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अब प्राकृतिक तरीके से साफ होगी गंगा,मछलियां दूर करेंगी प्रदूषण

वाराणसी, 28 सितम्बर (आईएएनएस)। गंगा को स्वच्छ करने के अभियान में लगी है सरकार। अब नदी में प्रदूषण कम करने के लिए सरकार प्राकृतिक तरीका अपनाने जा रही है। इसके तहत नदी में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करने की कोशिश में नदी में विशेष प्रकार की मछलियां छोड़ी जाएंगी। नमामि गंगे योजना के तहत गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए योगी सरकार ने योजना बनाई है। नदियों की पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने और प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकार गंगा में 15 लाख मछलियां छोड़ेंगी। नमामि गंगे योजना के तहत गंगा में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार के निर्देश पर मत्स्य विभाग के द्वारा गंगा में विभिन्न प्रजाति की मछलियों को छोड़ने की योजना बनाई गई है। 12 जनपदों में ये मछलियां छोड़ी जाएँगी। नमामि गंगे प्लान के तहत गंगा में मल-जल जाने से रोकने के लिए एसटीपी का निर्माण होगा। गंगा टास्क फॉर्स ,समेत गंगा को अविरल और निर्मल करने के लिए सभी जतन कर रही है, जिसमें योगी सरकार को तेजी से सफलता भी मिल रही है। अब गंगा के इको सिस्टम को बरकरार रखते हुए गंगा को साफ रखने के लिए मछलियों का इस्तेमाल करेगी। सरकार 12 जिलों में 15 लाख मछलियां नदियों में छोड़ेगी। जिसमे गाजीपुर ,वाराणसी ,मिजार्पुर ,प्रयागराज ,कौशाम्बी ,प्रतापगढ़ ,कानपुर ,हरदोई ,बहराइच ,बुलंदशहर ,अमरोहा ,बिजनौर जिले शामिल है। पूर्वांचल में वाराणसी और गाजीपुर में 1.5-1.5 लाख मछलियां गंगा नदी में छोड़ी जाएंगी। प्रमुख सचिव नमामि गंगे अनुराग श्रीवास्तव कहते हैं गंगा की स्वच्छता और भूगर्भ जल के संरक्षण के लिए समग्र प्रयास किए जा रहे हैं। ये भी उसी का एक हिस्सा है। मत्स्य विभाग के उपनिदेशक एन एस रहमानी ने बताया कि गंगा में प्रदूषण को नियंत्रित करने और नदी का इको सिस्टम बरकरार रखने के लिए अलग-अलग प्रजाति की मछलियां छोड़ी जाती है। यह मछलियां नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करती है। ये मछलियां गंगा की गंदगी को तो समाप्त करती है, साथ ही जलीय जंतुओं के लिए भी हितकारी होती है। उन्होंने बातया कि गंगा में अधिक मछली पकड़ने व प्रदूषण से गंगा में मछलियां कम होती जा रही है। 20 सालो से लगातार नदियों में मछलियां घट रही है। जो अब 20 प्रतिशत रह गई है। इसमें रोहू ,कतला व मृगला (नैना)नस्ल की मछलियां गंगा में डाली जाएंगी। उन्होंने बताया कि 4 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में मौजूद लगभग 15 सौ किलो मछलियां 1 मिलीग्राम प्रति लीटर नाइट्रोजन वेस्ट को नियंत्रित करती है। इसलिए सरकार ने गंगा में भी लगभग 15 लाख मछलियों को प्रवाहित करने का निर्णय लिया है। हर दिन गंगा में काफी मात्रा में नाइट्रोजन गिरता है। यदि नाइट्रोजन 100 मिलीग्राम प्रति लीटर या इससे अधिक हो होता है तो यह जीवन के अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित करता है। इसके बढ़ने से मछलियों की प्रजनन नहीं हो पाती और वह अंडे नहीं दे पाती है। इससे इनकी प्राकृतिक क्षमता भी प्रभावित होती है। --आईएएनएस विकेटी/आरजेएस

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