गुरू पूर्णिमा पर विशेष: जेके दे न राम उनके दे कीनाराम, क्रीं कुंड जहां 24 घंटे जलती है चिता धुनी
गुरू पूर्णिमा पर विशेष: जेके दे न राम उनके दे कीनाराम, क्रीं कुंड जहां 24 घंटे जलती है चिता धुनी

गुरू पूर्णिमा पर विशेष: जेके दे न राम उनके दे कीनाराम, क्रीं कुंड जहां 24 घंटे जलती है चिता धुनी

-रविन्द्र पुरी स्थित गुरू स्थली में जुटते हैं हजारों श्रद्धालु, पाते हैं औघड़ संतों का आर्शिवाद - मंगलवार और रविवार को कुंड में स्नान के लिए उमड़ती है भीड़ श्रीधर त्रिपाठी वाराणसी, 04 जुलाई (हि.स.)। काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी धर्म अध्यात्म के साथ यहां निवास करने वाले संतों और फकीरों के सिद्धियों और चमत्कारों के लिए भी जानी जाती है। ऐसे तो वर्ष पर्यंत श्रद्धालु अपने गुरूपीठों में गुरूओं और मठाधीशों का दर्शन-पूजन करने आते हैं। लेकिन गुरू पूर्णिमा पर्व पर तो इन गुरूपीठों और आश्रमों में आस्थावानों का रेला उमड़ पड़ता है। पर्व पर चहुओंर बंदउ गुरू पद पदुम परागा का भाव दिखता है। इसी गुरूपीठों और आश्रमों में रविन्द्रपुरी स्थित अघोर पीठ बाबा कीनाराम स्थल 'क्रीं कुंड' का खास स्थान है। बाबा कीनाराम को भगवान शिव का अंश माना जाता है। बाबा का जन्म 1693 भाद्रपद शुक्ल को चंदौली तब वाराणसी जिले के रामगढ़ गांव में अकबर सिंह के घर हुआ था। 12 वर्ष की अवस्था में बाबा वैरागी होकर घर से निकल कर गिरनार पर्वत पर बस गए। वहां कठिन अघोर साधना के बाद बाबा को भगवान दत्तात्रेय का आर्शिवाद मिला। औघड़ साहित्य की पुस्तकों में बाबा के तप और सिद्धियों को लेकर तमाम बातें लिखी है। उसमें लिखा है कि बाबा जब काशी में आये तब उन्होंने हरिश्चंद्र घाट के समीप स्थित आनंद कानन और रूद्र वन अब रविन्द्रपुरी में डेरा डाला। एक कहावत यह भी है कि औघड़ संत कालूराम ने अपने स्वरूप में दर्शन देकर बाबा कीनाराम को क्रींकुण्ड आने के लिए प्रेरणा दी। उन्होंने स्वप्न में कहा कि इस स्थल को ही गिरनार समझे। समस्त तीर्थों का फल यहाँ मिल जाएगा। भगवान कीनाराम मृत्यु तक इसी स्थान पर रहे। बाबा के चमत्कारिक शक्तियों को लेकर काशी में अनेक किवदंतिया है। इसमें प्रमुख है कि बाबा जब गंगा उस पर पड़ाव अधोर साधना के लिए जाते थे तो गंगा में ऐसे चलते थे। जैसे कोई जमीन पर चलता हो। बहते मुर्दो को पुकारते थे तो वह उठकर खड़े हो जाते है। उनसे एक और जुड़ी किवदंती है कि तत्कालीन काशी नरेश एक बार अपने हाथी पर सवार होकर शिवाला स्थित आश्रम से जा रहे थे,उन्होनें बाबा कीनाराम के तरफ उपेक्षा से देखा तो बाबा ने आदेश दिया दिवाल चल आगे,इतना कहना कि दिवाल चल दिया और काशी नरेश की हाथी के आगे-आगे चलने लगा। तब काशी नरेश को अपने भूल का एहसास हुआ और उन्होंने बाबा के चरणों में गिर कर माफी मांगी। अनेकानेक चमत्कारों व साधना के लिए जाने जाने वाले बाबा के बारे में काशी में जनश्रुति है 'जेके न दे राम ओके दे कीनाराम'। इस कहावत के बारे