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(राउंडअप) खेल और खिलौने के क्षेत्र में स्वयं को आत्मनिर्भर बनायें: नरेन्द्र मोदी

-भारतीय खिलौना मेला आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की तरफ बढ़ता कदम: पीएम -ऐसे खिलौने बनाएं जो इकोलॉजी और मनोविज्ञान के लिए बेहतर हो: पीएम -भारतीय खिलौने में ज्ञान है, तो विज्ञान भी। मनोरंजन है, तो मनोविज्ञान भी: पीएम -हस्तनिर्मित उत्पाद को भी बढ़ावा देना होगा: पीएम नई दिल्ली, 27 फरवरी (हि.स)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत में खिलौना उद्योग की छिपी हुई क्षमता को सामने लाने पर बल दिया है। सौ बिलियन डॉलर के विश्व खिलौना बाजार में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है। शनिवार को राजधानी दिल्ली में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए देश के पहले खिलौना मेला का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने इस स्थिति को बदलने की जरूरत पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि पहला खिलौना मेला सिर्फ एक व्यावसायिक या आर्थिक आयोजन नहीं है। यह कार्यक्रम देश की खेल और हर्ष की सदियों पुरानी संस्कृति को मजबूत बनाने की एक कड़ी है। खिलौना मेला एक ऐसा मंच है, जहां कोई भी व्यक्ति खिलौने के डिजाइन, नवाचार, प्रौद्योगिकी, विपणन और पैकेजिंग के बारे में विचार-विमर्श करने के साथ-साथ अपने अनुभव को भी साझा कर सकता है। खिलौने को लेकर भारत की समृद्ध परंपरा का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि खिलौने के साथ भारत का पुराना रिश्ता रहा है। यह रिश्ता उतना ही पुराना है, जितना इस भू-भाग का है। दुनिया ने सिंधु घाटी की सभ्यता, मोहनजो-दारो और हड़प्पा के युग से खिलौनों के बारे में अनुसंधान किया है। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में पूरी दुनिया से यात्री भारत आते थे और यहां के खेल सीखते थे। फिर उन्हें अपने साथ भी ले जाते थे। इसी क्रम में उन्होंने शतरंज का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि शतरंज, जो आज दुनिया में लोकप्रिय है, पहले भारत में 'चतुरंग या चादुरंगा' के रूप में खेला जाता था। आधुनिक लूडो भी तब 'पचीसी' के रूप में खेली जाती थी। उन्होंने कहा कि भारतीय खिलौने बच्चों के सामाजिक और मानसिक विकास में सहायक होते हैं। हमारे यहां खिलौने की समृद्ध परंपरा रही है, दादी-नानी के खिलौने पीढ़ियों से चले आ रहे हैं। उसमें स्मृति की महक होती है। भारतीय धर्म ग्रंथों का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे धर्म ग्रंथों में यह वर्णन किया गया है कि बलराम के पास बहुत खिलौने थे। गोकुल में, गोपाल कृष्ण अपने घर के बाहर मित्रों के साथ गुब्बारे से खेला करते थे। हमारे प्राचीन मंदिरों में भी खेल, खिलौने और शिल्प उकेरे गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि जिस प्रकार पुन: उपयोग और रिसाइकिलिंग भारतीय जीवन शैली का एक हिस्सा रहा है, ऐसा ही हमारे खिलौनों में भी देखा गया है। अधिकांश भारतीय खिलौने प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं से बने होते हैं। इनमें उपयोग किए जाने वाले रंग भी प्राकृतिक और सुरक्षित होते हैं। ये खिलौने हमारे मन को, हमारे इतिहास और संस्कृति से भी जुड़ते हैं। सामाजिक, मानसिक विकास तथा भारतीय दृष्टिकोण के निर्माण में भी सहायक होते हैं। पीएम ने देश के खिलौना निर्माताओं से ऐसे खिलौने बनाने का अनुरोध किया, जो इकोलॉजी और मनोविज्ञान दोनों के लिए बेहतर हों। खिलौनों में कम प्लास्टिक के साथ ऐसी वस्तुओं का उपयोग करने को कहा जिन्हें रिसाइकिल