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पंजाब : तिब्बत की आज़ादी से ही जुड़ा है भारत का विकास और सुरक्षा

- अध्यात्मवाद की भारत में हवा भी तिब्बत से आती है - तिब्बत की आज़ादी के लिए राष्ट्रीय स्तर की बैठक चंडीगढ़, 06 मार्च (हि.स.)। पंजाब के जीरकपुर में आज तिब्बत की आज़ादी के लिए भारत-तिब्बत संवाद मंच की केंद्रीय कोर ग्रुप की बैठक हुई, जिसमें दिल्ली, हिमाचल, अरुणचल, उत्तरप्रदेश समेत अनेक राज्यों और कुछ देशों से तिब्बत प्रेमी शामिल हुए। दो दिन तक चलने वाली इस बैठक के पहले दिन स्पष्ट रूप से कहा गया कि तिब्बत की आज़ादी का सम्बन्ध भारत के विकास और सुरक्षा से जुड़ा हुआ है, इसलिए मंच अपने 20 राज्यों की इकाइयों के मार्फ़त विभिन्न राज्यों के राज्यपालों को ज्ञापन देकर मांग करेगा कि भारत तिब्बत को एक देश के रूप में मान्यता दें। बैठक में इस बात को बताया गया कि भारत और तिब्बत की संस्कृति में ज्यादा फर्क नहीं है और अध्यात्मवाद की भारत में हवा भी तिब्बत से आती है। मुख्य मेहमान के रूप में शामिल हुए हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक और हरियाणा उर्दू अकादमी के उप -चेयरमैन डा चंद्र त्रिखा ने अपने सम्बोधन में कहा कि तिब्बत के मामले को समझने से पहले तिब्बत की संस्कृति को समझना जरूरी होगा। उन्होंने कहा कि तिब्बत की भूमि रहस्यमयी और अध्यात्म की भूमि है। उन्होंने कहा कि तिब्बत की संस्कृति की पुस्तकों की भारत में भी संभाल नहीं हो रही है। भारत दशकों से तिब्बती लोगों को तो संभाल रहा है और समर्थन भी कर रहा है, परंतु तिब्बत को अलग देश के रूप में मान्यता नहीं दे रहा। उन्होंने कहा कि चीन के अत्याचार की दास्तान और धोखा देने की नीति कोई नई नहीं है और चीन की वस्तुओं का बहिष्कार व्यवहारिक जरूरत है जबकि चीनी सामान की खरीद का अर्थ चीन को मजबूत करके भारत को कमज़ोर करना है। भारत -तिब्बत संवाद मंच के राष्ट्रीय संयोजक डा. संजय शुक्ला ने कहा कि जब तक तिब्बत आज़ाद था, तब भारत -तिब्बत सीमा पर महज़ कुछ सैनिक ही तैनात थे और वो भी मानसरोवर का मार्ग बताने के लिए। परन्तु अब तिब्बत पर चीन के कब्ज़े के बाद भारत को रक्षा का एक तिहाई बजट सिर्फ भारत -चीन सीमा पर ही खर्च करना पड़ रहा है। अगर तिब्बत आज़ाद हो तो यही बजट भारत के विकास में खर्च होगा और भारत को तिब्बत में अपने धार्मिक स्थलों पर जाने का खुला अवसर मिलेगा। अब चीन ने तिब्बत पर कब्ज़े के बाद भारत तो तंग करना जारी रखा हुआ है। उन्होंने कहा कि मंच विभिन्न राज्यपालों के मार्फ़त इस बात की मांग करेगा कि स्कूली शिक्षा में चीन की बजाय तिब्बत और ल्हासा की शिक्षा को शामिल किया जाए। डा. शुक्ला ने यह भी कहा कि अगर भारत के लोगों ने ये तय कर लिया कि चीनी सामान का बहिष्कार करना है तो आर्थिक तंगी में जा रहे चीन के चार टुकड़े होने से कोई नहीं रोक सकेगा। उन्होंने कहा कि मंच मांग करेगा कि भरत सरकार तिब्बत को मान्यता दे और तिब्बत की नीति की भी घोषणा करें। अन्य राज्यों से आये मंच के पदाधिकारियों ने भी संवाद में अपने विचार प्रकट किये। हिन्दुस्थान समाचार/ नरेंद्र जग्गा/रामानुज

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