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मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा बच्चों के आत्म-सम्मान और रचनात्मकता को बढ़ावा दे सकती है : उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली, 21 फरवरी (हि.स.)। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने मातृभाषा को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने का आह्वान करते हुए रविवार को कहा कि कम से कम 5 वीं कक्षा तक बच्चों को मात़ृ भाषा में ही शिक्षा दी जानी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि प्राथमिक चरण में किसी बच्चे को घर पर नहीं बोली जाने वाली भाषा में शिक्षित करना विशेष रूप से सीखने के लिए एक बड़ी बाधा हो सकती है। शिक्षा मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित वेबिनार के उद्घाटन सत्र में उपराष्ट्रपति ने मातृभाषा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए पांच प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया। प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा के उपयोग पर जोर देने के अलावा प्रशासन, अदालती कार्यवाही में स्थानीय भाषाओं का उपयोग और उनमें निर्णय देने की सलाह दी। वह उच्च और तकनीकी शिक्षा में स्वदेशी भाषाओं के उपयोग में क्रमिक वृद्धि भी चाहते हैं। उन्होंने अपनी मातृ भाषा पर गर्व करने और अपने घरों में इसके उपयोग पर जोर दिया। कई अध्ययनों का उल्लेख करते हुए नायडू ने कहा कि शिक्षा के प्रारंभिक चरणों में मातृभाषा के माध्यम से पढ़ाना एक बच्चे के आत्म-सम्मान को बढ़ावा दे सकता है और उसकी रचनात्मकता को बढ़ा सकता है। उन्होंने नई शिक्षा नीति को एक दूरदर्शी और प्रगतिशील दस्तावेज बताते हुए इसे जल्द से जल्द अपनाने का आग्रह किया। नायडू ने राज्यसभा का उदाहरण दिया, जहां इसके सदस्यों के लिए 22 अनुसूचित भाषाओं में से किसी में भी खुद को व्यक्त करने का प्रावधान किया गया है। वेबिनार में नायडू ने लुप्तप्राय भाषाओं की स्थिति पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने रेखांकित किया कि 196 भाषाओं के साथ भारत में दुनिया में लुप्तप्राय भाषाओं की संख्या सबसे अधिक है। उन्होंने इस संबंध में शिक्षा मंत्रालय के लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण और संरक्षण के लिए योजना की सराहना की। इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल, संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल और शिक्षा राज्य मंत्री संजय धोत्रे, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी भी वर्चुअल माध्यम से उपस्थित थे। हिन्दुस्थान समाचार/सुशील

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