किया जा सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारतीय खिलौने में ज्ञान होता है, तो विज्ञान भी होता है। मनोरंजन होता है, तो मनोविज्ञान भी होता है। खेल और खिलौने के क्षेत्र में स्वयं को आत्मनिर्भर बनाना है। हमारे खिलौने में मूल्य, संस्कार और शिक्षाएं भी होनी चाहिए। उसकी गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से होनी चाहिए। बच्चों के समग्र विकास में खिलौनों के महत्व की चर्चा करते हुए भारत में खिलौनों के उत्पादन को बढ़ाने पर बल दिया था। लट्टू का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जब बच्चे लट्टू के साथ खेलना सीखते हैं, तो उन्हें लट्टू खेल में गुरुत्वाकर्षण और संतुलन का पाठ पढ़ाता है। इसी प्रकार गुलेल से खेलने वाला बच्चा अनजाने में स्थितिज और गतिज ऊर्जा के बारे में मूल बातें सीखना शुरू कर देता है। पहेली वाले खिलौने रणनीतिक सोच और समस्या को सुलझाने का विकास करते हैं। इसी प्रकार नवजात शिशु भी अपने हाथों को घुमाकर गोलाकार गति का अनुभव करना शुरू कर देता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि माता-पिता को खिलौने के विज्ञान और बच्चों के विकास में उनकी भूमिका को समझना चाहिए। उन्होंने स्कूलों में शिक्षकों से भी खिलौनों का उपयोग करने का भी अनुरोध किया। उन्होंने जानकारी दी कि इस दिशा में सरकार ने प्रभावी कदम उठाए हैं और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से अनेक बदलाव किए हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि इसमें बड़े पैमाने पर खेल आधारित और गतिविधि आधारित शिक्षा का समावेश किया गया है। यह ऐसी शिक्षा प्रणाली है जिसमें बच्चों में तार्किक और रचनात्मक सोच के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है। सौ बिलियन डॉलर के विश्व खिलौना बाजार में आज भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है। देश में 85 प्रतिशत खिलौने विदेशों से आ रहे हैं। प्रधानमंत्री ने इस स्थिति को बदलने की जरूरत पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि अब देश ने खिलौना उद्योग को 24 प्रमुख क्षेत्रों में वर्गीकृत किया है। राष्ट्रीय खिलौना कार्य योजना भी तैयार की गई है। इसमें 15 मंत्रालयों और विभागों को शामिल किया गया है ताकि इन उद्योगों को प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके। साथ ही देश को खिलौनों में आत्मनिर्भर बनाया जा सके तथा भारत के खिलौने विश्व में भेजे जा सकें। गौरतलब है कि अगस्त 2020 में अपने मन की बात कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पहली बार कहा था कि खिलौने न केवल क्रियाशीलता बढ़ाते हैं, बल्कि महत्वाकांक्षाओं को पंख भी लगाते हैं। उन्होंने भारत में खिलौनों के उत्पादन को बढ़ाने पर बल दिया था। खिलौना मेला 2021 का आयोजन प्रधानमंत्री के इस विजन के अनुरूप किया गया है। मेला 27 फरवरी से 2 मार्च, 2021 तक चलेगा। ई-कॉमर्स सक्षम वर्चुअल प्रदर्शनी में 30 राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों के 1000 से अधिक एक्जीबिटर अपने उत्पाद दिखाएंगे। इसमें परंपरागत भारतीय खिलौनों के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक टॉय, प्लस टॉय, पजल तथा गेम्स सहित आधुनिक खिलौने दिखाए जाएंगे। उद्घाटन कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी भी शामिल हुईं। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने कर्नाटक के चन्नपटना, उत्तर प्रदेश के वाराणसी और राजस्थान के जयपुर के खिलौना निर्माताओं से बातचीत की। हिन्दुस्थान समाचार/ ब्रजेश

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