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अमेरिका-चीन की तर्ज पर भारत में भी बने इनडोर वायु प्रदूषण पर नीतिः आईआईटी शोध

- ऑफिस, घर और स्कूल-कॉलेजों की इमारतों में प्रदूषण की मात्रा ज्यादा नई दिल्ली, 19 फरवरी (हि.स.)। विकासशील देशों में इनडोर वायु प्रदूषण के लिए कोई नीति नहीं होने के कारण लोग बाह़य के साथ आंतरिक वातावरण में भी सुरक्षित नहीं हैं। आलम ये है कि ऑफिस, घर और स्कूल-कॉलेजों की इमारतों में सीओ-2 और पीएम के कण उच्च स्तर पर मौजूद हैं। ऐसे में अमेरिका और चीन की तर्ज पर भारत में भी अब इनडोर वायु प्रदूषण के लिए नीति बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है। भारतीय प्रौद़योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के शोधकर्ताओं ने शुक्रवार को अपने एक अध्ययन के हवाले से यह बात कही। आईआईटी के उत्कृष्टता केंद्र (सीईआरसीए) ने सोसाइटी फॉर इंडोर एनवायरनमेंट (सीआईई) और एयर क्वालिटी इंस्ट्रूमेंट कंपनी काइत्रा के साथ दिल्ली के विभिन्न प्राथमिकता वाले भवनों जैसे स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, रेस्तरां, आवासीय भवन और सिनेमाघरों में इनडोर वायु गुणवत्ता की स्थिति पर एक आधारभूत सर्वेक्षण किया। 15 अक्टूबर, 2019 से 30 जनवरी, 2020 तक कुल 37 इमारतों पर अध्ययन किया गया। अध्ययन के दौरान भौतिक विशेषताओं जैसे कि दरवाजे और खिड़कियां, एयर प्यूरीफायर, एयर कंडीशनिंग सिस्टम, कालीन, फर्नीचर, फोटोकॉपियर और प्रिंटर भवन के अंदर, डीजल जनरेटर सेट चलाने, भारी यातायात के साथ सड़क के किनारों से इमारतों की दूरी भी दर्ज की जाती है। सीईआरसीए के हेमंत कौशल ने शोध के हवाले से बताया कि बाहरी वातावरण के लिए तय मानकों की तर्ज पर इमारतों के भीतर भी पीएम 2.5, पीएम 10, टीवीओसी और सीओ 2 आदि की मात्रा का मानक तय होना चाहिए। क्योंकि लोग अपने दैनिक समय का 90 प्रतिशत से अधिक समय इनडोर वातावरण में बिताते हैं। उन्होंने कहा कि आमतौर पर इस बात की अनदेखी की जाती है कि इनडोर वातावरण भी अच्छा होना चाहिए। हम ये भूल जाते हैं कि घर और कार्यालयों आदि में भी बहुत सारे प्रदूषक कण होते हैं, जिन्हें हम रोज भीतर लेते रहते हैं लेकिन हमारे लिए इसका कोई मानक तय नहीं होने के कारण हम यह नहीं कह सकते कि जब भी कोई इमारत बने उसका भीतर का वातावरण पीएम 2.5, पीएम 10, टीवीओसी और सीओ 2 आदि की तय मानक से अधिक मात्रा नहीं होनी चाहिए। मानक तय होने पर इमारतों का निर्माण करने वालों के लिए उनके पालन की बाध्यता हो जाएगी। आंतरिक वातावरण के लिए नीति बनाई जानी चाहिए। इमारतों के हवादार नहीं होने के कारण कार्यालयों में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों जैसे फोटो कॉपी मशीन और प्रिंटर से निकलने वाले केमिकल, फर्श की सफाई के लिए पोंछे आदि में इस्तेमाल होने वाले फिनायल आदि से टीवीओसी निकलता है। ऐसे में हवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है, जिससे हम घर और कार्यालय के अंदर सांस लेने पर प्रदूषण कणों को रोज भीतर लेते रहते हैं। शोध के अनुसार, इनडोर वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत हीटिंग और खाना पकाने के लिए बायोमास जल रहा है। बायोमास ईंधन के जलने के अलावा, आईएपी के कई स्रोत शहरी भवनों में मौजूद हो सकते हैं, जैसे कि तम्बाकू धूम्रपान, निर्माण सामग्री, इनडोर रहने वाली गतिविधियां और खराब तरीके से बनाए गए वेंटिलेशन सिस्टम, जो आईएपी के स्तर को बदतर बनाने में योगदान कर सकते हैं। प्रदूषक, जो मुख्य चिंता का विषय हैं, दुनिया भर में विभिन्न इमारतों पर मौजूदा अध्ययनों के अनुसार, कण (पीएम), गैसों, जैविक एरोसोल और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (वीओसी) हो सकते हैं, जो कि रहने वालों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/सुशील

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