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कोरोना से होने वाली मौतों को रोकें

रमेश सर्राफ भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर का प्रकोप जारी है। कोरोना महामारी के साथ ही इसके साइड इफेक्ट भी होने लगे हैं। कोरोना से ठीक हो रहे कई लोगों को ब्लैक फंगस, व्हाइट फंगस, येला फंगस जैसी कई अन्य संक्रामक बीमारी जकड़ने लगी है। इन बीमारियों की चपेट में आने से लोग विकलांग होने लगे हैं। कई लोगों ने अपनी आंखों की रोशनी खो दी है। तो कई लोगों को अन्य तरह की शारीरिक अपंगता झेलनी पड़ रही है। मई माह के प्रथम सप्ताह में तो कोरोना पॉजिटिव आने वाले लोगों की संख्या प्रतिदिन चार लाख से भी अधिक पहुंच गई थी। पिछले कुछ दिनों में घटकर दो लाख या उससे कम रह रही है। सरकारी सूत्रों के अनुसार इस समय कोरोना संक्रमित होने वालों से अधिक संख्या कोरोना से रिकवर होने वालों की है। जो सरकार व चिकित्सकों के लिए राहत भरी खबर है। हालांकि राज्य सरकारों द्वारा अपने प्रदेशों में लॉकडाउन लगाया गया है। जिसके बाद ही कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में कमी आई है। देश के प्राय सभी राज्यों में लॉकडाउन चल रहा है। कोरोना मरीजों की संख्या कम आने का कारण लॉकडाउन है या जांच में कमी है यह कहना तो मुश्किल है। मगर लोगों के घरों से बहुत कम निकलने के कारण कोरोना का सामुदायिक प्रसार जरूर कम हुआ है। देश में कोरोना संक्रमित मिलने के आंकड़ों में जहां कमी आई है। वही कोरोना से मरने वालों की संख्या अभीतक कम नहीं हो पायी है। कोरोना से हर दिन बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही है जो सभी के लिए बड़ी चिंता का कारण है। देश में कोरोना से होने वाली मौतों पर जब तक प्रभावी ढंग से नियंत्रण नहीं हो पाता। तब तक यह कहना मुश्किल होगा कि कोरोना संक्रमण का प्रसार कम हो गया है। गत वर्ष कोरोना की पहली लहर में इस बार की तुलना में मरने वालों की संख्या बहुत कम थी। इस बार कोरोना से बड़ी तादाद में लोगों के मरने से आमजन में भय व्याप्त हो रहा है। आजादी के 74 साल बाद भी देश में ऑक्सीजन गैस के अभाव में लोगों का मरना दुःस्वप्न से कम नहीं है। बड़े शहरों, महानगरों में जितने भी अस्पताल थे वह सब कोरोना की दूसरी लहर में पस्त हो गए। लोगों को पता चल गया कि देश के बड़े-बड़े अस्पतालों में भी लोगों की जान बचाने के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं है। जब बड़े शहरों में ही बुरी स्थिति है तो गांव के तो हाल और भी खराब है। गांव के प्राथमिक, सामुदायिक चिकित्सा केंद्रों पर आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव रहता है। वहां जब भी कोई गंभीर मरीज आता है तो उसे बड़े अस्पताल में रेफर कर पीछा छुड़ा लेते हैं। प्राथमिक, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मरीजों को ढंग से प्राथमिक उपचार भी नहीं मिल पाता है। देश में चिकित्सा कर्मियों की बड़ी कमी है। जिन्हें पूरा करने के लिए सरकार हर बार दावा तो करती है मगर उसे पूरा नहीं करती है। अस्पतालों में वर्षों से बहुत से पद रिक्त पड़े रहते हैं। सरकारी तंत्र उन पर नियुक्ति करने की तरफ कोई ध्यान नहीं देता हैं। राजनेताओं का ध्यान तो बस विकास के नाम पर सड़क, पुल, रेल, बस, भवन, नहर, बांध निर्माण की तरफ ही रहता है। यदि सरकारें पिछले 74 सालों में चिकित्सा के क्षेत्र में सुधार की तरफ थोड़ा भी ध्यान देती तो आज हमें इस तरह की बदतर स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। सरकारों को आगे पूरा ध्यान चिकित्सा तंत्र को मजबूत करने पर लगाना चाहिये। बड़े शहरों, महानगरों से लेकर छोटे गांव ढाणी के उप स्वास्थ्य केंद्र तक को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं से लैस कर दे। ताकि लोगों को चिकित्सा के अभाव में जान नहीं गंवानी पड़े। (लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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