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नई शिक्षा नीति में छात्रों को अधिक स्वतंत्रता का प्रावधान : अनिल सहस्त्रबुद्धे

नई दिल्ली, 12 मार्च (हि.स.)। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के अध्यक्ष अनिल सहस्त्रबुद्धे ने कहा है कि नई शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत हम छात्रों को अधिक स्वतंत्रता दे रहे हैं। नई शिक्षा नीति में लचीले पाठ्यक्रम, विषयों के रचनात्मक संयोजन, व्यावसायिक शिक्षा एवं उपयुक्त प्रमाणन के साथ मल्टीपल एंट्री एवं एक्जिट बिन्दुओं के साथ व्यापक, बहुविषयक, समग्र अवर स्नातक शिक्षा की परिकल्पना की गई है। एआईसीटीई के अध्यक्ष अनिल सहस्त्रबुद्धे ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि नई शिक्षा नीति में यदि किसी छात्र या छात्रा के पास 12वीं कक्षा में फिजिक्स और गणित नहीं है, तो भी वह बीई और बीटेक में अप्लाई कर सकता है। इसके लिए उसे पहले साल इंजीनियरिंग में गणित की अतिरिक्त शिक्षा लेनी होगी। 10 साल पहले तक हमारी तरफ से फिजिक्स केमिस्ट्री और मैथ को अनिवार्य माना जाता था, किसी भी इंजीनियरिंग एग्जाम के लिए अब तक फिजिक्स और गणित की अनिवार्यता थी, लेकिन अब वह भी खत्म कर दी गई है। प्रोफेसर सहस्त्रबुद्धे ने कई उदाहरण देते हुए समझाया कि जैसे अगर कोई छात्र बीटेक कंप्यूटर करना चाहता है, तो उसके लिए फिजिक्स की जरूरत नहीं है। वैसे ही अगर कोई छात्र एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी में काम करना चाहता है तो उसके लिए केमिस्ट्री की जरूरत नहीं है। अगर कोई विद्यार्थी बायोलॉजिकल टेक्नोलॉजी में बीटेक करना चाहता है तो उसके लिए बायोलॉजी की जरूरत सबसे ज्यादा है, इसलिए हम स्वतंत्रता दे रहे हैं जिसके तहत किसी भी विषय की अनिवार्यता अब इंजीनियरिंग एग्जाम में नहीं रहेगी। उन्होंने कहा कि इसका अर्थ यह नहीं है कि मौजूदा विश्वविद्यालय या संस्थानों को अपने नियम बदलने होंगे, बल्कि अगर कोई राज्य सरकार, विश्वविद्यालय या संस्थान चाहे तो नई शिक्षा नीति के तहत भी प्रवेश परीक्षा ले सकते हैं अब इसकी स्वतंत्रता दी गई है। प्रोफेसर सहस्त्रबुद्धे ने आगे बात करते हुए बताया कि हमारी शिक्षा नीति में मातृभाषा को भी प्रमुखता दी गई है। एक सर्वे के मुताबिक जो विद्यार्थी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं उनमें से 42 प्रतिशत अपनी मातृभाषा में पढ़ना चाहते हैं। हालांकि उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई का मीडियम अंग्रेजी चुना था, फिर भी तमिल, मराठी, हिंदी और बांग्ला भाषा में वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहते हैं। लिहाजा अब हम यह स्वतंत्रता दे रहे हैं कि अगर विद्यार्थी चाहे तो इंजीनियरिंग की उच्च शिक्षा वह अपनी मातृभाषा में ले सकते हैं। प्रोफेसर ने यह भी कहा कि विभिन्न संस्थाओं को आने वाले 15 साल में हम अधिक स्वायत्ता देंगे। जिसके बाद अगर विद्यार्थी चाहे तो एक दिन एक संस्था में पड़ सकते हैं और दूसरे दिन दूसरी संस्था में या विश्वविद्यालय या कॉलेज में दूसरे विषय की शिक्षा ले सकते हैं ,इससे छात्रों को पढ़ने की अतिरिक्त स्वतंत्रता मिलेगी। उल्लेखनीय है कि एनईपी 2020 का लक्ष्य व्यवसायिक शिक्षा सहित उच्चतर शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को 26.3 प्रतिशत (2018) से बढ़ाकर 2035 तक 50 प्रतिशत करना है। हिन्दुस्थान समाचार/सुशील

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