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सिर्फ भाषणों से नहीं होगी संस्कृति, संस्कृत और गोरक्षा : मुख्यमंत्री

गोरखपुर, 23 सितंबर(आईएएनएस)। यूपी के मुख्यमंत्री एवं गोरक्षा पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने सभी धार्मिक संस्थाओं से आह्वान किया है कि वे गोरक्षा, संस्कृत व संस्कृति की रक्षा के लिए आगे आएं। इसमें सरकार पूरा सहयोग करेगी। उन्होंने कहा कि केवल भाषणों से संस्कृति और संस्कृत की रक्षा नहीं हो सकती है। मुख्यमंत्री योगी युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 52वीं व राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की 7वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह के अंतर्गत गुरुवार को ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की पुण्य स्मृति में श्रद्धांजलि सभा को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि हर धार्मिक पीठ संस्कृत विद्यालय खोले। सरकार इसमें हर संभव सहयोग करेगी। संस्कृत और संस्कृति को प्रोत्साहन हमारे आश्रमों को देना होगा। संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए योग्यता के आधार पर शिक्षकों का चयन करना होगा। अयोग्य व्यक्ति संस्था को नष्ट कर देगा। ऐसे में योग्य को तराशने की जिम्मेदारी धमार्चार्यों व आश्रमों को लेनी होगी। इससे संस्कृत, संस्कृति की रक्षा के साथ गोरक्षा भी होगी। योगी ने कहा कि गोरक्षा के लिए सरकार तीन व्यवस्थाओं पर कार्य कर रही है। पहला निराश्रित गोवंश के लिए आश्रय स्थल बनाए गए हैं। इनमें वर्तमान में छह लाख गोवंश संरक्षित हैं। दूसरा सहभागिता योजना के तहत यदि कोई व्यक्ति आश्रय स्थलों से चार गोवंश लेकर उन्हें पालता है तो प्रति गोवंश के लिए सरकार उसे प्रतिमाह 900 रुपये देती है जबकि गाय का दूध व अन्य सभी उत्पाद उसी व्यक्ति के हिस्से में आता है। तीसरी व्यवस्था कुपोषित महिलाओं व बच्चों के लिए की गई है। इसमें भी संबंधित परिवार को एक गाय व उसके पालन के लिए प्रतिमाह 900 रुपये दिए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने इस बात का उल्लेख करते हुए कहा कि एक भी धार्मिक संस्था ने सरकार से गाय नहीं ली है। हमें यह समझना होगा कि धर्म की रक्षा तभी होगी जब हम उसके मूल और मूल्यों को जानेंगे। गोरक्षा भाषणों से नहीं बल्कि श्रद्धा और व्यवस्था से जोड़ने से होगी। उन्होंने कहा कि गोरखनाथ मंदिर में प्रसाद गाय के गोबर से मिली ऊर्जा से पकता है। यहां गोबर गैस के ईंधन का प्रयोग किया जाता है। खेतों में उतपन्न अन्न भी गोबर की खाद से प्राप्त होता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि स्कूली शिक्षक के प्रति श्रद्धा और सम्मान में, जिन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था, उन्होंने 1932 में किराए के कमरे में महाराणा प्रताप स्कूल की शुरूआत की जो महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की आधारशिला बनी। वर्तमान में इसके अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य व सेवा के क्षेत्र में संचालित करीब चार दर्जन संस्थाएं राष्ट्रीयता की उनके अभिनव यज्ञ की साक्षी हैं। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद ने कहा कि भारतीयता की प्रतिष्ठा दो कारणों से रही है, संस्कृत और संस्कृति। गोरक्षपीठ की संस्कृत, संस्कृति और संस्कार के लिए प्रतिबद्ध परंपरा है। योगी आदित्यनाथ उसी परंपरा के संवाहक हैं। उन्होंने ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ व ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ का स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। --आईएएनएस विकेटी/आरजेएस

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