में कहा जाता है कि जिसे भगवान राम की कृपा न मिले वह साधना और भक्ति से उस कृपा या मनवांछित मनौती को पा सकता है। आश्रम में स्थित क्रीं कुण्ड’ पर जलने वाली ‘धुनि’ की धूल ही यहाँ का प्रसाद है। काशी में मान्यता है कि यह धुनी कभी बुझती नहीं है। इस कक्ष के अन्दर गुरु का आसन है। इसके दक्षिण ओर विशाल व भव्य समाधि से लगा ग्यारह पीठाधीशों की समाधि श्रृंखला एकादश रूद्र का प्रतीक है। इस विशाल समाधि के अन्दर गुफा में माँ हिंगलाज यन्त्रवत स्थित हैं, जिनके बगल में अघोराचार्य बाबा कीनाराम का पार्थिव शरीर स्थापित है। इसके ऊपर स्थित पांचवा मुख जो शिव शक्ति का प्रतीक है। शनिवार को 'हिन्दुस्थान समाचार' से बातचीत में बाबा कीनाराम आश्रम से जुड़े श्रद्धालु हिमांशु राव ने बताया कि कीनाराम स्थली के मध्य में स्थित क्रीं-कुण्ड तालाब का अपना महत्व है। यहां स्नान के बारे में लोगों में विश्वास है कि बच्चों का सिखण्डी रोग और अन्य व्याधी दूर होती है। माना जाता है कि क्रीं कुण्ड भगवान सदाशिव और उनके अंश बाबा कीनाराम का कल्याणकारी स्वरूप है। मान्यता है कि किसी भी प्रकार की विपत्ति व आपदा से पीडि़त पांच रविवार व मंगलवार को कुण्ड में स्नान करे या मुँह-हाथ धोने के बाद आचमन करे, तो उसके कष्ट का निवारण हो जायेगा। इस मान्यता के चलते यहाँ प्रति रविवार व मंगलवार को श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती है। जो व्यक्ति पहली बार स्नान करते हैं, वे अपना वस्त्र जिसे पहनकर आये होते हैं, स्नान करने के बाद वहीं छोड़ देते हैं और दूसरा वस्त्र पहनकर वापस जाते हैं। बाबा कीनाराम के अनंय भक्त युवा पत्रकार अवनींद्र सिंह अमन बताते है कि अघोर दर्शन महज किसी धर्म, परंपरा, संप्रदाय, मत, पंथ के दायरे में बंधा हुआ नही है। इसे आप एक विशेष मानसिक स्थिति मान सकते है। साधकों को औघड़, अवधूत, कापालिक, सांकल्य, परमहंस, औलिया, मलंग, साई या फिर विदेह के स्वरूप में जाना-पहचाना है। पीठाधीश्वर ने लाखों अनुयायियों से पर्व घर मनाने की अपील की पूरे देश में वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण को देख अघोरपीठ औघोराचार्य बाबा कीनाराम अघोर शोध एवं सेवा संस्थान क्रीकुण्ड के वर्तमान पीठाधीश्वर अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम ने अपने लाखों अनुयायियों से गुरू पूर्णिमा पर्व घर पर मनाने की अपील की है। उन्होंने कहा कि महामारी से सम्पूर्ण मानव जाति के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया है। इस संकट के घड़ी में सभी श्रद्धालुओं तथा अनुयायियों पर मानवता की सेवा एवं रक्षा का दायित्व सबसे अधिक है। अतः आप से नम्र निवेदन हैं कि सरकार के समय- समय पर दिये गये निर्देशों का अनुपालन करे । तथा अन्य लोगों को पालन करने के लिए प्रेरित करे। इस बार घर से ही गुरू की पूजा करें। हिन्दुस्थान समाचार-hindusthansamachar.in

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