना जा रहा है। इस अध्ययन में एरीज की शोध छात्रा प्रियंका जालान भी बेल्जियम की यूनिवर्सिटी ऑफ लिज के प्रोफेसर जीन सुरर्देज के साथ सह लेखिका हैं। बताया गया है कि पिछले केवल डेढ़ वर्ष से चल रहे इस शोध अध्ययन में पृथ्वी से अरबों प्रकाश वर्ष दूर स्थित पिंडों के अध्ययन में सहायता मिलेगी। इस अध्ययन से ब्रह्मांड के अंतिम छोर का आंकलन भी हो सकेगा। बताया गया है कि विशाल आकाशगंगाओं के गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा एक क्वेजार की चार छवियां यानी चतुष्कोणीय बहुरूपीय क्वेजार प्राप्त करना दुर्लभ होता है। वर्ष 1985 में पहला चतुष्कोणीय प्रतिबिंब खोजा गया था। इसके बाद पिछले चार दशकों में करीब 50 चतुष्कोणीय बहुरूपीय क्वेजार या क्वैड्स खोजे गए हैं, लेकिन इधर इस अध्ययन में केवल डेढ़ वर्ष में किये गए अध्ययन से क्वैड्स की संख्या में 25 फीसद की वृद्धि हो गयी है। इस अध्ययन में अमेरिका की जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला के डैनियन स्टर्न और क्रोन मार्टिस आदि वैज्ञानिक भी सहयोगी हैं। हिन्दुस्थान समाचार/डॉ.नवीन जोशी

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