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एक जीव-दृष्टि है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : दत्तात्रेय होसबाले

- मुख्यमंत्री योगी की मौजूदगी में सुनील आंबेकर की 'आरएसएस' पर लिखी पुस्तक का हुआ लोकार्पण - आंबेकर ने कहा, संगठन के प्रति उठ रही जिज्ञासाओं के समाधान का है एक प्रयास लखनऊ, 26 फरवरी (हि.स.)। आरएसएस समाज में एक संगठन नहीं, यह एक समाज का संगठन है। यह सभी को संगठित करता है। संघ एक जीवन दृष्टि है, यह एक अनुभव है। ये बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कही। वह शुक्रवार को संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर की लिखी पुस्तक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-स्वर्णिम भारत के दिशा सूत्र’ के लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे। कार्यक्रम राजधानी में गोमती नगर स्थित इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में हुआ। श्री होसबाले ने कहा कि हम समाज में रहते हैं और सभी को संगठित करते रहते हैं। संघ को समझने के लिए ऐसे कई सूत्र हैं। इसमें ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-स्वर्णिम भारत के दिशा सूत्र’ किताब भी एक है। किसी एक व्यक्ति का विचार या मत संघ नहीं होता। यहां समूह का मत होता है। दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि जिस तरह से किसी एक बिंदू को देखकर पूरे हिन्दू समाज के बारे में कह देना उपयुक्त नहीं होगा। वैसे ही किसी जगह को देखकर पूरे भारत के बारे में नहीं कह सकते। हिन्दुस्तान की पहचान हिन्दू है। इसकी पहचान हिन्दुत्व है। हिन्दुत्व का अर्थ हिन्दू धर्म नहीं है। इसको संकुचित रूप से नहीं देखना चाहिए। संकुचन के कारण ही कुछ लोगों ने संघ के बारे में संकुचित विचार रख दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में मिथ्या प्रचार ज्यादा हो गया था। इसके बारे में बिना जाने बोलने वालों की संख्या ज्यादा हो गयी थी। संघ प्रारंभ हुआ एक संगठन के रूप में लेकिन हेडगेवार जी ने पहले ही कहा कि यह कोई नया काम नहीं है। संघ में 'मैं' नहीं 'हम' का भाव होता है। संघ को नाम भी उसकी स्थापना के बाद दिया गया। वरिष्ठ स्तम्भकार नरेन्द्र भदौरिया ने कहा कि यह पुस्तक मेरे लिये एक गीता है। जो संघ को नहीं जानते हैं, उनके लिए यह एक मोती के समान है। यह धरा शील व सामर्थ्य की धरती है। विश्व इसे नहीं जान पाया, यह तो दूसरी बात है लेकिन भारत में जन्मा व्यक्ति आरएसएस को नहीं जान पाया, यह बहुत बड़ा आश्चर्य है। इसकी गहराइयों में जाने की आज जरूरत है। शील बहुत गंभीर होता है और उसे समझ पाना बहुत कठिन होता है। सुनील आंबेकर ने पूर्व में ‘द आरएसएस-रोडमैप्स फॉर द 21 सेंचुरी’ नामक पुस्तक अंग्रेजी में लिखी थी, जिसका वर्ष 2019 में संघ प्रमुख मोहन राव भागवत ने लोकार्पण किया था। इसका हिंदी में अनुवाद डॉ जितेंद्र वीर कालरा ने किया है। प्रभात प्रकाशन ने इसे प्रकाशित किया है। श्री आंबेकर ने पुस्तक के संबंध में कहा कि आज मैं बहुत कुछ कहना नहीं चाहता हूं। हम वरिष्ठों को सुनना चाहते हैं। हम विश्वविद्यालयों में जाते थे तो बहुत सारी जिज्ञासाओं के बारे में पता चलता था। हमें यह भी पता चला कि एक ऐसी पीढ़ी भी है, जिन्हें पूरी दुनिया के बारे में जानकारी मिलती है और उनका तुलनात्मक अध्ययन करना चाहते हैं। ऐसे लोग भी आने लगे कि भारत के बारे में जो भी उन्होंने जाना वह संपूर्ण नहीं है। ऐसे हमारे भीतर यह भाव जागा कि हम इसके लिए क्या कर सकते हैं। विदेशों में रह रहे भारतीयों में यह विचार देखा गया कि हम भारत के लिए क्या कर सकते हैं। इसी विचार के आने के बाद हमने इस पुस्तक के बारे में विचार किया और संगठन के प्रति उठ रही जिज्ञासाओं के समाधान करने का हमने किताब के माध्यम से प्रयास किया। इस किताब में संघ को समाहित नहीं किया जा सकता लेकिन मैं जो भी समझ पाया, उसे समझाने का प्रयास किया। सुनील आंबेकर संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं। ऐसे में उन्होंने अपनी इस पुस्तक में संघ से जुड़े तमाम सवालों का विश्लेषण किया है। 272 पृष्ठों की इस पुस्तक के माध्यम से सुनील आंबेकर ने संघ और संघ की आंतरिक कार्यप्रणाली को दस अध्यायों में सम्पूर्ण विश्व के सामने रखा है। इनमें संघ की भावभूमि, संघ की मूल अवधारणाएं, संघ की कार्यप्रणाली, शाखा पद्धति तथा संरचना, संघ की दृष्टि में भारत का इतिहास, हिंदुत्व का पुनरोदय, जाति प्रथा और सामाजिक न्याय, भूमंडलीकरण, आधुनिकता और महिला आंदोलन प्रमुख हैं। यह पुस्तक संघ की कार्यप्रणाली और उसकी भावी योजनाओं को विस्तार से समझाती है। हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र/दीपक

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