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संघ प्रमुख डॉ. भागवत की 'भविष्य का भारत' पुस्तक के उर्दू संस्करण का विमोचन

-लोगों की भलाई और समाज की अच्छाई की बात करने वाले हिंदू हैंः कृष्णगोपाल एम ओवैस/मोहम्मद शहजाद नई दिल्ली, 05 अप्रैल (हि.स.)। राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (एनसीपीयूएल) इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत की पुस्तक ‘भविष्य का भारत’ के उर्दू संस्करण ‘मुस्तकबिल का भारत’ का विमोचन आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ. गोपाल कृष्ण और राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संरक्षक इंद्रेश कुमार के हाथों संपन्न हुआ। इस मौके पर इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर के अध्यक्ष सिराजुद्दीन कुरैशी, अंजुमन तरक्की उर्दू हिंद के महासचिव अतहर फारूकी और उर्दू भाषा विकास परिषद के निदेशक डॉ. शेख़ अकील अहमद उपस्थित थे। इस अवसर पर उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि हिंदू कोई धर्म नहीं है बल्कि एक विचारधारा है जो निरंतर प्रवाह कर रही है। आरएसएस के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने 95 साल पहले भारतीय समाज को शालीन और सभ्य बनाने का बीड़ा उठाया था। आज लाखों-लाख स्वयं सेवक उनके बताए रास्ते पर चल कर देश और समाज की सेवा में लगे हुए हैं। उनका कहना है कि हिंदू क्या है? इस पर बहुत सारे लोग बात करते हैं। आरएसएस का मानना है कि जो लोगों की भलाई की, समाज की अच्छाई की बात करे, वह हिन्दू है। गौरतलब है कि डॉ. मोहन भागवत की पुस्तक ‘भविष्य का भारत’ 2018 में आ गई थी और उसका कई भाषाओं में विमोचन उसी समय हो गया था। उर्दू भाषा में इसका आज विमोचन हुआ है। डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा हम चाहते हैं कि भागवत की इस किताब को सभी लोग पढ़ें। खासतौर से मैं उर्दू भाषी लोगों और मुसलमानों से अपील करता हूं कि वह इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें। आरएसएस को लेकर के जो तमाम तरह के संदेह और भ्रम आपके मन में हैं, वह जरुर इस पुस्तक को पढ़ने के बाद दूर होंगे। पुस्तक पढ़ने के बाद भी अगर आपके मन में कोई भ्रम और संदेह पैदा होता है, हम उसे एक और कार्यक्रम का आयोजन करके दूर करने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रश्न करना चाहिए। प्रश्न का हम स्वागत करते हैं। भारत का आविष्कार कब हुआ, इसके बारे में आज तक किसी को नहीं पता है लेकिन अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के आविष्कार और उसकी स्थापना के बारे में इतिहास मौजूद है। भारत एक ऐसा राष्ट्र है जो सभी के लिए सोचता है। सभी के लिए कुछ करना चाहता है। इसी धारणा को सामने रखकर भारत ने कोविड-19 के निदान के लिए बनाई गई वैक्सीन को बिना कोई शुल्क लिए दुनिया के कई देशों को मुफ्त में भेजा है। जिस समय भारत में कोविड-19 के कारण लॉकडाउन लगाया गया, उस समय अपने घरों को वापस जा रहे बेसहारा, असहाय लोगों की मदद के लिए पूरा देश सड़कों पर आ गया था। उसमें हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी शामिल थे। जिसके हाथ जो लगा वह लेकर के सड़क पर उनकी मदद के लिए आ गया था। यही हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे देश में शिक्षक जो हमें शिक्षा देते हैं, हमारे बच्चों को शिक्षा देते हैं, वह हमारे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए अपने घरों पर बुलाते हैं, ये क्या है? एक इंजीनियर अपनी क्षमता का इस्तेमाल करके बिल्डिंग और पुल आदि का निर्माण करते हैं और उनको बनाने में चोरी करते हैं, वह देशभक्त कैसे हो सकते हैं। इससे पहले स्वागत भाषण में एनसीपीयूएल के डायरेक्टर डॉ. शेख अकील अहमद ने पुस्तक के उर्दू अनुवाद के उद्देश्य का उल्लेख करते हुए कहा कि इसके जरिए वह आरएसएस की विचारधारा और गतिविधियों से मुसलमानों को अवगत कराना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक को उर्दू भाषी लोगों को जरूर पढ़ना चाहिए। यह किताब मुसलमानों और आरएसएस के दरमियान फासले कम करने में मददगार साबित होगी। कार्यक्रम में उपस्थित इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर के अध्यक्ष सिराजुद्दीन कुरैशी ने कहा कि आरएसएस काफी बड़ा संगठन है और इसकी स्थापना को सौ साल पूरे होने जा रहे हैं। आरएसएस ने राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई है और इसने देश को जोड़ने का काम किया है। इसलिए आरएसएस के बारे किसी तरह के संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। इसको लेकर लोगों के मन में जो भी भ्रम हैं, वह बेबुनियाद हैं। अंत में एनसीपीयूएल के डायरेक्टर डॉक्टर अकील अहमद ने धन्यवाद ज्ञापन किया है। हिन्दुस्थान समाचार

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